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बुधवार, अक्तूबर 28, 2015

एक सार्थक प्रयास है हिंदी-हाइगा का प्रकाशन

ब्लॉग जगत में हाइगा के लिए ख्याति प्राप्त नाम ऋता शेखर मधु जी ने हाइगा की पुस्तक के साथ प्रिंट मीडिया में भी छाप छोड़ी है । हाइगा एक जापानी विधा है - हाइकु, तांका , चोका, सेदोका आदि की तरह लेकिन इसमें भेद यह है कि यह चित्र पर आधारित है । हाइकु और चित्र का मेल है हाइगा । इसी दृष्टिकोण से पुस्तक प्रकाशन एक कठिन कार्य था लेकिन मधु जी ने कर दिखाया । 

वैसे जापानी विधाओं को लेकर भारतीय साहित्यकार विरोधी रुख अपनाए हुए हैं । यह सचमुच हैरानीजनक है । हम जिस पैन से लिख रहे हैं वह विदेशी हो सकता है, हम जिस मोबाईल या लैपटॉप से ब्लॉग का संचालन करते हैं वह विदेशी हो सकता है लेकिन विधा विदेशी नहीं होनी चाहिए । इन विदेशी विधाओं में समस्याएं, भाव देशी हैं यह वो सोचने को तैयार ही नहीं । फिर इनको अपनाकर हम कुछ भी विदेश को नहीं देते जबकि विदेशी वस्तुओं द्वारा धन विदेशों को भेज रहे हैं जबकि इन विधाओं को अपनाकर हम देशी साहित्य को ही समृद्ध किया जा रहा है । 
यह विरोध मुक्त छंद और ग़ज़ल को भी सहना पड़ा था । निराला जी इनके लिए साहित्यकारों के कोपभाजन बने थे लेकिन यह विधाएं आज बहु प्रचलित हैं । जापानी विधाएं भी बहुप्रचलित होंगी लेकिन निराला जैसे प्रचंड व्यक्तित्व की जरूरत है । बहुत से साहित्यकार इस दिशा में प्रयासरत हैं, मधु जी का नाम भी उन्हीं के साथ जरूर लिया जाएगा, ऐसा संदेश यह पुस्तक दे रही है । 
                         प्रस्तुत पुस्तक में जो हाइगा बनाए गए हैं वह मधु जी के अपने हाइकुओं के साथ-साथ कुछ प्रतिष्ठित हाइकुकारों के हैं तो कुछ नए हाइकुकारों के ( मैं भी इन नए हाइकुकारों में एक हूँ । ) हाइकु के गुण-दोष की चर्चा हाइकु की समीक्षा होगी जबकि प्रस्तुत पुस्तक हाइगा की है , इसलिए हाइगा पर ध्यान केन्द्रित किया जाना जरूरी है । इंटरनेट से चित्र ढूंढो और कम्प्यूटर द्वारा उन पर हाइकु लिख देना मात्र ही हाइगा नहीं । हाइगा द्वारा हाइकु में छुपे हुए गंभीर अर्थ को प्रगट करना होता है, अत: चित्र का चुनाव भावों के अनुसार करना एक कठिन कार्य है । मधु जी ने इस दिशा में जो प्रयास किये हैं वह सचमुच सराहनीय हैं । मधु जी चित्रों और हाइकु के गहन भावों में तादातम्य बैठाने में पूरी तरह सफल हुई हैं । 
                      नवीन सी चतुर्वेदी जी का भारत के पश्चिमीकरण पर लिखे हाइकु को चित्रों को जोड़कर बनाए हाइगा ने चार चाँद लगा दिए हैं । कवयित्री का खुद का मोबाइल संबंधी हाइगा मुट्ठी में सिमटती दुनिया का अहसास दिलाता है । डॉ. भावना कुंवर के हाइकु को पेड़ के चित्र के साथ जोड़कर गहरे अर्थ दिए गए हैं क्योंकि जैसे यौवन पर सबकी कातिल निगाहें टूट पड़ती हैं वैसे ही फूलते-फलते ही पेड़ पत्थरों का शिकार होने लगता है । डॉ. रमा द्विवेदी जी के हाइकु से बने हाइगा में बैशाख की तपन को सूर्य की तेज किरणों द्वारा चित्रित करके यहाँ प्रकृति का जीवंत रूप आँखों के सामने उतारा है तो वहीं रचना श्रीवास्तव के हाइकु में छोटे पौधे के चित्र से पिता के महत्त्व को दर्शाया गया है । मंजू मिश्रा जिन्दगी के निरंतर चलने की बात हाइकु में करती हैं तो इसके लिए नदी से सटीक चित्र क्या हो सकता है । साथ ही नदी के किनारे बैठी औरत उस भाव को व्यक्त कर रही है जो हाइकु में कहीं गहरे छुपी है । कोई जिन्दगी के साथ चले न चले जिन्दगी चलती रहती है , चित्र भी यही कहता है कोई नदी के किनारे पर बैठा है या साथ चल रहा है यह नदी कब देखती है जिन्दगी की तरह । कैलाश शर्मा के अकेले चलने की पुकार लगाता हाइकु चित्र द्वारा सुंदर रूप से परिभाषित किया गया है क्योंकि जब मंजिल निश्चित हो तो साथी मिल ही जाते हैं । हाइगा में यात्री का उफुक की तरफ बढना ऐसे ही रास्तों की बात करता है जिनकी मंजिल अनिश्चित है और ऐसे रास्तों के राही अक्सर अकेले होते हैं । ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं । पूरी पुस्तक ऐसे सजीव हाइगा से भरी पड़ी है । 
                       मेरे विचार से वर्तमान भारतीय साहित्य में हाइगा की यह प्रथम पुस्तक है और निश्चित रूप से यह ऐसी ओर पुस्तकों के प्रकाशन हेतु प्रेरणा स्रोत बनकर हाइगा के विकास में मील का पत्थर सिद्ध होगी । इस प्रयास हेतु और कठिन परिश्रम हेतु मधु जी बधाई की पात्र हैं । 
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© दिलबाग विर्क
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5 टिप्‍पणियां:

Smt. Mukul Amlas ने कहा…

पढ़ कर अच्छा लगा कि कुछ लोग नई विधाओं को हिंदी में लाने के लिए प्रयासरत हैं । आज न कल इन नये प्रयोगों को लोगों को स्वीकार करना ही पडे़गा क्योंकि आज के वैश्विकरण के युग में साहित्य का भी वैश्विकरण होकर रहेगा चाहे कुछ लोग इसे माने या न माने ।समय की मांग है यह । हमें अपनी दृष्टि को भी वैश्विक बनाने की जरुरत है ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर !

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक, शुभकामनाएँ

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर और सार्थक

जमशेद आज़मी ने कहा…

बहुत ही सुंदर और सार्थक पोस्‍ट।

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