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बुधवार, अक्तूबर 11, 2017

प्रेम, समाज और जीवन-दर्शन की बात करता ग़ज़ल-संग्रह

ग़ज़ल-संग्रह – कहो बात दिल की
शायर – रूप देवगुण
प्रकाशक – सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल
पृष्ठ – 80
कीमत – 200 /- ( सजिल्द )
ग़ज़ल का हर शे’र आजाद होने के कारण शायर के पास अपनी बात कहने के मौके ज्यादा होते हैं | वह एक ही ग़ज़ल में विभिन्न पहलुओं को उठा पाने में सफल रहता है | रूप देवगुण का गजल संग्रह “ कहो बात दिल की ” भी इसी का उदाहरण है | शायर अपनी 70 गजलों के द्वारा प्रेम, समाज और जीवन-दर्शन की बात करता है |

            पारंपरिक ग़ज़ल यहाँ सौन्दर्य, मय, साकी, इश्क की बात करती है तो कुछ गज़लकार इनसे परहेज करने की बात करते हैं लेकिन रूप देवगुण की गजलों में पारम्परिक और आधुनिक विषयों का बड़ा संतुलित समावेश है | इश्क का ब्यान उनकी गजलों में बड़ी सुन्दरता से हुआ है | उनका इश्क सार्वभौमिक भी है और व्यक्तिगत भी | इश्क की अमरता पर वे लिखते हैं -
इश्क़ तो इश्क़ है दुनिया वालो
मिट सका कब, मिटाओगे कब तक ( पृ. – 42 )
उन्हें वही शख्स प्यारा लगता है जो मुहब्बत करता है | मुहब्बत के बिना ज़िंदगी अँधेरों से भरी है | वे नफरतों से दूर रहने का संदेश देते हैं –
नफरतों की राह पर कुछ नहीं मिलता
प्यार की डगर पर चलना जरूरी है ( पृ. – 28 )
इश्क़ की बात करना आसान है मगर ये करना मुश्किल है | जमाना सदा ही प्यार का दुश्मन रहा है -
प्यार करके देखना है इबादत बस यही
क्यों जमाना फिर इसे है जुर्म कहता रहा  ( पृ. – 20 )
         व्यक्तिगत स्तर पर भी प्यार की बड़ी खूबसूरत अभिव्यक्ति उनकी ग़ज़लों में मिलती है | उनकी नाजुक ख्याली देखिए –
सब की नज़रें आपकी ही तरफ महफिल में थीं
आपका हम से ही नज़रें चुराना अच्छा था ( पृ. – 66 )
बेवफ़ाई का चित्रण भी कुछ ऐसा ही है –
पूछ मत क्या हमारे साथ उसने कर दिया
दिल दिया था उसे चटका गया वो एक दिन ( पृ. – 53 )
 प्यार के इजहार को भी वे इसी नजाकत से कहते हैं -
उनकी झुकी नजरें बता देंगी बहुत कुछ
मिलकर नजर उनकी झुकी हो तो बताना | ( पृ. – 30 )
वे लिखते हैं भेजे चमेली के फूल प्रियतम जुल्फों में सजाए तो अच्छा लगेगा | इश्क का नशा मय के नशे–सा है -
किसी के इश्क का मुझ पर चढा जो नशा
लगा बिन मय पिए जैसे बहकना हुआ ( पृ. – 41 )
प्रियतम का साथ उन्हें संबल देता है -
आए साथ तुम तो है लगता मुझे
जैसे मिल गया है किनारा मुझे ( पृ. – 37 )
उनका प्यार पाक है
सब यहाँ पर जिस्म की बातें करेंगे
प्यार अपना तो रूह में पलता रहेगा ( पृ. – 40 )
वे उन पलों को याद करते हैं जब रकीब उनके बारे में सोचकर जलते हैं  -
आप बैठे करीब मेरे थे आकर
सोच करके रकीब जलता रहेगा ( पृ. – 40 )
उन्हें वे पुराने पल भी याद आते हैं जब उन्होंने उनको उन्हीं से चुरा लिया था | प्रियतम से मिलन न होने पर भी उन्हें उसी के सपने आते हैं -
आती रहती है वो सपनों में
वैसे वो हो चुकी पराई है ( पृ. – 64 )
वे दुनिया वालों से सवाल करते हैं -
तुम बताओ तराजू वाले हो
दिल के जज़्बात को तोलें कैसे ( पृ. – 29 )
         प्यार के अतिरिक्त जीवन के विभिन्न विषयों को भी उन्होंने उठाया है | वे ईश्वर के सर्वव्याप्त होने की बात करते हैं –
है बहुत झगड़े यहाँ पर जात मजहब नस्ल के
सबके दिल में वो बसा है मैं बताना चाहता हूँ ( पृ. – 23 )
वे दुनिया के चलन को देखकर हैरां होते हैं | दुनिया में कोई अपना नहीं | हालात न सुधरने का उन्हें दुःख है | आज का दौर बेगानेपन का दौर है, वे उस जमाने का जिक्र करते हैं, जब सारी गली घर हुआ करती थी | उनको लगता है कि वो लोग खो गए हैं, जिन पर देश को नाज था | उनका मानना है -
मुल्क पर लोग जो कुर्बान हो गये
बस यही कौम की पहचान हो गये ( पृ. – 34 )
वे अपना नसीब ख़ुद बनाने की बात करते हैं | सब तुम्हें प्यार करें इसके लिए वे ख़ुद में खूबियाँ लाने की बात कहते हैं | दोषारोपण तभी होता है जब हम ख़ुद गलत होते हैं - 
क्यों उठी उँगलियाँ
है कहीं खामियां ( पृ. – 35 )
वे परोपकारी जीवन के अभिलाषी है , वे कहते हैं गिरे को उठाना, किसी को दिल में बसाना, बच्चे को हंसाना उन्हें अच्छा लगेगा |
अपनों के लिए तो कौन है जो करता नहीं
करना है तो कुछ कर बेगाने के लिए ( पृ. – 24 )
वे झूठे ख़्वाब दिखाने के पक्षधर नहीं | अहंकार पतन की तरफ ले जाता है इसलिए वे गगन को छोड़कर जमीं पर रहने की बात करते हैं | वे आदमी को असलियत से रूबरू करवाते हुए कहते हैं -
आसमां पर हमेशा जो उड़ा करता था
एक दिन पर उसे घुटनों पे चलते देखा ( पृ. – 22 )
वे बच्चों को गिरकर संभलना सिखाने की बात करते हैं | उनका मानना है कि साथ सिर्फ मुहब्बत की दौलत जाएगी | वे सुबह मन्दिर जाते हैं तो शाम को मस्जिद | वे इश्क के अंजाम, आखिरी जाम, मिले ईनाम और काम सबमें मजा देखते हैं | उनका दृष्टिकोण आशावादी है –
ज़िंदगी की शाम ढलने जा रही है
और ढलती शाम का अपना मजा है ( पृ. – 73 )
वे पूछते है कि बरसात में नहाकर आप मौसम का मजा क्यों नहीं लूटते | वे मौत से डर कर आँसू बहाने के बजाए ज़िंदगी को ज़िंदगी समझकर जीने की बात करते हैं | वे गम के गीत छोड़कर ख़ुशी देने वाले गीत सुनाने को कहते हैं | वे फाकाकशी को ख़ुशी से गुजारने की बात करते हैं और ज़िंदगी को ख़ुद सुधारने का संदेश देते हैं | वे लिखते हैं -
तुम कब तलक बैठे रहोगे बस किनारे पर ही
डूबो बहुत गहरे वहां से सीपियाँ ले आओ ( पृ. – 25 )
वे दोस्त से सवाल करते हैं -
आम कैसे हुआ ये फसाना बता
ये तो तेरे-मेरे बीच की बात थी ( पृ. – 31 )
दोस्ती पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं –
न आए कभी तुम न हम आये
इसे अब कहें दोस्ती कैसी ( पृ. – 65 )
वे कभी दोस्तों को आजमाने की बात करते हैं तो कभी सारी पुरानी बातें भुलाकर पुकारने का संदेश देते हैं | वे कहते हैं कि रूठे यार मनाने पड़ते हैं | उनका मानना है कि जमाने से जख्म छुपाने के लिए सबसे हंसकर मिलना पड़ता है |
रस्मो रिवाज ऐसे निभाना पड़ा
दिल रो रहा था पर मुस्कराना पड़ा ( पृ. – 51 )
            वे संसार की नश्वरता को महसूस करते हैं, उनके अनुसार ज़िंदगी के मुसाफिर नदियों के पानी की तरह हैं -
यहाँ चार दिन का बसेरा है अपना
बुलावा जो आया तो अजाना पड़ेगा ( पृ. – 74 )
वे राजनेताओं पर तंज कसते हैं कि वे जनता को अधिकार नहीं देते | पुरस्कार खरीदने वालों पर तंज कसते हैं -
ईनाम तुम बेशक बहुत पा रहे हो
सब जानते हैं कि किस तरह छा रहे हो ( पृ. – 32 )
सामाजिक असमानता के विरुद्ध कलम चलाते हैं -
घुट रही है झोपडी महलों के साए में दबी
धूप सब पर आए मैं इनको गिराना चाहता हूँ ( पृ. – 23 )
अत्याचार सहने वाले की दशा का सजीव चित्रण करते हैं - 
अश्क सारे उसके सूख गये पलकों पर
जुल्म दुनिया के हर रोज उठाए उसने ( पृ. – 48 )
वे देश से पलायन के विरोधी हैं और विदेश भागने वालों को आगाह करते हैं -
जा के परदेस में घर नहीं मिलेगा
जा रहे हो जहाँ छोड़ कर वतन को ( पृ. – 13 )
               वे अपनी गलतियों को स्वीकार करते हैं | जैसा उन्हें महसूस होता है, उसे वो खुले दिले से स्वीकार करते हैं -
अब आप मत बताओ क्या कहा क्यों कहा
हमको बुरी लगी है बात का क्या करें ( पृ. – 44 )
उन्हें इस बात का दुःख सताता है कि माँ-बाप को क्यों रुलाया | वे ख़ुद की प्रशंसा नहीं चाहते, उनका कहना है -
खूबी नहीं मुझमें कमी हो तो बताना
बातें बुरी मेरी लगी हों तो बताना ( पृ. – 30 )
खुद्दारी उनमें कूट-कूटकर भरी हुई है
माँगी नहीं भीख में कभी रोटी
मंजूर है भूख से ही मर जाना  ( पृ. – 78 )
वे ख़ुद को सस्ता मानने को भी तैयार नहीं
तुम्हें क्या बताएँ कीमत हमारी क्या
नहीं दाम लेकिन सस्ते नहीं हैं हम ( पृ. – 11 )
वे झुकने को तैयार हैं, मगर सिर्फ प्यार के लिए -
झुके ज़िंदगी भर हम प्यार की खातिर
गिराने से लेकिन गिरते नहीं हैं हम ( पृ. – 11 )
लेकिन जमाने जैसा हो जाना भी उन्हें स्वीकार नहीं, वे अपनी फितरत नहीं छोड़ते -
जमाना शूल बाँटता रह गया
वहीं हम फूल कुछ खिलाते रहे ( पृ. – 79 )
प्रकृति का चित्रण भी शायर ने अनेक जगहों पर किया है | बरसाती रात का चित्रण देखिए –
बिजलियों की चमक हम अकेले यहाँ
और हमको डराती हुई रात थी ( पृ. – 31 )
                भाव पक्ष से यह ग़ज़ल-संग्रह यहाँ पाठकों के सामने विविध विषय बड़ी सफलतापूर्वक प्रस्तुत करता है, वहीं शिल्प पक्ष से भी ग़ज़ल के नियमों पर खरा उतरता है | शायर ने यहाँ सरल और सहज भाषा का प्रयोग किया है, वहीं प्रचलित मुहावरों का भी शानदार प्रयोग किया है - 
अब फसल काटो वही
बीज जिसका बो गए ( पृ. – 45 )
               संक्षेप में, शायर का यह प्रयास सराहनीय है और निस्संदेह वे इसके लिए बधाई के पात्र हैं |
दिलबागसिंह विर्क
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