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बुधवार, जून 26, 2013

हिंदी साहित्य : काल विभाजन एवं नामकरण

साहित्य किसी भी भाषा का हो जब उसका इतिहास लिखा जाता है तो सबसे बड़ी समस्या उसके काल विभाजन और कालों के नामकरण की होती है । हिंदी भी इससे अछूती नहीं । हिंदी में काल विभाजन का प्रथम प्रयास सर जार्ज ग्रियर्सन ने किया लेकिन उनके द्वारे दिए गए नाम अध्यायों के शीर्षक अधिक हैं । मिश्र बन्धुओं ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया , भले ही उनका काल विभाजन सही नहीं माना जा सकता ( क्योंकि हिंदी की शुरुआत दसवीं सदी से हुई मानी जाती है ऐसे में हिंदी साहित्य की शुरुआत आठवीं सदी से नहीं मानी जा सकती , यह दोष अन्य विद्वानों के काल विभाजन में भी है ) लेकिन इस दिशा में उनका कदम उठाना सराहनीय है , इसके बाद के लगभग हर साहित्येतिहासकार ने इस दिशा में काम किया ।  

कुछ प्रमुख विद्वानों के मत -

शनिवार, जून 22, 2013

रास और रासो

आदिकालीन साहित्य में रास और रासो साहित्य का विशेष स्थान है । रास साहित्य जैन परम्परा से संबंधित है तो रासो का संबंध अधिकांशत: वीर काव्य से जो डिंगल भाषा में लिखा गया । रास और रासो शब्द की व्युत्पति संबंधी विद्वानों में मतभेद है । कुछ मत निम्न हैं -

शुक्रवार, जून 21, 2013

आधुनिक काल के प्रमुख साहित्यकार ( भाग - 1 )

आधुनिक काल की शुरुआत भारतेंदु काल ( 1857 -1900 ई . ) से मानी जाती है । भारतेंदु मंडल के कवियों ( भारतेंदु हरिश्चन्द्र, बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन , प्रताप नारायण मिश्र , अम्बिका दत्त व्यास, बालमुकन्द गुप्त , राधाचरण गोस्वामी, राधाकृष्ण दास ) से नए युग का सूत्रपात हुआ लेकिन इनसे पूर्व के कुछ कवि ( सेवक सरदार, राज लक्ष्मण सिंह, गोविन्द गिल्लाभाई आदि ) ऐसे भी हुए जिन्हें रीतिकाल के बाद के माना गया लेकिन वे भारतेंदु युग से पूर्व के थे इन्हें पूर्व प्रवर्तित काव्य परम्परा के कवि कहा जाता है । 
                19 वीं सदी में जन्में प्रमुख साहित्यकार ( जन्म के क्रम पर आधारित ) निम्न हैं -  

बुधवार, जून 19, 2013

हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन ( भाग - 2 )

भाग एक से आगे 

5. मिश्र बन्धु - 

                   तीन भाई - 
  1. प. गणेश बिहारी मिश्र 
  2. डॉ. श्याम बिहारी मिश्र 
  3. डॉ. शुकदेव बिहारी मिश्र 
पुस्तक - " मिश्रबन्धु विनोद " ( चार भाग ) 
प्रकाशन - प्रथम तीन भाग -1913
                चौथा भाग (  काल ) - 1914 
" हिंदी नवरत्न " - मिश्र बन्धु विनोद के प्रथम तीन भागों का पूरक 

शुक्रवार, जून 14, 2013

UGC NET हिंदी की तैयारी हेतु कुछ सुझाव

परीक्षा कोई भी हो हम तब तक सफलता हासिल नहीं कर सकते जब तक पाठ्क्रम और पेपर पैटर्न से परिचित नहीं । मंजिल तक पहुँचने के लिए जिस प्रकार दिशा और रास्ते का ज्ञान जरूरी है ठीक उसी प्रकार परीक्षा में बैठने से पूर्व पाठ्क्रम और पेपर पैटर्न को समझना जरूरी है । 
            यूं तो नेट की परीक्षा में जुड़े सभी परीक्षार्थी इससे परिचित होंगे ही, फिर भी हिंदी की तैयारी कर रहे परीक्षार्थियों को पुन: स्मरण करवाने का प्रयास यहाँ कर रहा हूँ , शायद किसी को इससे लाभ मिल सके । 

गुरुवार, जून 13, 2013

हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन ( भाग - 1 )

इतिहास शब्द अस धातु ( हुआ / होना ) में इति ( ऐसा , पूर्णतय: समाप्ति का प्रतीक ) और ( निश्चयपूर्वक ) अव्यय का योग है ।अत: इसका अर्थ है - ऐसा ही था या ऐसा ही हुआ । इतिहास का संबंध अतीत से है, इसमें वास्तविक या यथार्थ घटनाएं रहती हैं और इसमें वो घटनाएं भी होती हैं जो प्रसिद्ध नहीं । इतिहासकार अपनी रूचि और दृष्टि के मुताबिक़ इनको चुनकर प्रस्तुत करता है । 
                इतिहास को मानव की विकास यात्रा कहा गया है , इस दृष्टिकोण से साहित्येतिहास को मानवकृत भाषा विशेष में रचित साहित्य की विकास यात्रा कहा गया है । साहित्येतिहास लेखन कई क्रमों से होते हुए आगे बढ़ा है । इसको व्यवस्थित सिद्धांत रूप में व्यवहृत करने का श्रेय फ्रेंच विद्वान तेन को जाता है । तेन ने अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में साहित्येतिहास को समझने हेतु तीन तत्व माने हैं - 
  1. जाति 
  2. वातावरण 
  3. क्षण विशेष 
हडसन ने इसकी आलोचना करते हुए दो तत्वों की उपेक्षा करने की बात कही , वे हैं - 
  1. काव्य सृजक का व्यक्तित्व 
  2. उसकी प्रतिभा 
जर्मन के इतिहास विशेषज्ञों ने इसमें तद्युगीन चेतना को जोड़ा और मार्क्सवादियों ने द्वन्द्वात्मक भौतिक विकासवाद, वर्गसंघर्ष एवं आर्थिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में इतिहास दर्शन की प्रक्रिया को सुस्पष्ट किया । अर्थात फ्रेंच विद्वान् तेन से लेकर रूस के मार्क्सवादियों तक साहित्येतिहास लेखन में कई पक्षों का समावेश हुआ । 

हिंदी साहित्य का इतिहास 


रविवार, जून 09, 2013

सप्तक के कवि

1943 में अज्ञेय जी के नेतृत्व में हिंदी साहित्य के एक नए आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ जिसे विभिन्न संज्ञाएँ दी गई - प्रयोगवाद, प्रपद्यवाद , नई कविता । डॉ . गणपतिचन्द्र गुप्त ने इसे मुन्नी, युवती और बहू की संज्ञा दी । ये तीन अलग - अलग रूप भी हैं और एक दूसरे में समाहित भी । प्रयोगवाद के जनक अज्ञेय जी को माना गया लेकिन उन्होंने दूसरे सप्तक की भूमिका में इस शब्द का खंडन किया और पटना रेडियो से 1952 में नई कविता की घोषणा की , लेकिन नई कविता के जनक के रूप में जगदीश गुप्त ( 1954 में ' नई कविता ' पत्रिका संपादन करने के कारण ) को जाना गया । प्रपद्यवाद भी प्रयोगवाद की ही शाखा थी , इसे नकेनवाद ( नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार और नरेश के पहले अक्षर के आधार पर ) भी कहा गया । 
अज्ञेय जी का योगदान सप्तकों के संपादन के कारण भी है , इस प्रयास से उन्होंने हिंदी को अनेक कवि दिए जो अज्ञेय जी के ही शब्दों में राहों के अन्वेषी ( प्रथम सप्तक की भूमिका ) हैं । 


सप्तकों के कवि 

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