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बुधवार, नवंबर 02, 2011

कपट, षड्यंत्र, नाजायज संबंधों का महाकाव्य - पथ का पाप

हिंदी के उपन्यासकार डॉ. रांगेय राघव का उपन्यास '' पथ का पाप '' पाप की कहानी है. यह धोखे, षड्यंत्र, अनैतिक सम्बन्धों से भरा पड़ा है. उपन्यास का नायक किशनलाल धोखेबाज़, ठग, मित्रघाती, वेश्यागमन करने वाला और पराई स्त्री पर बुरी नजर रखने वाला है, लेकिन इन तमाम बुराइयों के बावजूद वह खुद को पाक-साफ साबित करने में सफल रहता है. अपने रास्ते में आए हर कांटे को वह बड़ी चतुराई से निकाल देता है.
                 किशनलाल के दो भाई हैं. बड़ा रामलाल और छोटा मदनलाल. जमीन-दूकान रामलाल के नाम है. वह विधुर और धर्मात्मा पुरुष है. किशनलाल हिस्सा चाहता है और इसके लिए मोहरा बनाता है मदनलाल को. किशनलाल का पड़ोसी रूप नरायन उसका दोस्त है, लेकिन वह उसकी पत्नी पर कुदृष्टि रखता है. जब शहर ठगी के लिए जाना होता है तो वह रूप को साथ लेकर जाता है.  शहर में वे दोनों एक ठाकुर को फँसाते हैं और उसकी पत्नी और गहने आदि को लेकर भाग जाते हैं. लूट का माल दोनों बाँट लेते हैं और ठाकुर की पत्नी को कोठे पर बेच दिया जाता है. गाँव में किशन सोने का मुलम्मा चढ़े गहने बदरी को बेच देता है. साथ ही उसके यहाँ से सोने की कंठी चुराकर इसका आरोप बिहारी पर लगवा देता है. बिहारी रामलाल का दोस्त और उनके मार्ग का काँटा था. उसे जेल हो जाती है. नकली गहने बेचने के आरोप में बदरी उन पर केस करता है. रामलाल को पुलिस पकड कर ले जाती है और बाद में वह इसी सदमें में मृत्यु को प्राप्त होता है. किशन अब बदरी को भी फंसाना चाहता है. वह कंठी उसे वापिस कर देता है. साथ ही पुलिस को सूचना देता है की बदरी ने बिहारी पर चोरी का झूठा आरोप लगाया है. पुलिस तलाशी लेती है और कंठी मिलने पर उसे पकड़ कर ले जाती है. 
               दूसरी तरफ रूप की बहन चमेली अपनी ननद प्रैमा का विवाह मदन से करना चाहती है. वह गरीब है और जानती है की किशन की पत्नी जावित्री धन मांगेगी इसलिए वह चोरी-से किशन से मिलने जाती है. किशन चोरी मिलने आने की आड़ में उसका सर्वस्व लेकर मदन का विवाह प्रैमा से करने का वचन देता है. किशन की पत्नी औलादहीन है और वह रूप पर डोरे डाले हुए है. रूप की पत्नी सोमोती की देखभाल के बहाने वह रूप के घर जाती है और मौका पाकर रूप के कमरे में चली जाती है. किशन यह सब देख रहा होता है. वह रूप का वध कर देता है और आरोप लगता है रूप के बहनोई शिवलाल पर. सोमोती चमेली और प्रैमा को घर से निकाल देती है, लेकिन किशन उन्हें आश्रय देता है. प्रैमा-मदन की शादी पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं. किशन प्रैमा को शादी करवाने का लालच देकर उससे सम्बन्ध बना लेता है. किशन सोमोती को कहता है की उसका पति शरीफ नहीं था, वह बिहारी के साथ मिलकर चोरी करता था और उसके उसकी पत्नी से सम्बन्ध थे. सोमोती के सामने वह जावित्री से उलगवा लेता है कि कत्ल से पहले वह रूप के कमरे में थी. सोमोती किशन को देवता समझती है और खुद को समर्पित कर देती है. उसकी पत्नी चोरी पकड़ी जाने के डर से उसकी दासी बनी हुई है. प्रैमा को विवाह का लालच है, चमेली को आश्रय मिला हुआ है और सोमोती उस पर श्रद्धा करती है. इस प्रकार चारों स्त्रियाँ उसका गुणगान करती हैं. लेखक उपसंहार में कहता है कि गाँव वालों का मानना है कि पापी का अंत होता है. बदरी पापी था अत: उसने सजा पाई, लेकिन जो वास्तविक पापी था उसके बारे में लोगों का मानना है कि ऐसे आदमी कभी-कभी पैदा होते हैं.
                     लेखक का यह उपन्यास कथावस्तु की दृष्टि से बेहद रोचक है. पढना शुरू करने के बाद इसे छोड़ने का मन ही नहीं करता. उपन्यास की भाषा भी आकर्षक है. जगह-जगह पर लेखक शब्द-चित्र प्रस्तुत करता है. यथा -'' अतरौला छोटा-सा गाँव था. उसमें पेड़ भी कम थे. हरियाली नहीं के बराबर थी. कुछ घर थे कच्चे-पक्के. खेत बिलकुल गाँव में थे, या कहना ठीक होगा कि गाँव खेतों में बसा था. उपले थपे थे, बिटौरे लगे थे और काँटों की बाड़-सी बनी थी. कुत्ते सौ रहे थे. पीपल के पेड़ के नीचे देवी का थान था. उसके पास ही छोटा-सा प्राइमरी स्कूल था, जो आजादी के बाद खुला था. एक पक्का कुआं था, जो सारे गाँव की जान था. यों इधर-उधर कुइयाएं भी थी, पर जीवन था कुँए पर.'' 
   या फिर  '' मदन चौंका. सफेद कमीज पहने था. सफेद धोती, जिसकी लांग का एक छोर तिकोने झंडे-सा नीचे लटका था. बदन पर बास्कट थी. रेशमी रुमाल गले में बंधा था. पांवों में काले मुंडा बूट थे, जिनके फीते चौड़े थे. घुटनों तक के रंगीन मौजे पहने था. सिर पर तिरछी टोपी थी. आँखों में काजल था. गोरा रंग था, मूंछें हल्की थीं. सीना मुलायम-सा उभरा हुआ था. आँखों में रस था. छबीला जवान था.
                  अनेक उक्तियाँ भाषा को रोचक बनती हैं, यथा - ''पानी छान के पीता है, लहू अनछाना '','' तू परमात्मा है तो हमें जीना ही मंजूर नही '','' अँधेरा झेलने के लिए भी आते दिन की आसा चाहिए ''आदि. संवाद चुटीले और रोचक हैं. किशन वाक-कला में निपुण है. वह अपनी चुटीली और रोचक भाषा से ही सबको लूटता है. 
           स्त्री को इस उपन्यास में महज भोग की वस्तु समझा गया है. किशन की नजर हर औरत के शरीर पर है. वह ठाकुर की पत्नी, चमेली, प्रैमा, सोमोती सबको अपनी हवस का शिकार बनाता है. स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है, यह अक्सर कहा जाता है. इस उपन्यास में लेखक भी कहता है -- '' स्त्री कभी स्त्री पर विश्वास नहीं करती. स्त्रियों में मित्रता भी नहीं के बराबर ही होती है. संयुक्त परिवारों में प्राय: झगड़ा तभी होता है जब बहुएँ आती हैं. सृष्टि को बढ़ाने वाली, जननी होकर भी प्राय: ही दूसरी स्त्री के साथ नहीं रह पाती.''
                लेखक इस उपन्यास के माध्यम से यह भी बताता है की पैसा सब कुछ है और गरीबी अभिशाप है. '' गरीब पर चोरी का इल्जाम बहुत बड़ी चोट होती है, क्योंकि जब वह सच बोलता है तब पक्का झूठा समझा जाता है. केवल त्यागी मनुष्य की सत्य के प्रति अटल निष्ठा ही गौरवमयी होती है. चतुर ही धनी होता है. चतुराई काव्य-कला की जानकारी नहीं होती, वह होती है धन कमाने की तरकीब. जो उस हथकंडे को जानता है, वह गरीब को बेईमान भी साबित कर सकता है क्योंकि धन शक्ति है, शक्ति न्याय है और गरीबी बेवकूफी का ही दूसरा नाम है. ''
             उपन्यास में झूठ, पाखंड, फरेब के साथ-साथ रिश्वतखोरी का भी बोलबाला है. किशन कहता है - '' चक्कर में पड़े घनचक्कर ! पुलिस इसलिए बनी ही नहीं है कि वह आपको किसी व्यापार में रोके. वह तो इसलिए बनी है कि ' राज ' का हिस्सा ' राज ' को देते जाओ. जो खुले रोजगार हैं, उन पर ' टैक्स ' लगता है, जो छिपे हुए हैं, उन पर ' रिश्वत ' खर्च होती है. '' बदरी भी रिश्वत का सहारा लेता है और किशन भी इसी के बल पर बदरी को जेल भिजवाता है. 
                  उपन्यास यह भी साबित करता है की यह जमाना तिकड़मबाजों का है, बतौर किशन - '' जमाना ऐसा ही है. पंचायत के पंच चुने जाते हैं, तभी न जब वे आगे आते हैं. आगे तो आप ही आना पड़ता है. जो अपने को गाबदी समझता है, वह गाबदी ही होता है. जो कुछ है, यहीं है, अभी है, अपने लिए है. ''
                        संक्षेप में कहें तो उपन्यास कपट, षड्यंत्र, नाजायज सम्बन्धों का महाकाव्य है. और दुर्भाग्यवश बुराई जीतती है. ऐसा ही कुछ समाज में हो रहा है. हर बुराई समाज में व्याप्त है और लगातार अच्छाई पर भारी पड़ रही है. लेखक ने इस उपन्यास में बुराई की जीत दिखाकर यथार्थ का ही अंकन किया है.

                            * * * * *

7 टिप्‍पणियां:

Gyan Darpan ने कहा…

बढ़िया समीक्षा
ब्लॉग से कमाई : अनुभव
Matrimonial Service

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पुस्तक की बहुत अच्छी समीक्षा ..मौका मिला तो अवश्य पढूंगी

वाणी गीत ने कहा…

सम्पूर्ण उपन्यास जैसे आँखों के सामने से गुजर गया ...
अच्छी समीक्षा !

चंदन ने कहा…

बहुत बढ़िया...समीक्षा!
पढ़ने कि आस जगा गयी!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की है आपने!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया समीक्षा की है आपने!

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर समीक्षा! बेहद पसंद आया! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/

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