किसी भी भाषा के साहित्य से जुड़ा हुआ प्रथम प्रश्न होता है कि पहला कवि कौन-सा था और भाषा विशेष में साहित्य सृजन कब से हुआ | हिंदी भी इस प्रश्न से अछूती नहीं | साहित्येतिहासकारों ने अपने-अपने तर्कों के साथ इन प्रश्नों के उत्तर दिए हैं | कुछ प्रमुख मत निम्नलिखित हैं -
हिंदी साहित्य का आरंभ -
सातवीं सदी - शिवसिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन,
मिश्रबन्धु , राहुल सांकृत्यायन ,
रामगोपाल शर्मा दिनेश ( डॉ. नगेन्द्र का इतिहास )
मिश्रबन्धु , राहुल सांकृत्यायन ,
रामगोपाल शर्मा दिनेश ( डॉ. नगेन्द्र का इतिहास )
750 ई. - डॉ. रामकुमार वर्मा
दसवीं सदी - आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी
संवत 1050 - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
1184 ई. - डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त
हिंदी का प्रथम कवि -
प्रथम कवि - विद्वान
पुष्प - शिवसिंह सेंगर, ग्रियर्सन, मिश्र बन्धु
सरहपा - राहुल सांकृत्यायन, डॉ. रामकुमार वर्मा,
डॉ. रामगोपाल शर्मा दिनेश
डॉ. रामगोपाल शर्मा दिनेश
योगिंदु मुनि - डॉ. वासुदेव सिंह
वज्रसेन सूरी - अगरचंद नाहटा, हरिश्चन्द्र वर्मा
शालिभद्र सूरी - डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त, दशरथ ओझा,
माताप्रसाद गुप्त
आदिकाल के आरंभ संबंधी तर्क-वितर्क -
यह माना जाता है कि आधुनिक भाषाओं का उद्भव दसवीं सदी में हुआ, ऐसे में शिवसिंह सेंगर, जार्ज ग्रियर्सन, मिश्र बन्धुओं, राहुल सांकृत्यायन, रामगोपाल शर्मा दिनेश, डॉ. रामकुमार वर्मा का मत स्वयं ही कमजोर पड़ जाता है | अन्य मत सत्य के नजदीक हैं लेकिन पूर्णत: सहमती किसी के साथ नहीं |
प्रथम कवि संबंधी तर्क-वितर्क -
उपर्युक्त मतों में पुष्प और सरहपा का पक्ष सबसे कमजोर है | पुष्प को प्रथम कवि मानने वाले प्रथम विद्वान शिवसिंह सेंगर हैं | ग्रियर्सन और मिश्र बन्धुओं की मान्यता का आधार भी वही हैं हालांकि ग्रियर्सन ने संदेह प्रकट किया है | सरहपा को प्रथम कवि राहुल सांकृत्यायन ने माना और दिनेश ने डॉ. नगेन्द्र द्वारा संपादित साहित्येतिहास में इस मत का पुरजोर समर्थन इस आधार पर किया कि सरहपा कि शैली नाथ साहित्य से होते हुए भक्तिकाल के संतो तक पहुंची | वे यह भी कहते हैं कि सरहपा की भाषा में अपभ्रंश का साहित्य रूप छूट गया | इन मत का विरोध यह कहकर किया जाता है कि सरहपा की जो भाषा हमारे सामने है वो मौलिक न होकर तिब्बती भाषा से राहुल द्वारा किए गए अनुवाद की भाषा है | डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त शालिभद्र सूरी को प्रथम कवि और उनकी कृति '' भरतेश्वर बाहुबली रास " ( 1184 ई. ) को प्रथम पुस्तक माना है | उनकी मान्यता है कि इस कृति के बाद इस प्रकार की अनेक कृतियाँ { रास काव्य }रची गई जो इस प्रकार हैं
- बुद्धि रस ( बारहवीं सदी )
- जीव दया रस ( 1200 ई. )
- चन्दन बाला रास ( 1200 ई. )
- जम्बूस्वामी रास ( 1209 ई. )
- रेवंत गिरी रास ( 1231 ई. )
- नेमिनाथ रास ( 1238 ई. )
- गद्यसुकुमाल रास ( 1250 ई. के लगभग )
अगरचंद नाहटा और हरिश्चन्द्र वर्मा का मानना है कि 1168 ई. में " भरतेश्वर बाहुबली घोर रास " की रचना वज्रसेन सूरी ने की थी अत: उन्हें हिंदी का प्रथम कवि माना जाना चाहिए |
डॉ. वासुदेव सिंह ने शालिभद्र सूरी से पहले हुए कवियों की सूची देकर योगिंदु मुनि को हिंदी का प्रथम कवि माना है | उनकी सूची -
- योगिंदु मुनि ( परमात्म प्रकाश , योगसार )
- जिनदत्त सूरी ( उपदेश रसायन रास )
- अब्दुल रहमान ( संदेश रासक )
- मुनि राम सिंह ( पाहुड दोहा )
- दामोदर ( उक्ति व्यक्ति प्रकरण )
डॉ. वासदेव के मत का खंडन इस आधार पर किया जाता है कि योगिंदु मुनि अपभ्रंश के कवि थे | अन्य कवि भी अपभ्रष के निकट हैं | हरिवंश कोचर, राम सिंह तोमर, नामवर सिंह आदि ने भी इन्हें अपभ्रंश के कवि माना है |
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{ मेरे नोट्स पर आधारित }
5 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (12.09.2014) को "छोटी छोटी बड़ी बातें" (चर्चा अंक-1734)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
एक हिंदी साहित्य के विद्यार्थी के लिए आपके हिंदी भाषा संबंधी पोस्ट बहुत उपयोगी व ज्ञानवर्धक होते हैं.
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ज्ञानवर्धक पोस्ट...
वाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
समस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
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