लोहड़ी की शुरुआत के बारे में मान्यता है कि यह दुल्ला भट्टी द्वारा गरीब कन्याओं सुन्दरी और मुंदरी की शादी करवाने के कारण शुरू हुआ है. दरअसल दुल्ला भट्टी पंजाबी आन का प्रतीक है. पंजाब विदेशी आक्रमणों का सामना करने वाला पहला प्रान्त था . ऐसे में विदेशी आक्रमणकारियों से यहाँ के लोगों का टकराव चलता था . दुल्ला भट्टी का परिवार मुगलों का विरोधी था. वे मुगलों को लगान नहीं देते थे. मुगल बादशाह हुमायूं ने दुल्ला के दादा सांदल भट्टी और पिता फरीद खान भट्टी का वध करवा दिया. दुल्ला इसका बदला लेने के लिए मुगलों से संघर्ष करता रहा. मुगलों की नजर में वह डाकू था, लेकिन वह गरीबों का हितेषी था. मुगल सरदार आम जनता पर अत्याचार करते थे और दुल्ला आम जनता को अत्याचार से बचाता था.
सुंदर दास नामक गरीब किसान भी मुगल सरदारों के अत्याचार से त्रस्त था. उसकी दो पुत्रियाँ थी सुन्दरी और मुंदरी. गाँव का नम्बरदार इन लडकियों पर आँख रखे हुए था और सुंदर दास को मजबूर कर रहा था कि वह इनकी शादी उसके साथ कर दे. सुंदर दास ने अपनी समस्या दुल्ला भट्टी को बताई. दुल्ला भट्टी ने इन लडकियों को अपनी पुत्री मानते हुए नम्बरदार को गाँव में जाकर ललकारा. उसके खेत जला दिए और लडकियों की शादी वहीं कर दी जहाँ सुंदर दास चाहता था. इसी के प्रतीक रूप में रात को आग जलाकर लोहड़ी मनाई जाती है.
लोहड़ी की रात को पूरा समुदाय इकट्ठा होकर लोहड़ी मनाता है. लकड़ी और उपलों की आग जलाई जाती है और सभी ईसर आ दलिद्र जा, दलिद्र दी जड़ चूल्हे पा ( आलस्य, गरीबी भागे, इनका नाश हो और समृद्धि आए, भगवान का वास हो ) बोलते हुए तिल आग में फैंकते हैं. मूंगफली, रेवड़ी, गच्चक बांटी जाती है. जिन परिवारों में बेटे की शादी हुई होती है या घर को पुत्र रत्न प्राप्त होता है वे प्रथम लोहड़ी पर इसका आयोजन करते हैं .
लोहड़ी का त्यौहार मिल बांटकर मनाया जाने वाला त्यौहार है, लेकिन आजकल यह आधुनिकता की भेंट चढ़ता जा रहा है. लोग अपने-अपने घरों में लोहड़ी मनाना ज्यादा उचित समझने लगे हैं जो इसके मूल सिद्धांत से दूर है. आजकल टी.वी चैनलों पर इससे सम्बन्धित कार्यक्रम देखकर ही आनन्द मान लिया जाता है , जबकि पहले पूरे गाँव के लोग इकट्ठे बैठकर गीत गाते और जश्न मनाते थे. इससे भाईचारा विकसित होता था, लेकिन आज के दिन ऐसा नहीं होता. मूंगफली, रेवड़ी तो सर्दी शुरू होते ही शुरू हो जाती है, इसलिए बच्चों को इस त्यौहार में कोई नयापन नजर नहीं आता तभी तो वे पूछते हैं कि यह तो उदास - सा त्यौहार है. दरअसल ये त्यौहार तो पंजाबियों के जोशीले स्वभाव जैसा ही है, लेकिन रिश्तों में बढती दूरियों और अलग-अलग रहने की प्रवृति ने इसे नीरस कर दिया है. इसे जीवंत रखने के लिए हमें फिर से समुदाय में घुलना-मिलना होगा, जो न सिर्फ इस त्यौहार को जीवंत रखेगा बल्कि आपसी प्रेम को भी बढ़ाएगा जिसकी आज बेहद जरूरत है.
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8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर जानकारीपरक पोस्ट!
सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
लोहडी पर बहुत बढिया लेख ...पढ़ कर अच्छा लगा ...इस लेख के लिए शुक्रिया
लोहड़ी के त्यौहार कि शुभकामनयें
वाह ..
बहुत सुंदर जानकारी ..
बढिया लेख !!
बहुत ही सुन्दर
आपको भी लोहडी़ की शुभकामनाएँ
लोहडी और मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.....
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
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