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बुधवार, मई 04, 2016

प्राइवेट स्कूलों की मनमानी

हालांकि हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी द्वारा जारी की टॉप टेन की सूची में सरकारी स्कूलों का दबदबा रहा, फिर भी यह तो स्वीकार करना ही होगा कि प्राइवेट स्कूल परिणाम की दृष्टि से सरकारी स्कूलों से बेहतर हैं । परिणाम और अन्य गतिविधियों में इनकी भूमिका, यहाँ प्राइवेट स्कूलों के सकारात्मक पहलू हैं, वहीं इनके अनेक नकारात्मक पहलू भी हैं, जो अभिभावकों को परेशान करते हैं - 

बुधवार, अप्रैल 27, 2016

शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने में सरकार नाकाम

शिक्षा सरकार का दायित्व है, ऐसे में अगर परीक्षा परिणाम बुरा है या प्राइवेट स्कूल मनमर्जी कर रहे हैं तो यह प्रत्यक्ष रूप से सरकार की नाकामी है । ऐसा नहीं कि सरकार इस हेतु प्रयास नहीं कर रही, लेकिन जमीनी सच्चाई को न समझते हुए बनाई गई नीतियां नाकामी का बड़ा कारण हैं । 

मंगलवार, अप्रैल 12, 2016

न संभल पाने की कथा कहता उपन्यास

उपन्यास - इक आग का दरिया है 
लेखक - गिरिराज किशोर 
प्रकाशन - भारतीय ज्ञानपीठ 
कीमत - 180 / - 
पृष्ठ - 174
फिसलने के बाद संभलना काफी मुश्किल हो जाता है, बहुधा असंभव भी | उमा के फिसलने और फिर न संभल पाने की कहानी कहता है उपन्यास " इक आग का दरिया है " |

बुधवार, अप्रैल 06, 2016

प्रयोगों की भेंट चढ़ती स्कूली शिक्षा

शिक्षा और समाज अन्योन्याश्रित होते हैं। समय के साथ-साथ समाज की ज़रूरतों में बदलाव होता रहता है। ऐसे में शिक्षा में भी परिवर्तन ज़रूरी है। विभिन्न शैक्षणिक आयोगों की स्थापना, शिक्षा नीति का निर्माण इसी उद्देश्य से किया जाता है, लेकिन यह बदलाव जितने ज़रूरी हैं, उतना ही यह भी ज़रूरी है कि बदलाव सिर्फ बदलाव के लिए न हो, क्योंकि हर पुरानी विचारधारा बुरी नहीं होती और हर नई विचारधारा उपयोगी होगी, यह भी ज़रूरी नहीं। दुर्भाग्यवश हरियाणा में शिक्षा में पिछले दो दशक से ऐसे-ऐसे बदलाव हुए हैं कि शिक्षा इन प्रयोगों की भेंट चढ़ गई है।

बुधवार, मार्च 30, 2016

आरक्षण की बैसाखियाँ आखिर कब तक ?

एक तरफ भारत विकसित देशों की कतार में खड़ा होने को आतुर है, तो दूसरी तरफ भारत के लोग खुद को पिछड़ा साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं | राजस्थान के गुर्जरों और गुजरात के पटेलों के बाद अब हरियाणा के जाटों ने इस श्रृंखला में अपना नाम लिखवा दिया है | भारत में किसी भी मांग के लिए जब प्रदर्शन होता है तो सरकारी सम्पत्ति को जलाना, तोड़-फोड़ करना आम बात है, ऐसे में हर प्रदर्शन के दौरान देश को करोड़ों की चपत लग जाती है | इस बार हरियाणा में वहशियत का जो नंगा नाच हुआ, वह तो शर्मनाक है | भीड़ पर किसी का नियन्त्रण नहीं होता, आंदोलनकर्ताओं की मंशा भले ही ऐसी न हो, लेकिन भीड़ में शामिल शरारती तत्व अक्सर मौके का फायदा उठा जाते हैं, लेकिन ऐसा तभी संभव है जब आन्दोलन होता है | सोचने की बात तो यह है कि आजाद देश में आखिर ऐसी नौबत क्यों आती है कि लोगों को सडकों पर उतरना पड़ता है ? यहाँ तक आरक्षण की बात है, यह विचारणीय है कि क्यों लोग खुद को पिछड़ा कहलवाने के लिए हिंसक हो रहे हैं ? आरक्षण की बैसाखियाँ आखिर कब तक जरूरी हैं ?

सोमवार, मार्च 21, 2016

अपने समय की तमाम विसंगतियों को ललकारता हुआ संग्रह

कविता संग्रह - समय से मुठभेड़ 
शायर - अदम गौंडवी 
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन 
कीमत - 75 / - पेपरबैक 
पृष्ठ - 108
अदम गोंडवी का  कविता / ग़ज़ल संग्रह  ' समय से मुठभेड़ ' अपने समय की तमाम विसंगतियों को ललकारता हुआ संग्रह है | इस संग्रह में 63 ग़ज़लें, 14 मुक्तक और 3 नज़्में हैं | 

मंगलवार, मार्च 08, 2016

यथार्थवादी, आदर्शवादी और मनोवैज्ञानिक कहानियों का संग्रह

कहानी संग्रह - लेखक की आत्मा 
लेखिका - अर्चना ठाकुर 
प्रकाशन - अंजुमन प्रकाशन 
पृष्ठ - 112
कीमत - 120 / - 
( साहित्य सुलभ श्रृंखला के अंतर्गत 20 / )
यथार्थवादी, आदर्शवादी और मनोवैज्ञानिक प्रवृतियों को समेटे हुए है ' अर्चना ठाकुर ' का पहला कहानी-संग्रह " लेखक की आत्मा ", हालांकि कहीं-कहीं यथार्थवाद और आदर्शवाद अति की सीमाओं को भी छूता प्रतीत होता है । इस संग्रह की बारह कहानियों में एक तरफ सात्विक प्रेम है, तो दूसरी तरफ बदले की कहानी है । लेखक के दुःख का ब्यान भी हुआ है और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भी बड़ी बखूबी उठाया गया है ।

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