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बुधवार, सितंबर 27, 2023

गुनगुनी धूप सी कविताओं का संग्रह 'गुनगुनी धूप में कविता"

लघु कविता-संग्रह - गुनगुनी धूप में कविता 
कवि - बलबीर सिंह वर्मा 'वागीश'
प्रकाशक - आनंद कला मंच प्रकाशन, भिवानी 
पृष्ठ - 120 
मूल्य - 250 / -
लघु कविता इन दिनों स्वतंत्र विधा के रूप में फल-फूल रही है। हर महीने अनेक लघु कविता संग्रहों का प्रकाशन हो रहा है। बलबीर सिंह वर्मा 'वागीश' का लघु कविता संग्रह 'गुनगुनी धूप में कविता' इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। 
यह कविता संग्रह लघु कविता आंदोलन के प्रणेता रूप देवगुण जी को समर्पित है और उन्होंने ही इस संग्रह की भूमिका लिखी है। इसमें वे लघुकविता को अलग विधा मानने के कारण को स्पष्ट करते हुए कहते है - 
जब कभी मैं कोई कविता-संग्रह पढ़ता था, तो मुझे लगता था कि कविताओं में सिमटी छोटी कविताएँ घुटनमय जीवन व्यतीत कर रही हैं। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। उन्हें कोई पढ़ता नहीं है, उन्हें कोई पूछता नहीं है। कई बार मेरे मन में आता था कि लघुकविता को कविता से अलग कर देना चाहिए। फलस्वरूप मैंने 'हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकविताएँ' संकलन का संपादन किया। इस संकलन के एक आलेख में मैंने 'लघु कविता' के तत्वों का निर्धारण किया जिसके अनुसार अब तक हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, मध्यप्रदेश में साठ से ऊपर लघुकविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (पृ. - 9)
कवि आत्मकथ्य में कहता है - 
इस संग्रह में प्रकृति, श्रृंगार, अध्यात्म, गरीबी, संस्कार, कविता, कलम, बचपन, परिवार, समाज, राजनीति, नारी, बचपन, गाँव, खेत, रिश्ते, भाईचारा आदि अनेक विषयों को समाहित करने की कोशिश की है। (पृ. - 12)
101 कविताओं से सजा यह कविता-संग्रह कवि की इस उक्ति का विस्तार है। शीर्षक के आधार पर कवि ने कविता को अपनी कविताओं के केंद्र में रखा है। वह कविता को परिभाषित करता है। कलम की ताकत को दिखाता है। कवि कविता और कलम से संवाद करता है। कविता गुनगुनाती धूप में नहाती भी है और वह खुश भी है, लेकिन साथ ही कवि कविता की बेबसी को ब्यान करता है। आज का कवि खुद को उपेक्षित महसूस करता है, लेकिन कवि अपने को बंजारा बताता है।

कविता संग्रह की शुरूआत में पहली कविता में कवि माँ शारदे का वंदन करता है और अगली दो कविताओं में पुस्तक को ज्ञान का भंडार बताते हुए पुस्तक को गहना मानने की सलाह देता है। कवि हिंदी के महत्त्व का बखान करते हुए इसको हिंद की राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहता है। गाँव का शहर से अंतर और गाँव की महिमा का बखान करती हुई कविताएँ इस संग्रह में हैं। कवि नव वर्ष की बधाई देता है, माँ के त्याग को दिखाता है, मंजिल पाने का तरीका बताता है, हौसला रखने के लिए चींटी का उदाहरण देता है। यह संसार उसे मकड़ी के जाल सा लगता है और वह मोहमाया को छोड़ने और निष्काम कर्म का संदेश देता है। ज़िंदगी चार दिन का बुलबुला है, दुनिया रैन बसेरा है। वह अंतर्मन के चक्षुओं को खोलने और जीवन ढलने पर हरि से नाता जोड़ने की बात करता है। वह बेटा-बेटी को एक समान मानते की बात कहते हुए बेटी को अधिक महत्त्वपूर्ण बता जाता है -

बेटा यदि भाग्य है तो / बेटी होती सौभाग्यशाली (पृ. - 21)
वह बेटी को कोख में न मारने की बात करता है। मोबाइल के बचपन पर सेंधमारी का वर्णन है। युवा के सामने दोराहा है। कवि को संस्कारों के खो जाने का दुख है। औलाद माँ-बाप को छोड़ देती है। भाई-भाई, मित्र-मित्र के बीच स्वार्थ पसर गया है। जरूरत पड़ने पर सब दरवाजे बंद मिलते हैं। रिश्तों में खटास आ गई है, जबकि जहाँ रिश्तों की कद्र हो, वह परिवार मन को भाता है। परिवार जीवन का आधार है। कवि भाईचारे का हिमायती है और सबको तकरार छोड़कर जीवन के मकसद को पहचानने को कहता है, क्योंकि यह ज़िंदगी दोबारा नहीं मिलेगी। वह युवाओं को सचेत करता है कि बुढ़ापा तुम पर भी आना है। कवि को लगता है कि यहाँ इंसान शैतान बन गया है। जीवन मूल्यों का पतन हो रहा है, जबकि कवि जीवन में सदाचार को असली संपदा बताता है। कवि मीठा बोलने के महत्त्व को दिखाता है -
मीठी बोली होती सदा / ज़िंदगी का आधार / 
बना देती जीवन को / मानो स्वर्ग द्वार (पृ. - 35)
मानव मन की तुलना कवि ने पंछी से की है और वह पंछियों से ही मजहबों की सीमा तोड़ने की प्रेरणा लेने को कहता है। 

कवि ने समाज पर घटी घटनाओं को विषय बनाया है। वह दशहरे के दिन हुई रेल दुर्घटना पर लिखता है। निर्भय की पुकार न सुनने वालों को पत्थर दिल कहता है। पत्थर के माध्यम से कवि ने किस्मत के महत्त्व को भी दिखाया है। किस्मत राजा को रंक और भिखारी को धनवान बना देती है। कवि किस्मत से न घबराने की बात करता है। वह दृढ़ निश्चय अपनाने को कहता है। नारी, किसान और बंजारों की व्यथा का वर्णन है। अच्छे मतदाता की पहचान बताता है। नेताओं के प्रपंच बताता है। पत्र पेटी को याद करता है। कवि वीर रस के कवियों की तरह सेना को आज़ादी देने की बात करता है, लेकिन यह मानवता के लिए घातक है। दीवाली पर वह एक दीप वीरों के नाम जलाने को कहता है।  

दुपट्टे के साथ कवि का मन मचल उठता है। उसे अपना मन पतंग सा भी लगता है। जुगनू उसे सितारों से लगते हैं। माखनलाल चुतर्वेदी की कविता फूल की अभिलाषा की तरह कवि फूल को धन्य बताता है, लेकिन साथ ही अप्रैल फूल की भी बात करता है। करवा के चाँद को वह जल्दी आने को कहता है। करवा चौथ उसे त्याग व प्रेम का त्योहार लगता है। पतझड़, शीत ऋतु और बसंत ऋतु का वर्णन है। वह नदी से बिना रुके बहते रहने की बात अपनाने को कहता है। जीवन एक मेला है, जिसमें सुख-दुख चलते रहते हैं। कवि समय की ताकत को पहचाने को कहता है। 

कवि ने वर्णनात्मक, संवादात्मक, संबोधनात्मक शैलियों को अपनाया है। काफी कविताओं में तुकांत का प्रयोग है। शिल्प पक्ष के बारे में भूमिका में रूप देवगुण जी कहते हैं - 

इस संग्रह के शिल्प की ओर अगर हम ध्यान दें, तो इन लघुकविताओं में अलंकार स्वयं ही प्रस्फुटित हुए हैं। माया रुपी संसार में रूपक, घूँ-घूँ, इंसान इंसान तथा छोटी-छोटी में पुनरुक्ति, पुस्तक सुनाती हमें कहानी में मानवीकरण, मोह-माया, लोभ-लालच में अनुप्रास, मन मेरा पतंग सा, दिल हुआ पत्थर सा, जिंदगी पानी का बुलबुला में उपमा आदि अलंकार लघुकविताओं को अलंकृत कर रहे हैं।" (पृ. - 11)
संक्षेप में विषय वैविध्य और शिल्पगत सौंदर्य के कारण 'गुनगुनी धूप में कविता' लघु कविता-संग्रहों के बीच महत्त्वपूर्ण स्थान बना पाएगा, ऐसा मुझे विश्वास है। कवि इसके लिए बधाई का पात्र है। 

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