कवयित्री - डॉ. आरती बंसल
प्रकाशक - प्रगतिशील प्रकाशन, नई दिल्ली
पृष्ठ - 88 ( पेपरबैक )
कीमत - 150 / -
" प्रत्येक देश का साहित्य वहां की जनता की चित्तवृति का प्रतिबिम्ब होता है | "- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का यह वेद वाक्य बाल साहित्य पर भी लागू होता है, यह बात डॉ. आरती बंसल के बाल कविता संग्रह ' आसमान है नीला क्यों ' को पढ़ते हुए दावे के साथ कही जा सकती है |
आज के बच्चे गुड्डे-गुड़ियों या मिट्टी के घरौंदों से कम ही खेलते हैं | उनकी दिनचर्या शुरू होती है मोबाइल की गेम्स और कार्टून चैनल्स से | इसी कारण कवयित्री ने अपनी कविताओं में डोरेमान, एलियन, मोटू-पतलू जैसे आज के चर्चित कार्टून पात्रों को शामिल किया है | कार्टून देखकर बच्चों की कल्पना शक्ति को नए पंख मिले हैं और इसी कल्पना की उड़ान को डॉ. आरती की कविताओं में देखा जा सकता है | कनु की कल्पना देखिए -
यदि टाइम मशीन मिल जाए कहीं से
तो दस साल एक साथ बिताऊँ
स्कूल की बोरियत से पीछा छुड़ाऊँ ( पृ - 79 )
इसी कल्पना शक्ति के बूते बच्चे सोचते हैं -
किसी पेड़ पर लगती टॉफियाँ
किसी पेड़ पर पैसे उगते ( पृ - 76 )
बाल साहित्य लिखते समय एक अनिवार्य शर्त मौजूद रहती है, वह शर्त है कि यह साहित्य बालकों के स्तर का हो, उनकी रुचि के अनुसार हो | इसके अतिरिक्त संदेश और शिक्षा देना अनिवार्य है, लेकिन इसे उस दवा की तरह होना चाहिए, जो कैप्सूल के आकर्षक खोल में छुपी हो | सपाट शिक्षा और संदेश बच्चों पर असर नहीं छोड़ते | इस दृष्टि से ' आसमान है नीला क्यों ' एक सफल संग्रह है |
खान-पान की अच्छी आदतों को चपाती कविता में बड़ी खूबसूरती से ब्यान किया गया है -
दूध मलाई दाल सब्जी संग
खानी चाहिए रोज चपाती ( पृ - 57 )
स्कूल के महत्त्व को दर्शाती पंक्तियाँ देखिए -
जो छुट्टी करते बारम्बार
वो बच्चे बनते नहीं होशियार ( पृ - 35 )
गर्मी की छुट्टियां कविता ये सुंदर संदेश देती है -
पापा बोले किसी जीव को
तंग करना अच्छी बात नहीं ( पृ - 47 )
दादा, दादी, नानी, मेरा भाई, छोटी आशा, टीचर जैसी कविताओं के माध्यम से बच्चे जहाँ इन करीबी रिश्तों और संबंधों का महत्त्व समझते हैं, वहीं कई महत्त्वपूर्ण बातें भी सीखते हैं | दादी कविता में दादी रामायण से आज़ादी तक की बातें बड़ी सरलता से सिखाती है | पशु-पक्षियों से भी बच्चों को विशेष लगाव होता है | कवयित्री ने मेंढक, मोर, चिड़िया जैसी कविताओं के माध्यम से उनकी उस जिज्ञासा का शमन किया है और साथ ही इन जीवों की आदतों, रहन-सहन और खान-पान को भी बड़े सरल शब्दों में समझाया है | मेंढक कविता देखिए -
कीट पतंगे खाता हूँ
बारिश में टर्राता हूँ ( पृ - 25 )
विभिन्न मौसमों से परिचय करवाने के लिए बारिश, गर्मी की छुट्टियां, सर्दी कविता को देखा जा सकता है | रेल, कार, हवाई जहाज से उनका परिचय करवाया जाता है और साथ ही उनका महत्त्व भी समझाया जाता है -
लोगों को ले जाती रेल
लोगों को ले आती रेल ( पृ - 15 )
प्यासा कौआ, भूखी लोमड़ी, जंगल का राजा जैसी कुछ परम्परागत कहानियों को पद्य रूप देने का प्रयोग किया गया है | अलादीन के चिराग जैसे पुरातन विषय को नए अंदाज़ में कहा गया है | खेत, तारे, हवा, सुबह आदि कविताओं से प्रकृति के विभिन्न रूपों को दिखाया गया है | पेड़ों के महत्त्व को बताया गया है -
आओ मिलकर पेड़ लगाएं
प्रदूषण को दूर भगाएं ( पृ - 77 )
खेतों का सुंदर चित्र खींचा गया है -
गेहूँ, सरसों, चावल, जौं के
पौधों से मुस्काते खेत ( पृ - 45 )
पुस्तक का शीर्षक जिस कविता पर आधारित है, वह कविता बाल सुलभ जिज्ञासा को प्रस्तुत करती है | बच्चे ऐसे प्रश्न आम पूछते हैं और ऐसे प्रश्नों को पूछकर, उनके उत्तर तलाशकर ज्ञानवर्धन करते हैं | खिलौने, मेले, मस्ती जैसी अनेक विशुद्ध मनोरंजक कविताएँ भी इस संग्रह को रोचक बनाती हैं |
बाल कविताओं के लिए एक अन्य अनिवार्य शर्त है - लय | बच्चे गाते-गाते ही सीखते हैं | डॉ. आरती बंसल का यह संग्रह इस शर्त पर भी खरा उतरता है | यथा -
छुक-छुक, छुक-छुक, चलती रेल
रेलम रेल, रेलम रेल
पेलम पेल, पेलम पेल ( पृ - 15 )
संक्षेप में, यह बाल कविता संग्रह शिक्षाप्रद बातों को बड़े मनोरंजक तरीके से बच्चों के सामने लाता है | तुकान्तक और लयबद्ध कविताएँ बच्चों की जुबान पर आसानी से चढ़ेंगी और इसी से वे ऐसी अनेक बातों को सहजता से सीख जाएंगे, जिसे सीखने के लिए उन्हें स्कूल बोर लगता है | पढाई बच्चों को डराए न, इसके लिए बाल साहित्य बेहद जरूरी है | यह बाल कविता संग्रह इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, साथ ही यह उम्मीद जगाता है कि डॉ. आरती की कलम ऐसे ही अनेक संग्रहों की सृजना कर बाल साहित्य को समृद्ध करेगी |
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
डॉ. आरती बंसल जी के बाल कविता संग्रह "आसमान है नीला क्यों" की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुति हेतु आभार!
बच्चों को मनोरंजक तरीके से जो सीख कविताओं के माध्यम से दी गयी, है वह काबिलेतारीफ है ..
आरती जी को बधाई!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-05-2016) को "अगर तू है, तो कहाँ है" (चर्चा अंक-2349) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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