लघुकविता-संग्रह - दिन ढल रहा था
कवि - रूप देवगुण
प्रकाशक - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
कीमत - ₹250/-
पृष्ठ - 80 ( सजिल्द )
सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल से प्रकाशित "दिन ढल रहा था" रूप देवगुण की लघु कविताओं का संग्रह है, जिसमें 67 लघु कविताएँ 6 अध्य्यायों में विभक्त है। इनकी समरूपता इनके आकार को लेकर है। सभी कविताएँ 10-10 पंक्तियों की है। एक अध्याय में एक ही विषय की कविताएँ हैं या हम कह सकते हैं कि एक विषय पर कवि ने अलग-अलग बिम्बों को या अपने अलग-अलग दृष्टिकोण को एक साथ बयान किया है।
पहला अध्याय है, "पक्षी: एक से दस तक"। इस अध्याय में 10 कविताएँ हैं। पहली कविता में एक पक्षी पर कविता है, तो दूसरी कविता दो पक्षियों पर है, इसी प्रकार क्रम आगे बढ़ता है। कवि एक पक्षी के अकेलेपन के बारे में सोचता है। दो पक्षियों को वह नर-मादा के रूप में देखता है, जिसमें मादा नाराज हो जाती है। मादा की नाराजगी के बारे में सोचना प्रेम का स्वाभाविक चित्रण है। अक्सर प्रेम में महिला नाराज होने का अभिनय करती है। तीसरा पक्षी किसी युगल के साथ आने वाला बाहरी पक्षी है, जिसे युगल अपने साथ नहीं रखता। कवि वृक्ष से उतरकर दाना चुगने आए चार पक्षियों का वर्णन करता है
-
"वृक्षों से उतरे चार पक्षी / लगे कुछ चुगने /
कभी एक कुछ खाता / दूसरा उसके पास आ जाता /
तीसरा उड़ कहीं दूर चला जाता /
चौथा कभी हैरानगी से मुझे देखता" (पृ. - 12 )
पाँच पक्षियों में कोई इधर-उधर देख रहा है, कोई उड़ गया है, कोई कलाबाज़ी करके खुद को कवि से कुशल बता रहा है। कवि दूर तक उड़ते छह पक्षियों को देखता है, बिजली की तार पर बैठे सात पक्षियों को देखता है, आठ पक्षियों को देखकर सोचता है कि इनमें जात-पांत नहीं है। नौ पक्षी उसे रेस लगाते लगते हैं। दस पक्षी होकर भी वे एक बिल्ली को देखकर उड़ जाते हैं।
दूसरा अध्याय है, "अच्छा लगता है यह सब कुछ"। इस अध्याय में 11 कविताएँ हैं। कवि को घर के काम रोटियाँ बनाना, सोफे सजाना, किसी को खिलाना-पिलाना अच्छा लगता है। मेहमान का स्वागत, उससे दोबारा आने को कहना मेहमान की इज्जत बढ़ाता है। बड़े के आने पर उसकी इज्जत करना, उसकी बात को अच्छे से सुनना जरूरी है। वे शव यात्रा में चलने और इसके बाद के तरीके को बताते हैं -
"उसके परिजनों के साथ / बातें करना /
आती बार वहाँ / हाथ मुँह धोना /
ऐसा करना होता है / ऐसे समय में"
उदास होना, बातें करना तो समझ आता है, लेकिन हाथ-मुँह धोने के पीछे सिर्फ अंधविश्वास है या कोई वैज्ञानिक कारण, इसे स्पष्ट किया जाता तो ज्यादा बेहतर था। वे शोक संतप्त परिवार के पास सहानुभूति जताने के शिष्टाचार, शादी में शिष्टाचार के बारे में लिखते हैं। कॉलेज की रौनक का जिक्र करते हैं, जिसमें हम सुध-बुध खोकर खुद-ब-खुद शामिल हो जाते हैं। वे सताने को भी अच्छा मानते हुए लिखते हैं -
"जो चिढ़ता हो उसे चिढ़ाना / कई बार अच्छा लगता है" (पृ. - 27 )
यह बात उन्होंने बहिन और पत्नी के प्रसंग में कही है। घर के संदर्भ में ही वे चिल्लाने को महत्त्वपूर्ण कहते हैं, हालांकि उनका मानना है कि
"चिल्लाना कोई अच्छी बात नहीं" (पृ. - 28 )
घर में बड़े के दायित्व क्या हैं, दादी-नानी की भूमिका क्या है, वे ये भी बताते हैं।
तीसरा अध्याय है, "गिलहरियाँ"। इस अध्याय में 12 कविताएँ हैं। कवि गिलहरियों के खेल-कूद का चित्रण करते हैं। अपने फुर्तीलेपन के कारण वे सबको अच्छी लगती हैं। कवि कहता है कि उसने आज तक किसी गिलहरी को गिरते नहीं देखा। गिलहरी टहनी के अंतिम छोर को छू लेती है और इसका अभ्यास रोज करती है। कवि के घर में बहुत गिलहरियाँ रहती हैं, तभी वह लिखता है -
"एक प्रदर्शनी-सी / लग गई है /
देखना हो तो / आओ मेरे पास" (पृ. - 36 )
कवि के घर में रहने वाली गिलहरियाँ जब कवि द्वारा उगाए अमरूद, अनार खा जाती हैं तो वह गुस्सा नहीं होता, अपितु खुश होता है। गिलहरियों पर लिखी यह कविता गिलहरी पर न होकर कवि पर है, इससे कवि की स्वभावगत विशेषता उभरकर आती है। कवि गिलहरियों के स्वभाव का भी जिक्र करता है। वे डरपोक हैं। कवि गिलहरी से बातचीत करना चाहता है, उससे कुछ पूछना चाहता है, मगर वह डर जाती है। कवि को लगता है कि गिलहरियों को गुस्सा भी आता है, इसीलिए वे एक-दूसरे के पीछे भागती हैं। वे बच्चा गिलहरी का भी चित्रण करते हैं। कवि इनके मस्ती भरे जीवन पर लिखता है -
"भागती हैं / फुदकती हैं /
नाचती हैं / खेलती हैं /
और व्यतीत करती हैं अपना / मस्ती भरा जीवन" (पृ. - 43)
कवि इस मस्ती भरे जीवन का राज भी बताता है कि इन्हें किसी से कोई लेना-देना नहीं। यह एक महत्त्वपूर्ण सन्देश भी है, मस्त ज़िंदगी जीने के लिए दूसरों के बारे में फालतू चिंता छोड़ना ज़रूरी है।
"आकर्षण से है सृष्टि कायम" नामक चौथे अध्याय में 16 कविताएँ हैं। कवि के अनुसार झरने, हिमाच्छादित चोटियाँ, वृक्ष मनुष्य को सम्मोहित करते हैं। हम पर्वतों पर दौड़कर चढ़ जाना चाहते हैं। समुद्र के पास सुबह, दोपहर, शाम, रात के समय अलग-अलग नजारे देखने को मिलते हैं। वे चाँदनी रात का भी वर्णन करते हैं। प्रकृति के इतर वे मानव निर्मित कोठी को भी आनन्ददायक मानते हैं। दिनचर्या का वर्णन करते हैं, सफर के दौरान के क्रियाकलाप का जिक्र करते हैं। उनका मन सब्जी-फल वाले से सारी सब्जियां और फल खरीदना चाहता है। कपड़े की दुकान से वे जेंटलमैन बन निकलना चाहते हैं। सूरज से वे दूसरों का भला करना सीखते हैं।
कवि इस अध्याय में प्रतिलिंगी के प्रति आकर्षण को भी विषय बनाता है। उसका मानना है -
"ये आकर्षण बना रहता है / जीवन भर /
ये भटकाता भी है हमें / कभी इधर-कभी उधर" (पृ. - 52 )
वे आशावादी हैं और यह बात तब उभरकर आती है, जब वे रिश्तों का जिक्र करते हैं। घर में सब अपने आपको दूसरे के प्रति अर्पण करते हैं। उनको रिश्ते खरे लगते हैं। आकर्षण के बारे वे कहते हैं कि -
"जिस दिन /आकर्षण न रहा है /
जीवन में / समझो जीवन न रहा" (पृ. - 59 )
उन्हें लगता है कि मौत में भी आकर्षण होता है। इसी आकर्षण के कारण सृष्टि कायम है।
पाँचवां अध्याय "दिन ढल रहा था" में 10 कविताएँ हैं। यही शीर्षक पुस्तक का शीर्षक भी है। इस अध्याय में कवि के प्रिय विषय प्रकृति चित्रण की कविताएँ हैं। कवि ने मानवीकरण का सहारा लिया है। माउंट आबू पर सूर्य अस्त का, दिन ढलते समय झरने का, ढलती सांझ के समय समुद्र का चित्रण किया गया है। इनके माध्यम से जीवन दर्शन को भी बयान किया गया है -
"वह बोला, ऐसे भी आते हैं / दिन जीवन में /
जब सब कुछ / होता है, जब कुछ भी नहीं होता" (पृ. - 66 )
वे गृहणी की दिनचर्या को दिखाते हैं, आजकल की महिलाएँ फेसबुक से जुड़ी रहती हैं, इसे भी बताया है।
अंतिम अध्याय "बन्दर-बन्दरिया" में 8 कविताएँ हैं। वे बन्दर के व्यवहार को दिखाते हैं। बन्दरिया के अपने बच्चे पर किये गुस्से को दिखाते हैं। बंदरों से सामान बचाने की तरकीब बताते हैं। बन्दर-बन्दरिया के तमाशे का चित्रण करते हैं। पहाड़ों पर बन्दर-बंदरिया खाने के लिए जिस प्रकार लपकते हैं, जिस प्रकार एक-दूसरे की जुएँ निकालते हैं उसको दिखाया है। बन्दर की नटखट चालों से कवि मजा लेता है।
अंतिम अध्याय "बन्दर-बन्दरिया" में 8 कविताएँ हैं। वे बन्दर के व्यवहार को दिखाते हैं। बन्दरिया के अपने बच्चे पर किये गुस्से को दिखाते हैं। बंदरों से सामान बचाने की तरकीब बताते हैं। बन्दर-बन्दरिया के तमाशे का चित्रण करते हैं। पहाड़ों पर बन्दर-बंदरिया खाने के लिए जिस प्रकार लपकते हैं, जिस प्रकार एक-दूसरे की जुएँ निकालते हैं उसको दिखाया है। बन्दर की नटखट चालों से कवि मजा लेता है।
इन लघु कविताओं में कवि ने पक्षियों, गिलहरियों, बंदरों के क्रियाकलापों को दिखाया है। प्रकृति का चित्रण किया है। आकर्षण के शाश्वत नियम को समझाया है और किस अवसर पर कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, उसे स्पष्ट किया है। कविताएँ अपने भीतर गहरा अर्थ रखे हुए हैं, जिन्हें समझाने की कोशिश कवि ने नहीं की, पाठक को खुद इसके अर्थ तक पहुँचने की छूट है। वह इनके बाहरी रूप से भी खुश हो सकता है और इनसे जीवन के बारे में भी सोच सकता। मुक्त छंद की सभी कविताएँ 10-10 पंक्तियों में लिखी गई हैं। कवि ने किसी प्रकार के भाषायी आडम्बर को न अपनाकर सहज, सरल रूप में इन्हें प्रस्तुत किया है, जिससे यह सबके लिए सहज रूप से ग्राह्य हैं।
©दिलबागसिंह विर्क
2 टिप्पणियां:
सुन्दर समीक्षा
अभिनव सार्थक समीक्षा ।
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