BE PROUD TO BE AN INDIAN

बुधवार, मई 25, 2016

देहवादी लोगों की कथा कहता कहानी-संग्रह

कहानी संग्रह - वो अजीब लड़की 
लेखिका - प्रियंका ओम 
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन 
कीमत - 140 /- ( पेपरबैक )
पृष्ठ - 152
विपरीत लिंगियों में आकर्षण का होना स्वाभाविक है | प्यार का संबंध भले आत्मा से है, लेकिन देह का अपना महत्त्व है | आकर्षण की यात्रा देह से आत्मा तक सफर करती है, लेकिन अगर यह देह तक सिमटकर रह जाए तो यह मानसिक विकृति है | समाज में इस विकृत मानसिकता वाले लोगों की भरमार है | युवा लेखिका ' प्रियंका ओम ' का पहला कहानी-संग्रह " वो अजीब लड़की " उन्हीं लोगों की दास्तान कहता है, जिनकी सोच सिर्फ़ और सिर्फ़ देह तक सिमटी है | ऐसे बेबाक विषयों को चुनना बड़ी दिलेरी की बात है, क्योंकि बेबाकी और अश्लीलता में बड़ा महीन अंतर होता है | एक के लिए जो विषय बेबाक है, वही दूसरे के लिए अश्लील है | इसके विपरीत भी होता है | हालांकि साहित्य में विषय के साथ-साथ प्रस्तुतिकरण भी इसके बारे में काफी हद तक लोगों को राय बनाने में मदद करता है | ' वो अजीब लड़की ' कहानी संग्रह में 14 कहानियां हैं और कई बार वर्णन उस सीमा तक पहुंचता है, यहाँ बेबाकी और अश्लीलता दोनों में कोई भी अर्थ समझने की छूट पाठक को मिल सकती है |

            कथानक के आधार पर कुछ नए प्रयोग लेखिका ने किए हैं | ' सौतेलापन ' कहानी में सौतेलेपन को अलग दृष्टिकोण से देखा गया है | दूसरी माँ और दूसरे पिता को सौतेला कहा जाता है, लेकिन लेखिका कम प्यार को भी सौतेलापन ही मानती है | कहानी की शुरूआत में माँ बेटी से कहती है - 
माँ की मौत के बाद बाप भी सौतेला हो जाता है | " (पृ. -9 ) 
यह कड़वा सच ही तो है | लेखिका इसकी तुलना कैंसर और एड्स बीमारियों से करते हुए इसे उससे भी खतरनाक मानती है  -
ये बीमारी कैंसर की तरह चुपचाप नहीं आती | इसके लक्षण शुरूआती दिनों में ही दिखने लगते हैं | न ही ये एड्स की तरह होती है | जी, इसमें शरीर के अंत का खतरा नहीं होता, बल्कि आत्मा मर जाती है |(पृ. -12)
इस कहानी का अंत भी इसे अलग श्रेणी में रखता है - 
मैंने गर्भपात का निर्णय लिया था |
जानती हूँ एक पाप से बचने के लिए महापाप किया था, लेकिन मुझे सौतेलेपन की इस बीमारी का अंत यहीं करना था |(पृ. -17) 
निस्संदेह अंत अस्वाभाविक है और कम-से-कम भारतीय समाज में तो स्वीकार्य नहीं लेकिन यह अंत कथानक की माँग है | यह गर्भपात इसलिए भी जरूरी है क्योंकि नायिका सौतेलेपन के दंश को सिर्फ़ देह पर नहीं अपितु मन पर भी झेल रही है | सौतेलेपन का विषय एक अन्य कहानी में भी है, लेकिन परोक्ष रूप से | यह कहानी है ' मौत की ओर ' | यह कहानी कैंसर की दहशत को दिखाती है |  इसी संदर्भ में सौतेलापन का विषय भी आ जाता है - 
क्या वो अकेले हमारे बच्चे को माँ का प्यार और पिता का वक्त दोनों दे पाएँगे ? या फिर दूसरी शादी करेंगे ? लेकिन अगर दूसरी शादी के बाद भी हमारे बच्चे को माँ का प्यार नहीं मिल पाया तो ? हमारे बच्चे के लिए दूसरी माँ की कल्पना से ही मेरा अस्तित्व हिल गया | नहीं-नहीं इससे तो अच्छा है ये भी मेरे साथ ही...(पृ. -37 )
               यह कहानी अकारण ही भिन्न-भिन्न परिस्थितियों से खुद को जोड़ लेने वाले पढ़े लिखे व्यक्तियों का चित्रण तो करती ही है, साथ ही दुःख के क्षणों में भगवान पर सवाल उठाने की प्रवृति को भी उजागर करती है - 
सब कहते हैं, वो जो भी करता है अच्छे के लिए करता है | मैं जानना चाहती हूँ कि मेरी माँ की मौत में उसकी कौन-सी अच्छाई छुपी थी | तीन बच्चों को अनाथ करके वो किसका नाथ बनना चाहता था ?(पृ. -38)
ऐसे ही क्षणों में आदमी भगवान के बारे में दार्शनिकता दिखाता है - 
लेकिन क्या पत्थरों में भी भगवान बसते हैं ? या सिर्फ़ अपनी महत्ता के लिए उसने पहले इंसान बनाया फिर उसे डराया ताकि लोग उसके चरणों में अपना सर फोड़ सके ! (पृ. -37 )
              ' सॉरी ' कहानी पति-पत्नी के अहम् के टकराव की कहानी है | लेखिका ने सॉरी के कारण का वर्णन न करके दोनों पात्रों की मनोस्थिति का चित्रण किया है | दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते हैं, लेकिन ' सॉरी मैं ही क्यों कहूं ' का अहम् उन्हें छोटा-सा शब्द बोलने से रोक रहा है | यह अहम् ही है, जो अक्सर रिश्तों में टकराव और प्यार के अंत का कारण बनता है, वरना प्यार सब करते हैं और अधिकतर लोग इसे निभाना भी चाहते हैं | इस कहानी का अंत दुखांत भी हो सकता था, लेकिन लेखिका ने इसे सुखांत रखा है |
दरवाजा खोलने से पहले लड़का जरा चेहरा उठा कर और लड़की जरा झुका कर एक-दूसरे के होंठ को चूमते हैं | ( पृ. - 25)
              ' लावारिस लाश ' में एक लाश की आत्मा अपनी कथा कहती है | नारी को केवल देह मात्र समझा जाता रहा है, तभी तो प्रगतिवाद काल में इसके विरोध में आवाज उठाते हुए लिखा गया था - योनि नहीं है रे नारी, वह भी मानवी प्रतिष्ठित " लेकिन स्थिति कहाँ बदली है | लेखिका देह के प्रति सोच को इस कहानी में दिखाती है | वो खेल के नाम पर कोच द्वारा किये जाने वाले शोषण का भी संकेत देती है |  ' मृगमारीचिका ' सोशल मीडिया को लेकर लिखी गई कहानी है, लेकिन सोशल मीडिया पर दोस्त बनाने का आधार विवाह पूर्व का जीवन है, जिसे पूरे मनोयोग से उभारा गया है, लेकिन सपने के माध्यम से लेखिका प्रीति को भटकने से बचा लेती है |  ' फिरंगन से मुहब्बत ' इस संग्रह की सबसे बोल्ड कहानी है | फिरंगन अपने सोशल मीडिया पर बने प्रेमी से मिलने भारत आती है, जबकि नायक फिरंगन के शरीर का भूखा है | प्रेम और सेक्स के इसी ताने-बाने को लेकर यह कहानी बुनी गई है | दोनों साथ-साथ रहते हैं, इकट्ठे सोते हैं, किस करते हैं, लेकिन लड़का जब-जब आगे बढ़ता है, वह उसे रोक देती है | कंडोम का न होना भी कारण रहता है | अंतिम रात वह भी हर सीमा लांघना चाहती है, कंडोम भी है, लेकिन वह संभोग से पहले लड़के को अपने वेश्या होने का सच बता देती है क्योंकि वह उसे प्रेम करती है और उसे धोखे में नहीं रखना चाहती | इस सच को जानकर वह पीछे हट जाता है, लेकिन जब वह वापस चली जाती है, तब उसे अहसास होता है कि वह भी प्रेम करता है | वह उसे वापस बुलाना चाहता है, लेकिन तब तक देर हो जाती है | इस कहानी में दोनों के अन्तरंग पलों का बड़ी बेबाकी से चित्रण किया गया है, हालांकि कहानी की शुरूआत की ये पंक्तियाँ कथा को उलझाती हैं - 
          " पता नहीं उसकी आँखें चुप थीं या मैं उसके शब्द समझ नहीं पा रहा था हम दोनों की भाषा अलग-अलग जो थी | वो हिंदी बोल नहीं सकती थी, मैं स्पेनिश समझता नहीं था | " ( पृ. - 55 )
इसमें पहला दोष यह है कि आँखों की कोई भाषा नहीं होती और दूसरा यह कि उनके बीच सांझी भाषा थी, तभी तो वो चैटिंग करते थे और इतने दिनों तक साथ-साथ बातचीत करते रहे, इतना ही नहीं एक बार तो वह हिंदी भी बोलती है | यदि इस प्रसंग को पता नहीं उसकी आँखें चुप थीं या मैं उसके शब्द समझ नहीं पा रहा था, कहकर ही छोड़ दिया जाता तो ज्यादा उचित रहता |
                  ' दोगला ' दोहरे चरित्र के व्यक्तित्व को उद्घाटित करती है | दोगला शब्द आते ही हमारे ध्यान में अच्छे आदमी के भीतर छुपे बुरे रूप की कल्पना उभरती है, लेकिन यह कहानी इस दिशा में नया प्रयोग करती है | इस कहानी का अंत देखिए - 
उनके दोगले चरित्र ने मुझे असमंजस में डाल दिया था | मैं चकित थी | नारी को सिर्फ़ शरीर समझने वाला भक्षक एक रक्षक की तरह सर पर हाथ कैसे रख सकता है ? (पृ. -73 )
बाबा भोलेनाथ की जय ' समाज के विद्रूप पक्ष की कहानी है, लेकिन अलग ढंग से इसका अंत किया गया है | गुलाबी का जीजा जबरदस्ती उसका विवाह खुद से करवा रहा है, लेकिन वह तो बहन के देवर यानी जीजा के भाई विष्णु से प्रेम करती है | गुलाबी को इसका पता अंतिम समय में होता है | दोनों मन्दिर में मिलते हैं और वापस अपने-अपने घर लौट जाते हैं | गुलाबी की शादी उसके जीजा के साथ सम्पन्न होती है, लेकिन कहानी का अंत इस तरह किया जाता है - 
कमरे के बिस्तर पर गुलाबी और विष्णु अर्ध-नग्न बेसुध सो रहे थे |
बियाह तो लाया साली को लेकिन उसको विष्णु का होने से रोक नहीं पाया | 
बाबा भोलेनाथ की जय |( पृ. -82 )
 ' खुदगर्ज प्यार ' में वरुण मीता से प्यार करता है, लेकिन वह उससे शादी नहीं करना चाहता था | मीता सोच रही है - 
तुमने सपाट शब्दों में कहा था तुम वैवाहिक व्यवस्था में विश्वास नहीं करते, तुम्हारे लिए यह एक बंधन मात्र है | "( पृ. -91)
बंधन नहीं चाहिए, लेकिन लड़की का जिस्म चाहिए | लेकिन मीता को लेखिका ने सशक्त पात्र के रूप में उभारा है, वह डोलती नहीं | शादी करती है | वरुण जब बाद में मिलता है तो उसे सबक सिखाती है | लेखिका इस सबक को बड़े प्रतीकात्मक ढंग से ब्यान करती है - 
वेटर दो कॉफ़ी के मग और एक चाय का कप लेकर आ गया | मैंने कॉफ़ी का मग उठा लिया था | ( पृ. -92 )
                      पुस्तक का शीर्षक जिस कहानी पर आधारित है, उसका कथानक भी अलग ढंग से बुना गया है | जैन साहब भी समाज का शिकार हैं और वो अजीब लड़की भी | चाचा, चचेरा भाई जब आपके जिस्म को पाना चाहें तो पुरुष पर विश्वास किसे रहेगा - 
पुरुष पुरुषत्व का एहसास होते ही सिर्फ़ पुरुष रह जाता है और हर स्त्री में सिर्फ़ शरीर देखता है | छी: धिक्कार है |"( पृ. -107 )
प्यार पर भी उसका विश्वास नही रहता - 
प्यार-व्यार कुछ नहीं | मौका मिलते ही बिस्तर पर खींचने के लिए पकड़ा है | इस कलयुग में शरीर की भूख, पेट की भूख से ज्यादा बड़ी है जैन साहब | "( पृ. -98 )
जैन साहब की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, वह जिसे प्यार करते हैं वह बाजारू निकलती है - 
एक दिन लडके को मौका मिल गया | लड़की का हाथ पकड़ वो खेतों में ले गया, लेकिन कपड़े उतारने से पहले ही लड़की नंगी हो गई, पैसे कितने दोगे ?"( पृ. -103 )
इतना ही नहीं वही लड़की बाद में उसकी सौतेली माँ का आसन ग्रहण कर लेती है | यह कथानक इस बात को लेकर अस्पष्ट है कि जैन साहब किस मौके की तलाश में हैं, क्योंकि मौका तो अजीब लड़की उपलब्ध करवा देती है - 
जैन साहब क्या आप मेरे लिए कोई शारीरिक आकर्षण महसूस नहीं करते ?( पृ. -101 )
नहीं कहने पर वह फिर कहती है - 
क्यों आप मर्द नहीं ? "( पृ. -101 )
लाल बाबू ' एक चारित्रिक कहानी है, जो लाल बाबू के चरित्र को उद्घाटित करती है | ऐसे पात्र समाज में आम मिलते हैं, लेकिन इनके निर्माण के पीछे के कारणों को दिखाने का प्रयास लेखिका ने किया है | सबसे पहला निमन्त्रण उसे उसकी चाची देती है - 
            " दिन भर मेरे आगे पीछे, जैसे चच्चा से उसका पेटे नहीं भरता था | उस दिन भी उसी ने कहा आज रात को आ जाओ लल्ला, तुहार चच्चा तो खेत पर ही सोयेंगे फसल की रखवाली के लिए | "( पृ. -109 )
इस कहानी की शुरूआत सोलह साल के लाल के अपने चाची के साथ नंगे पकड़े जाने से होती है | वह शहर भाग जाता है | काफी समय बाद वह जब वापस आता है तो उसे मुस्कराहट से निमन्त्रण मिलता है चच्चा की पतोहू से | जब वह मौका देखकर उस पर झपटता है तो विरोध नहीं होता, अपितु उसकी सहमती साफ़ दिखती है - 
दाग पड़ जाएगा तो इनको का जवाब देंगे हम ?"( पृ. -112 ) 
लेखिका ने तीसरा कारण उसकी कुरूप पत्नी को भी बनाया है | खुद की शादी के बाद तो वह सर्वभक्षी हो जाता है | अब उसे सिर्फ़ औरत का जिस्म चाहिए | ' यादों की डायरी ' में पति की मृत्यु के बाद यादों में तड़पती पत्नी का चित्रण है | ' इमोशन ' आधुनिक प्रेमियों, दम्पत्तियों और वेश्यायों की कहानी है | जिस्म के लिए सब भटके हुए हैं | आधुनिक पत्नियां पतियों को यूं ही छूट नहीं देती - 
ऐसा नहीं है कि इनकी बीवियां ये सब समझती नहीं या जानती नहीं वो भी तो सारा दिन किटी पार्टी और शापिंग के बाद रात या तो किसी फाइव स्टार रूम में या किसी फ़ार्म हाउस के आलिशान कमरे के राजसी गद्दे पर जिगोले के साथ बिताती हैं | ( पृ. -129)
                  इस कहानी में पति, पत्नी सब खुला चरते हैं | पुरुष की नीयत पर वेश्या करारा प्रहार करती है - 
मुझे पूरा यकीन है एक मर्द का ईमान औरत के ब्लाउज में छुपा होता है | "( पृ. -129 )
मर्द का ईमान देखने के लिए बनाए इस थर्मामीटर का प्रयोग वह करती भी है - 
छुपी हुई चीज़ को देखने की जिज्ञासा आम इंसानी फितरत है, इसलिए कभी मैं जान बूझ कर छुपा हुआ दिखाने की मंशा से कुछ गिराकर उठाने के बहाने झुक जाती हूँ और इसी बहाने से गिर जाता है वहां मौजूद पुरुषों का ईमान | "( पृ. -128 )
लेकिन लेखिका जिसे वेश्या रूप में दिखाती है वह कोई कोठे वाली नहीं, अपितु आधुनिक काल गर्ल है, ऐसी लड़कियों को पहचानना मुश्किल होता है | वह अपने में बताती है - 
मैं तंग गलियों की सस्ती दुकानों में उपलब्ध नहीं हूँ | ( पृ. -129 )
किसी पुरुष से उसका कोई इमोशनली अटैचमेंट नहीं होता - 
किसी होटल का आलिशान कमरा, फाइव कोर्स मेनू और lubricated कंडोम के साथ किसी रेपुटेड हॉस्पिटल से एच आइ वी नेगेटिव का certificate, जो वो खुद भी साथ रखती है | अपडेटेड |  "( पृ. -133 )
समाज ऐसा क्यों हो गया है, इसके कारण भी कहानी में मौजूद हैं - 
पैसा, पॉवर और प्रमोशन ऐसी बहुत सी जिजीविषा है, जिसके लिए उन्हें अपनी आत्मा को मारना पड़ता है और जिंदगी भर ढोते हैं सिर्फ़ शरीर |( पृ. -130)
लड़का आज इस काल गर्ल के पास है क्योंकि उसकी प्रेमिका बॉस के साथ गई है | लड़की इस धंधे में है, क्योंकि उसने देखा है कि कैसे माँ पिता के बॉस के साथ घर में रात बिताती है और पिता को काम होने के सूचना डन डना डन कहकर देती है | लेकिन जिस्म के खेल खेलती लड़की कहानी के नायक से खुद को इमोशनली जुड़ा हुआ पाती है क्योंकि वह मासूम है | इसीलिए उससे पूछती है फिर कब आओगे ? अंतिम कहानी ' फेयरनेस क्रीम ' रंग के कारण हीनभावना का शिकार लड़के की कहानी है | वह गोरे रंग की अपनी अध्यापिका के प्रति आकर्षित है - 
मैम ने आज आसमानी कलर की साड़ी पहनी है, लेकिन मैचिंग ब्लाउज के अंदर से उनकी काली ब्रा उनके अंदरूनी राज खोल रही है और उनके बदन से मिलकर आने वाली हल्के परफ्यूम की खुशबू विजय को एक अलग ही दुनिया में ले जा रही थी | ( पृ. -142)
वो मैम के सिग्नेचर चूमता है | सुमन की ओर आकर्षित होता है, जबकि शैलजा उसकी दोस्त भी है और उसे प्रेम भी करती है | जब विजय सुमन की तरफ झुकता है तो शैलजा मनीष की तरफ चली जाती है, यह बात भी उसे अखरती है क्योंकि वन्दना मैम की सीख, सुमन के सपने और शैलजा के सपने उसे वास्तविकता का अहसास दिलाते हैं | सुमन उसे जो प्रणय निवेदन भेजती है वो चिट बदलकर उसे शैलजा को भेज देता है | इस कहानी का अंत अत्यधिक सुंदर है - 
आज फेयरवेल पार्टी है, लेडी डार्सी, विजय और शैलजा स्माइल कर रहे थे, शैलजा ने शिफान की साड़ी पहनी है और विजय ने ब्लू शर्ट |( पृ. -152 )
विजय ने यहाँ प्रेम त्रिकोण को जन्म दे दिया है | 
                       लेखिका ने समाज के जिन पात्रों के आधार पर अपनी कहानियों के विषयों को चुना है, उनके आधार पर देह और अन्तरंग पलों का चित्रण स्वाभाविक ही है और लेखिका ने कथानक का आधा-अधूरा और अस्पष्ट ब्यान करने की बजाए बेबाक ब्यान करने के खतरे को उठाया है | देहवादी सोच और देह के चित्रण के अनेक नमूने हैं - 
औरत की सबसे बड़ी क्वालिफिकेशन उसका शरीर है | प्रिंटेड वाली डिग्रियां सिर्फ़ कागज का टुकड़ा होती हैं जो फ़ाइल की खूबसूरती के लिए होती हैं, जिसे खूबसूरत लड़कियाँ अपने सीने से लगाकर वॉक इन इंटरव्यू के लिए तैयार रहती है | interviewer के सामने जब वो फ़ाइल सीने से हटा कर सामने के टेबल पर रखती है तो उसकी फ़ाइल से पहले उसके सीने के उभार का मुआइना होता है | " लावारिस लाश, पृ. - 29 )
यह समाज का कड़वा सच ही तो है | लेकिन इससे भी कड़वा सच यह है - 
उसका बदन संगमरमर सा शफ्फाक है | देखने वाले ताजमहल कहते हैं, लेकिन ढंके हुए ताजमहल को कौन देखता है ? "लावारिस लाश, पृ. - 33 )
मृत लड़की की आत्मा जब अपने जीवन में झांकती है तो देहवादी सोच का कच्चा चिट्ठा खोल देती है | समाज देह को देखता है और देह बनाने के लिए उसे प्लास्टिक सर्जरी तक स्वीकार है- 
पुश-अप ब्रा भी जब क्लीवेज नहीं बना पाए तब ईश्वर की इस छोटी-सी गलती को नजरअंदाज करने की गरज से उसने प्लास्टक सर्जरी करा ली | "लावारिस लाश, पृ. - 31 )
नारी की देह के प्रति पुरुष की सोच के भी कई चित्र हैं | ' फिरंगन का प्यार '  कहानी का नायक फिरंगन के साथ सटने को dove से नहाने जैसा मानता है | उसके मन की उथल-पुथुल को भी लेखिका ने बड़े सुंदर शब्दों में चित्रित किया है - 
                    " कई बार उसके पारदर्शी कपड़ों से झांकते उसके अंत:वस्त्र मेरे अंदर के पुरुष को झकझोर कर रख देते , लेकिन मैं मर्द और जानवर के बीच के फर्क को नहीं मिटाना चाहता था | "( पृ. - 61 )
लाल बाबू चच्चा की पतोहू को देखकर सोचता है - 
                 " ई अदितवा कितना किस्मत वाला है, दिन भर खेत की मिट्टी में सनेगा, रात में साला मलाई में नहाएगा | सोचते-सोचते तकिया को ही उसकी गोरी कमर समझ दबोच लेता है | "( पृ. - 111 )
नारी देह का पुरुषों के दिमाग पर इस कद्र छाया रहना अनेक विकृतियों को जन्म देता है | समाज में जो हो रहा है वो इसकी गवाही देता है |
               लेखिका ने अन्तरंग क्षणों के भी अनेक चित्र प्रस्तुत किए हैं | उन शब्दों का प्रयोग बड़ी बेबाकी से किया है, जिसे हम सरेआम बोलते संकुचाते हैं | यह सबसे ज्यादा ' फिरंगन का प्यार ' कहानी में हैं | कंडोम का बटुवे में होना, फिरंगन के साथ रहते हुए अंडरवियर गीला होना, कमोड में गंदगी को फ्लश आउट करना बेबाक वाक्य हैं | अंतिम रात का चित्रण देखिए- 
रात की चांदनी में चमकती हुए रेत पर उसका चमकीला शरीर मेरे ऊपर था | हमारे होंठ एक-दूसरे के मुंह में घुस कर इस तरह व्याकुल हो रहे थे मानो बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हों | हमारे हाथ एक-दूसरे के शरीर के सारे रहस्य को बेपर्दा कर रहे थे | मैं कंडोम पहनने ही वाला था कि उसने कहा - मैं prostitute हूँ | "( पृ. - 63 )
लावारिस लाश की आत्मा अपने बारे में कहती है - 
                     " वो शायद किसी यूरोपियन के मनोरंजन और इंडियन की मजबूरी का परिणाम है, लेकिन अगर उस यूरोपियन ने कंडोम का इस्तेमाल किया होता या उस औरत ने एबार्शन करा लिया होता तो वो इस दुनिया में नहीं होती और दुनिया को इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता | "( पृ. - 28 )
वह अफ्रीकन फ्रेंड के बारे में बताती है जो अनप्रोटेक्टेड सेक्स, अनवांटेड बच्चे और अनवांटेड डिजीज से बचने के लिए अपनी जेब में कंडोम रखता है जबकि लोग इन्हें पिछड़ा हुआ मानते हैं | पीवीआर को सेक्स स्थल बताया गया है - 
वो सोचती है बंद कमरे में किया जाने वाला काम लोग पैसे खर्च करके पीवीआर में आकर क्यों करते हैं, जबकि पांच मिनट का काम यहाँ तीन घंटे में भी नहीं हो पाता है और प्यासा कुएँ के पास आकर भी प्यासा रह जाता है |वो अजीब लड़की, पृ. - 100 )
                          लेकिन सिर्फ़ देह और सेक्स का ही वर्णन इस पूरे संग्रह में हो ऐसा नहीं | अनेक स्वाभाविक चित्र बन पड़े हैं, जिनमें आकर्षण, ईर्ष्या का चित्रण भी है और सहज सुन्दरता का भी, परम्परागत बातें, मान्यताएं भी हैं और अनेक उक्तियों का सुंदर प्रयोग भी है | आकर्षण का सटीक चित्रण देखिए - 
                           " बेपरवाह लोगों में एक अजीब-सा आकर्षण होता है. मेरा बेपरवाह होना ही तुम्हें आकर्षित करता था, चुम्बक के नार्थ पोल की तरह और तुम खिंच रहे थे साउथ पोल की तरह | "यादों की डायरी, पृ. - 124 )
एक लड़की के पीछे लड़कों की कतारें लगना सामान्य बात है, लेकिन इस कहानी-संग्रह में कई पुरुष पात्र ऐसे हैं, जिनके पीछे लड़कियों की कतारें हैं | ' फिरंगन से मुहब्बत  ' कहानी का नायक कहता है कि उसके चेहरे की कशिश के कारण कैफे में भीड़ रहने लगी | उसे कॉलेज की कई लड़कियों ने स्वीट कहा था और फिरंगन तो उसे dulce कहती ही है | ' फेयरनेस क्रीम ' कहानी में मनीष विजय को बताता है कि स्कूल कि कितनी ही लड़कियां उस पर फ़िदा हैं | ' खुदगर्ज प्यार '  के वरुण पर ऑफिस की आधी से अधिक लड़कियां फ़िदा हैं | यह शायद औरत का पुरुष को देखने का नजरिया है, ठीक वैसे ही जैसे पुरुष लेखक औरत के बारे में लिखता है | मीता तो वरुण पर लट्टू ही हो जाती है - 
" मेरी बेशर्म नजरें जोंक की तरह तुमसे चिपक गई थीं | मैं जानती हूँ मेरी निर्लज्जता से तुम लिजलिजा महसूस कर रहे थे | तुमने दो चार औपचारिक प्रश्न ही पूछे जिनके उत्तर मैंने यंत्रवत बिना पलक झपकाए दे दिए | " ( पृ. - 85)
भले ही लेखिका ने पुरुष पात्रों के प्रति लड़कियों का झुकाव दिखाया है, लेकिन नारी सुन्दरता का वर्णन करने से भी वे नहीं चूकी -
खड़ी नाक तलवार जैसी और आँख तो ऐसा लगता जैसे दूध से भरे कटोरे में चन्द्रमा की छाया | बाबा भोलेनाथ की जय, पृ. - 76 )
लावारिस लाश ' कहानी की नायिका के बारे में वह लिखती है - 
उसके बाल हल्के भूरे हैं और आँखें हल्की नीली | देखने वालों को कई बार उसके विदेशी होने का भ्रम होता है | "( पृ. - 27 )
नारी सुन्दरता का ऐसा ही चित्र ' वो अजीब लड़की ' में भी मिलता है - 
ड़की जब बोलती थी तो उसकी पलकों की झालर उसके होंठ से ज्यादा मचलते थी | उसकी आँखों में एक जादुई बर्बरता थी, जिनके किस्से स्लेव आइलैंड की कहानियों से मेल खाते थे | लडके को अब कोई भी खुली खिड़की या दरवाजा नहीं खींचता था | उसके पैर एक खुरदरे हाथ की छुअन के चुम्बकीय आकर्षण  में थे | "( पृ. - 102)
वातावरण निर्माण के लिए उनके वर्णन बड़े स्वाभाविक बन पड़े हैं - 
वो एक विशाल शयन कक्ष का दृश्य है, जिसकी दीवारों पर उत्तेजना से भरी आकृति उभरी हुई है | वो शायद महारानी कैथरीन है, जिसने बहुत ही भारी-भरकम गाउन अपने दोनों हाथों से उठाया हुआ है | गर्दन को थोडा मोड़ कर वो पीछे देख रही है | जबकि मुंह आधा खुला हुआ है और आँखें बंद हैं | सोल्जर जैसे कपड़ों में एक पुरुष अपने घटनों पर बैठा है और उसकी जीभ महारानी कैथरीन के दोनों जाँघों के बीच है | सॉरी, पृ. - 21 )
यादों की डायरी ' कहानी में यादों के बड़े स्वाभाविक चित्र हैं | तुलसी के पत्ते पर पैर लगने को पाप मानना, ईलाज के लिए झाड़-फूँक वाले बाबा का आना भी इस कहानी में है, जो भारतीय समाज का सही चित्रण करता है | 
प्रेम और ईर्ष्या को लेकर लेखिका ने अनेक वक्तव्य दिए हैं | ' यादों की डायरी ' में प्रेम और ईर्ष्या का साथ-साथ होना माना गया है - 
प्यार में ईर्ष्या स्वाभाविक है | ईर्ष्या के बिना प्रेम अधूरा है |"( पृ. - 122)
प्रेम के लिए शरीर की आवश्कता पर ' सॉरी ' कहानी में कहा गया है - 
शारीरिक चाह के बिना प्रेम अधूरा है | "( पृ. - 22 )
वो अजीब लड़की ' में भी इसी पक्ष का समर्थन है - 
प्रेम कभी मानसिक नहीं होता | जो मानसिक है वो सिर्फ़ आकर्षण होता है या पसंद हो सकता है, लेकिन प्रेम नहीं | दैहिक आकर्षण के बिना प्रेम अधूरा है | "( पृ. - 105)
प्रेम के प्रति यह नजरिया निस्संदेह हटकर है, लेकिन प्रेम में त्याग के महत्त्व को लेखिका ' खुदगर्ज प्यार ' में दिखाती है - 
प्रेम का अर्थ पाना नहीं सदैव देना ही होता है, इसलिए मैंने भी दे दिया था | तुम्हें तुम्हारी आज़ादी और मुक्त कर दिया था तुम्हें तुम्हारे मन की नपुंसकता के साथ अपने उस बंधन से जिसमें कभी तुम बंधे ही नहीं थे | "( पृ. - 91 )
सोशल मीडिया जैसे लोगों को भटकाता है उस प्रकार के भटकाव से प्रेम के अर्थ बदलते हैं | ' मृगमारिचिका ' में platonic love का जिक्र आता है जिसमें देह का कोई अर्थ नहीं, इसमें आत्मिक प्रेम होता है | आरकुट दोस्त मिलने से पति-पत्नी का प्यार झूठा लगता है -
अब पति का प्रेम उसे दैहिक लगने लगा था और पति बहुत साधारण जबकि अभिषेक की बातें जिसमें ' लव यू ' और ' मिस यू ' का प्रयोग कॉमा और फुल स्टॉप की तरह होता था वो आत्मिक लगता | ( पृ. - 53 )
ईर्ष्या का वर्णन भी अनेक जगह ही | ' सौतेलापन ' कहानी में दो बहनों में ईर्ष्या है - 
अपने गोरे रंग पर इतराने वाली प्रतिमा को ये कब स्वीकार था कि उसकी श्यामली बहन के सामने उसे अनदेखा कर दिया गया था |( पृ. - 13 )
समाज में प्रचलित भ्रांतियों और मान्यताओं का भी बखूबी वर्णन हुआ है | ' सौतेलापन ' में मझली के बारे में कहा गया है - 
बाकी की तुलना में मझला सन्तान हमेशा ही दुःख का भागी होता है | "( पृ. - 11 )
औरत के बारे में ' वो अजीब लड़की ' में सर्वप्रचलित बात को दोहराया गया है - 
औरत एक अबूझ पहेली है | "( पृ. - 101 )
सेक्स में संलिप्त पुरुष और स्त्री दोनों होते हैं, लेकिन दोषी औरत को ठहराया जाना समाज का सामान्य नियम है | ' लाल बाबू ' कहानी में भी यही है - 
जब एक औउरत को अपन इज्जत का फिकर नहीं तो मर्द तो साला कुत्ता होता है, हर जगह मुँह मारता फिरता है, ऊपर से गरम खून |( पृ. - 110)
वो अजीब लड़की ' एक गंभीर समस्या को उठाती है - 
आपको नहीं लगता शादी की उम्र बढ़कर सरकार ने बॉयफ्रेंड, गर्लफ्रैंड और लिव इन जैसे बेबुनियाद रिश्तों को जन्म दिया है | "( पृ. - 98 )
सेक्स के समय जाति-पाति का कोई महत्त्व नहीं, इसे संवाद के माध्यम से कहा गया है - 
सोते वक्त तो धर्म नही पूछा था तुमने ? उसे बहुत गुस्सा आ रहा था |
शारीरिक संबंध बनाना और बात है और पारिवारिक संबंध बनाना अलग बात है |( पृ. - 33)
                संवाद आमतौर पर कम हैं और लेखिका ने वर्णात्मक शैली में भी कहानियाँ कही हैं | मैं पात्र की मौजूदगी से आत्मकथात्मकता का पुट मिला हुआ है | हर पैराग्राफ के बाद स्पेस कहानी को नया आयाम देता है, यह स्पेस मुक्त छंद की कविताओं में आने वाले स्पेस की तरह अर्थ रखता है | इससे एक पात्र का अपने बारे में या किसी विषय पर सोचना बात को भाषण बनने से बचाता है | 
                   चरित्र चित्रण के लिए भी लेखिका ने कई विधियों का प्रयोग किया है | ' सौतेलापन '  की नायिका बड़ी बहन को दी कहती है क्योंकि यह उसका स्वभाव है | पिता का उसे स्टेशन से न लाना और प्रतिमा को लेने उसकी ससुराल जाना पिता का चरित्र दिखाता है | जैन साहब के क्रास वर्ड भरने के लिए न्यूज पेपर खरीदने की आदत उसके चरित्र को उद्घाटित करती है  | चरित्र चित्रण की दृष्टि से ' सॉरी ' और ' लाल बाबू ' महत्त्वपूर्ण कहानियां हैं | ' सॉरी ' कहानी में लड़की का चरित्र वर्णन द्वारा उद्घाटित किया गया है -
लड़की को गुस्सा आता भी बहुत है | गुस्सा तो जैसे उसकी नाक पर होता है | छोटी-छोटी बात पर बिगड़ जाती है और जल्दी शांत नहीं होती | "( पृ. - 19 )
लड़के के बारे में कहा जाता है - 
            " क्यों कहे ? आखिर वो पुरुष है | अहम उसका आभूषण है | बार-बार वो ही क्यों झुके ? "( पृ. - 19 )
लड़की के आत्ममंथन को दिखाया गया है  - 
लड़की को लडके पर प्यार आने लगा था | वो उसके ऊपर चढ़ कर चुम्बनों की बौछार कर देना चाहती है | उसे बता देना चाहती थी कि वो उससे कितना प्यार करती है | लेकिन फिर वो सोचेगा ' शारीरिक चाह है और कुछ नहीं, सॉरी भी तो बोल सकती थी |' लेकिन उसे क्या पता ये भी औरतों का सॉरी कहने का ही तरीका है | " ( पृ. - 22 )
लडके के आत्ममंथन को भी दिखाया गया है - 
सब कुछ मैं ही बोलूँ  ' आई लव यू ' भी और सॉरी भी | क्या पहल न करने की कोई कसम खाई है ? लड़का अब थोडा चिढ ज्ञ है | एक नम्बर की नकचड़ी है | गुस्सा करना तो जैसे उसका जन्म सिद्ध अधिकार है और उस पे कॉपी राईट भी उसी का का | "( पृ. - 23 )
लाल बाबू ' तो है ही चरित्र प्रधान कहानी | वह माहिर शिकार है और घर, बाहर सब जगह शिकार करता है - 
रात को थकी हारी सूर्पनखा जब बिछौने पर औंधे लेटे लाल बाबू से सटी तो शिकार की ताक में माहिर शिकारी लाल बाबू ने अपना काम किया और सो गए | ( पृ. - 114 )
पत्नी को सूर्पनखा नाम लाल बाबू ने उसकी कुरूपता के कारण दिया है, लेकिन जब भूख है तो कुरूपता भी आड़े नहीं आती - 
                " भाभी जी तन और मन दोनों से भूखी प्यासी बैठी रहती | लाल बाबू भूखे होते तो खाना भी प्रेम से खाते और सुरपा की भूख भी मिटाते | पेट पहले भरा होता तो दोनों को लात मार देते |"( पृ. - 116 )
सुरपा के स्वाभिमान को भी चित्रित किया गया है - 
उस दिन जैसे सूरज पश्चिम से उगा था | नींद में बेसुध सुरपा के ऊपर चढ़ गए थे लेकिन उपवास करते-करते सुरपा को भूखे रहने की आदत हो गई थी, सो अपने ऊपर से धकेल दिया था | "( पृ. - 117 )
कहानी का अंत भी उसके स्वाभिमान को ही दिखाता है - 
सूर्पनखा तो छूने भी नहीं देती थी, बिछौना अलग कर रखा था | "( पृ. - 119 )
                   पात्रों का मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रण करने में भी लेखिका को सफलता मिली है | ' सॉरी ' इस दृष्टि से उत्कृष्ट कहानी है |
                    लेखिका की भाषा में अंग्रेजी शब्दों की भरमार है, वैसे तो कई जगह यह स्वाभाविक है, लेकिन रोमन लिपि का प्रयोग अखरता है | पात्रानुकूल क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग भाषा को सरस और रोचक बनाता है | लेखिका ने कई आकर्षक उक्तियों के प्रयोग से कथ्य को निखारा है - 
बुद्ध ने प्रेम का संदेश दिया था और प्रतिमा दी ने घृणा का |सौतेलापन, पृ. - 15 )
रिश्तों की मजबूती के लिए इंसानों को सीमेंट और बालू के मिश्रण से नहीं जोड़ा जाता है | जोड़ा जाता है तो प्रेम से, वो प्रेम भी निचोड़े हुए नीम्बू से आखिरी बूँद की तरह मेरी आत्मा से निचुड़ गया था |"सौतेलापन, पृ. - 16 )
" नेवले के डर से सांप अपने ही बच्चों को खा जाता है | "सौतेलापन, पृ. - 17 )
" लोकल बसों में भी फ़ाइल दुपट्टे की तुलना में ज्यादा प्रोटेक्टिव है | "लावारिस लाश, पृ. - 29 )
" आजकल की लड़कियों को कब क्या बुरा लग जाए कहना मुश्किल है | "वो अजीब लड़की, पृ. - 95 )
                  आत्महत्या और हत्या के फार्मूलों से भी लेखिका परिचित लगती है | महान हस्तियों और फ़िल्मी उदाहरणों का जगह-जगह जिक्र बताता है कि वह उनसे किस कद्र प्रभावित है | 
                  लेखिका ने जिन विषयों को चुना और जिस तरीके से निभाया वह काबिले तारीफ है | ऐसे विषय, खासकर जब कोई महिला उठाए तो आमतौर पर कम ही हज्म होते हैं, लेकिन पुस्तक का दूसरा संस्करण आ जाना बताता है कि उनकी कहानियों को स्वीकार किया जा रहा है | ये कहानियां हिंदी साहित्य को कितना समृद्ध करेंगी और कैसा स्थान बना पाएंगी, यह कहना जल्दबाजी होगा, लेकिन यह निश्चित है लेखिका अपनी बेबाकी से पाठकों के दिलों में घर कर रही है, आशा है उनकी कलम आगे से और बेहतर कहानियां साहित्य जगत को देगी | 
दिलबागसिंह विर्क 
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3 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

मैंने ये किताब पढ़ी है
पर आपने जिस तरह से विस्तार दिया है वो अद्भुत है
गजब !

Unknown ने कहा…

खूबसूरत समीक्षा।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-05-2016) को "कहाँ गये मन के कोमल भाव" (चर्चा अंक-2355) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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