BE PROUD TO BE AN INDIAN

बुधवार, अप्रैल 29, 2020

खुद से बात करने, सकारात्मक रहने की सलाह देती पुस्तक

पुस्तक - 5 पिल्स लेखक - डॉ. अबरार मुल्तानी प्रकाशन - राधकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली कीमत - ₹150/- पृष्ठ - 144
राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित "5 पिल्स" डॉ. अबरार मुल्तानी की डिप्रेशन-स्ट्रेस मुक्ति विषय से संबंधित पुस्तक है। डॉ. मुल्तानी पेशे से डॉक्टर हैं और वे दवाइयों से तो मरीजों को ठीक करते ही हैं, साथ-ही-साथ अपने लेखन द्वारा भी स्वस्थ रहने के उपाय बताते हैं। डिप्रेशन का संबन्ध तो जीवन-शैली से है, इसलिए इस विषय पर पुस्तक दवाई से अधिक महत्त्वपूर्ण है, लेकिन पुस्तक कोई भी हो, तभी अपना प्रभाव दिखाती है, जब उसे सिर्फ पढ़ने तक न रखकर उसकी बातों को जीवन में उतारा जाए। यही समझाने के लिए डॉ. मुल्तानी ने पुस्तक की शुरूआत में ही पुस्तक का अधिकतम लाभ उठाने का तरीका बताया है और यह तरीका सिर्फ इसी पुस्तक तक न रखकर हर पुस्तक पर अपनाया जाए तो पुस्तकें निस्संदेह अधिक उपयोगी हो पाएँगी।

     पुस्तकों में अध्याय होते हैं और अध्याय के लिए अलग-अलग शब्द प्रयुक्त होते रहे हैं, इस पुस्तक में अध्याय पिल्स अर्थात गोलियाँ हैं। 5 पिल्स यानी पाँच अध्याय। इन अध्याय रूपी गोलियाँ से पहले 'प्रस्तावना' और 'यह पुस्तक क्यों लिखी गई?' नामक लघु अध्याय हैं। यूँ तो सभी पुस्तकों में लेखक ऐसा लिखते हैं, लेकिन आमतौर पर उनको कम ही पढ़ा जाता है, लेकिन इस पुस्तक में इनको पढ़ा जाना अनिवार्य है। लेखक WHO के आँकड़ों से स्पष्ट करता है कि विश्व में हर वर्ष 8 लाख से 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें भारत का योगदान 18% है। यह चिंताजनक है। लेखक इसीलिए हर दीवार पर लिखवा देना चाहता है -
"हर मुश्किल के बाद आसानी है, हर अँधेरी रात के बाद सवेरा है और हर दुःख के बाद आनंद है...हाँ, यह नियम आपके लिए भी सत्य है, दुनिया के बाक़ी लोगों की तरह।"
    यह बात विचारों में सकारात्मकता लाने के लिए बेहद ज़रूरी है। डिप्रेशन में नकारात्मकता मनुष्य पर हावी होती है। लेखक के अनुसार -
"अधिकांश डिप्रेशन में घिरे रोगी अपने विचारों को स्वतंत्र छोड़ देते हैं और ये स्वतंत्र विचार नकारात्मकता की तरफ झुक जाते हैं।"
लेखक सलाह देता है -
"हमें हमेशा हमारे सकारात्मक विचारों को शक्तिशाली बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन खुशहाल और स्वस्थ बने जो कि वास्तव में इसका मूल लक्ष्य है।"
जीवन खुशहाल बनाना हम सब चाहते हैं, लेकिन चाहत को अंजाम देना हमें नहीं आता। इस संदर्भ में लेखक ने पास्कल के जिस उद्धरण को पुस्तक में दिया है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है -
"हम कभी नहीं जी पाते हैं, बल्कि जीने की सिर्फ आशा करते हैं। हम हमेशा आनन्दित रहने की राह देखते हैं, इसलिए यह अवश्यंभावी है कि हम कभी आनन्दित नहीं होते हैं।"
लेखक प्रस्तावना में यह बात स्पष्ट करता है -
"याद रखें दुनिया में एक ही वस्तु है जो आपके बस में और वह है आपके विचार।"
विचार हमारे बस में है और इन्हें बदला जा सकता है, इसी सोच से लेखक ने ये पुस्तक लिखी है। 
      इस पुस्तक में पहला अध्याय है, "तीन महत्त्वपूर्ण सबक़"। इसके आगे भाग-उपभाग हैं। पहले भाग 'डिप्रेशन को हराएँ, लेकिन तरीके से' में लेखक अपनी बात बुद्ध की एक नीति- कथा से करता है और यह नीति कथा कहती है कि जिस समस्या का निवारण करना हो पहले उसका कारण जानना चाहिए। लेखक डिप्रेशन की WHO द्वारा दी गई परिभाषा भी बताता है और मार्क एटस्टीन का मत भी। इस मत में वह "और ईश्वर भी" जोड़कर इसे नया रूप देता है -
"डिप्रेशन के शिकार लोग सोचते हैं कि वे ख़ुद को और ईश्वर को जानते हैं, लेकिन शायद वे डिप्रेशन को जानते हैं।" (पृ. - 20 )
लेखक अब्राहम लिंकन, जे.के.रोलिंग, दिलीप कुमार, ओपरा विनफ़्री और दीपिका पादुकोण के बारे में बताता है कि ये लोग भी डिप्रेशन के शिकार थे लेकिन ये इससे उबर गए। वह कहता है -
"हमें सीखने की आवश्यकता है कि, 'डिप्रेशन को हराओ, ख़ुद को नहीं'।" (पृ. - 20)
लेखक कन्फ्यूशियस का मत भी देता है, "हमारी सबसे बड़ी महिमा कभी न गिरने में नहीं है, बल्कि गिरने के बाद फिर उठने में है।" (पृ. - 20)
लेखक उन कारणों का जिक्र करता है, जिसके कारण डिप्रेशन आम हो गया है। डिप्रेशन के लक्षण बताए गए हैं और फिर मुक्ति पाने की राह दिखाई गई है। लेखक डिप्रेशन से मुक्ति को कर्त्तव्य या धर्म बताता है। उसके अनुसार इसके लिए ये उपाय अपनाया जाना चाहिए -
"अपनी क्षमता को पहचानें, उसका प्रयोग करें, ईश्वर पर भरोसा करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें, प्रकृति की तरफ़ क़दम बढाएँ, पौष्टिक भोजन करें और मित्रों से घिरे रहें।" (पृ. - 22 )
लेखक यह भी स्पष्ट करता है कि निराशा हर आदमी को घेरती है, साथ ही वह यह कहता है -
"क्षणिक निराशा हमारा गुण ( अवगुण ) है और घोर निराशा एक रोग।" (पृ. - 22 )
लेखक इसके बाद 'तनाव का सदुपयोग करें' शीर्षक में बताता है कि तनाव ज़रूरी है। वह मनुष्य का विकास तनाव में देखता है और गाँधी, नेल्सन मंडेला, अब्राहम लिंकन, अलेक्जेंडर फ्लेमिंग, विराट कोहली का जिक्र करता है। कोयले, बीज का उदाहरण देता है। सुंदर पिचाई के देखे एक दृश्य और उसके निकाले निष्कर्ष को बताता है। पिचाई का निष्कर्ष है -
"जीवन में कठिन समय में प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसे समझकर जवाब देना चाहिए।" ( पृ. - 27 )
यहाँ प्रतिक्रिया और जवाब के अंतर को भी स्पष्ट किया गया है -
"प्रतिक्रिया हम बिना सोचे-समझे दे देते हैं, जबकि जवाब हम सही तरीके से सोच-समझ कर देते हैं।" ( पृ. - 27 )
आग, चाकू, साँप और कॉकरेच के प्रसंग से वह स्पष्ट करता है कि डर का कारण परिस्थितियों को सँभालने की अक्षमता होती है। वह कहता है -
"तनाव के बारे में भी यही होता है कि हमें सब डराते तो बहुत हैं, लेकिन लड़ना या उससे निपटना नहीं सिखाते।" ( पृ. - 23 )
लेखक 'तनाव या डिप्रेशन का कारण पता करें' शीर्षक के अंतर्गत खुद से मिलने आए मरीजों के आधार पर निष्कर्ष निकालता है -
"अधिकांश रोगी कभी ख़ुद से यह सवाल नहीं पूछते कि क्यों मैं इन सब में उलझ रहा हूँ?" (पृ. - 28 )
जवाब सवाल के बिना संभव नहीं, वह लिखता है -
"सवाल समाधान की पहली सीढ़ी है, सवाल के बिना समाधान नहीं हो सकता।" ( पृ. - 28 )
लेखक ने एक भाग कार ड्राइविंग के नियमों को ज़िन्दगी से जोड़कर लिखा है। लेखक के अनुसार विचार और कर्म क्लच, गेयर आदि की तरह हमारे नियंत्रण में हैं, ट्रैफिक नियमों और सड़क के संकेतों की तरह समाज के नियमों की पालना करें, चौकन्ने रहे, दूसरों का ख्याल रखें, ब्रेक की तरह अपने सभी कार्यों पर नियंत्रण रखें, घबराएं नहीं। जैसे गाड़ी को कागज पर नहीं सीखा जा सकता, वैसे ही ज़िन्दगी को कार्यक्षेत्र में उतरे बिना नहीं जाना जा सकता। इस भाग का सबसे महत्त्वपूर्ण नियम है -
"अपने शरीर में एक क्लच विकसित कीजिए।" ( पृ. - 32 )
यह क्लच नकारात्मक बातों को दिमाग में आने से रोकने के लिए है। 
पहले अध्याय का अंतिम भाग अज्ञात की एक कथा 'कॉफी का मग' है। यह कथा बताती है कि हम उन चीजों को महत्त्व देते हैं, जिनका वास्तव में कोई महत्त्व नहीं। इस कथा का अंतिम कथन है -
"दुनिया के सबसे ख़ुशहाल लोग वे नहीं होते, जिनके पास सब कुछ सबसे बढ़िया होता है, ख़ुशहाल वे होते हैं, जिनके पास जो होता है बस उसका अच्छे से उपयोग करते हैं, आनन्द लेते हैं और भरपूर जीवन जीते हैं।" ( पृ. 35 )
    पुस्तक का दूसरा अध्याय है, "डेली रूटीन vs डिप्रेशन एंड स्ट्रेस"। इस अध्याय में वे गहरी साँस, नींद, नाश्ता, धूप, यात्रा, पालतू जानवर और प्रार्थना का महत्त्व बताते हैं। स्वस्थ मस्तिष्क के लिए ऑक्सीजन बहुत ज़रूरी है। ऑक्सीजन की कमी हमें चिड़चिड़ा, गुस्सैल, डरपोक, चिंतित और अवसादग्रस्त बना देती है। कम नींद या सोने का गलत समय भी तनाव को बढ़ाता है। नींद के बारे में लेखक लिखता है -
"यदि हम बिल्कुल न सोये तो कुछ दिनों में मर जाएँगे, कम सोएँगे तो जल्दी मर जाएँगे, गलत समय पर सोएँगे तो बीमार हो जाएँगे… और अतिमात्र भी हमको बीमार कर देगी क्योंकि अति सर्वत्र वर्जियते।" (पृ. - 40 )
नाश्ते का महत्त्व बताया गया है, माइग्रेन के मरीजों के लिए यह बेहद ज़रूरी है। नाश्ता पौष्टिक हो और यह सुबह 7 से 9 बजे के बीच ले लिया जाना चाहिए। धूप का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा गया है -
"धूप में बैठकर आप नकारात्मक विचारों को नहीं ला सकते। धूप जीवन है, धूप अमृत है। धूप एक अनमोल औषधि है।" (पृ. - 42 )
लेखक 30 मिनट के धूप स्नान की बात करता है। सूरज की रौशनी में विटामिन-डी होता है, जो शरीर के लगभग 200 जीन्स को प्रभावित करता है और हमें 1000 IU विटामिन डी प्रतिदिन चाहिए। तनाव दूर करने के लिए यात्रा का भी विशेष महत्त्व है। यह यात्रा दोस्त के घर तक भी हो सकती है। वह पालतू जानवर पालने की सलाह देता है और अपने मत के समर्थन के लिए 'अमेरिका जनरल ऑफ मेडिकल साइंस' के शोध का हवाला देते है। प्रार्थना पर बल देते हुए कहता है -
"प्रार्थना करें और सब कार्यों को ईश्वर के सुपुर्द करें जो उसके हैं।" ( पृ. - 47 )
लेखक ने ये इस्लाम की शिक्षाओं से सीखा है। सभी धर्म यही कहते हैं। गीता का कर्म का सिद्धांत भी यही है, सिख धर्म भी यही कहता है। लेखक कहता है कि डर और तनाव के तीन कारण हैं - रिज्क, बीमारी और मौत और ये तीनों ख़ुदा के कब्जे में हैं। वह इमर्सन का कथन उद्धृत करता है -
प्रार्थना सर्वोच्च दृष्टिकोण से जीवन का मनन है।" ( पृ. - 49 )
प्रार्थना के प्रभाव के बारे में लेखक लिखता है -
"जैसा हम सोचते, समझते, महसूस करते और विश्वास करते हैं, हमारा मन, शरीर और परिस्थितियाँ भी ठीक वैसा ही हो जाती हैं। यही वजह है कि प्रार्थना हमारे मन की परिस्थितियों को बदल देती है।" ( पृ. - 50)
लेखक सोशल साइकोलॉजी एन्ड पर्सनालिटी साइंस के जर्नल के शोध के आंकड़े देता है कि आस्तिक लोग नास्तिक की तुलना में 5.5 से 9.5 वर्ष अधिक जीते हैं।
     लेखक मोबाइल को एक भयावह वस्तु कहता है और इससे निपटने के उपाय बताता है। इस अध्याय के अंतिम भाग में कल्पेश याज्ञनिक की माइकल फेल्प्स की कहानी है, जो अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर से ग्रस्त है। जिसे डूबने से डर लगता था, जिसका पिता उसके परिवार को छोड़ देता है मगर वह फ्लाइंग फिश बनकर उभरता है। वह उसकी अथक मेहनत को भी दिखाता है। लेखक कहता है -
"थकान, मृत्यु के समान है।
उत्साह, जीवन का सच्चा अर्थ है।
फेल्प्स का उत्साह देखने योग्य है।" ( पृ. - 61 )
लेखक के अनुसार माइकल फेल्प्स सीखने का विश्विद्यालय है।
   पुस्तक का तीसरा अध्याय है, "इन बातों को कहें नो...नो...नो…"। लेखक सबसे पहले नेगेटिव न्यूज को नो कहने को कहता है। लेखक के अनुसार - 
"हमारा दिमाग़ इसी प्रकार प्रोग्राम्ड है, कि जो बातें इसे बार-बार सुनाई, दिखाई या पढ़ाई जाएँगी, यह उसे सच मान लेगा।" ( पृ. -65 )
बारिश में नहाने और पटाखों के उदाहरण से इसे स्पष्ट किया गया है। नकारात्मकता हमें डरपोक बना रही है-
"हम भीड़ से डरते हैं, हमें मासूम जानवरों से डर लगने लगता है, हम बारिश और छोटी-मोटी आँधियों से डरने लगे हैं, हम इंसानों से डरने लगे हैं, हम दूसरे धर्म या जाति के लोगों से डरने लगे हैं।" (पृ. - 67 )
लेखक मीडिया की नकारात्मकता से बचने का उपाय बताता है। वह क्राइम प्रोग्राम न देखने की सलाह देता है। वह एक महिला मरीज का उदाहरण भी देता है। वह कहता है -
"लोगों पर भरोसा कीजिए क्योंकि दुनिया में अब भी अच्छे लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं, बुरों की तुलना में।" ( पृ. - 69)
बुरे काम आपको अंदर ही अंदर दुखी करते हैं, इसे वह उदाहरण से स्पष्ट करता है। वह क्षमा माँगने का उपाय बताता है। आज के डॉक्टरों के बारे में कड़वा सच लिखता है -
"यह भी अजीब चलन है आजकल के डॉक्टरों का कि बीमारी चाहे समझ ना आए लेकिन दवाई ज़रूर देंगे।" (पृ. - 72 )
वह दोषारोपण न करने की सलाह देता है। 
"यदि आपको जीवन में विकास करना है और खुश रहना है तो ख़ुद को और दूसरों को दोष देना बंद कीजिए, बन्द कीजिए ये रोतलुपन, बन्द कीजिए ये रिश्तों और मित्रता का कत्ल करना।" (पृ. - 75 )
दोष देने की बजाए घटनाओं से अनुभव लेने का सुझाव दिया गया है। लेखक दूसरों से उम्मीद न रखने को कहता है। बुद्ध से जुड़े हुए प्रसंग से इसे स्पष्ट करता है। उम्मीद पालने के कारण ही सब लोग दुखी हैं। वह यह स्वीकार करने को कहता है कि सब मतलबी हैं। उम्मीद सिर्फ ईश्वर से लगानी चाहिए। डर से नहीं डरने को कहता है, हालांकि उसका मानना है -
"डर ज़रूरी है, लेकिन बेवजह के डर घातक हैं।" ( पृ. - 76 ) 
वह ट्रक ड्राइवर का उदाहरण देता है। बेवजह के डर से बचने को कहता है, क्योंकि - 
"डर को हराकर ही मनुष्य अपने जीवन और संसार का आनंद ले सकता है।" (पृ. - 79 ) 
भविष्य की बेवजह चिंता न करने को कहा गया है। भविष्य वक्ताओं के उदाहरण भी दिए गए हैं। इस अध्याय में भी ईश्वर पर आस्था रखने की बात कही गई है। गूगल पर बीमारियों के लक्षण पढ़ना भी खतरनाक है। इसे साइबरकोंडरिया कहा गया है। गूगल से मिस डायग्नोस हो सकता है और यह दो प्रकार का है - सेल्फ पॉजिटिव और सेल्फ नेगेटिव और दोनों ही स्थितियाँ घातक हैं। लेखक वर्तमान का पक्षधर है और अतीत में जो भी बुरा हुआ उसे 'जो हुआ सो हुआ' कहकर भूल जाने की सलाह देता है। अध्याय के अंत में डॉ. राइनर ज़िटलमन की बार्बी डॉल की निर्मात्री रूथ हैंडलर की कहानी है, जो सबके विरोध के बावजूद कामयाब हुई क्योंकि वह अपने विचार पर डटी रही।
     पुस्तक का चौथा अध्याय है, "क्या आपको यह आता है?"। इस अध्याय में लेखक पूछता है कि क्या आपको भूलना आता है?, क्या आपको ख़ुद को समझाना आता है?, क्या दवाओं से विचारों को बदला जा सकता है?, क्या सपनों से सेहत पर असर पड़ता है?, क्या आपको भूतों का डर भगाना आता है?, क्या आपको ब्लैकमेलिंग से निपटना आता है?, क्या आपको कहानियों की मदद लेना आता है?, क्या आपका घर स्वर्ग है?, क्या दोस्त सुकून देते हैं?, क्या पॉश कॉलोनो में रहना आपके डिप्रेशन और तनाव की वजह हो सकती है?, क्या पुराने दर्द का कारण आपकी मानसिक दुर्बलता है?।
लेखक इनके उत्तर देता है। वह कहता है -
"आप भी बुरी स्मृतियों को मिटा दीजिए इससे पहले कि वे आपको मिटा दें।" (पृ. - 98 )
वह क्षमा करने पर बल देता है -
"क्षमा और करुणा वे डस्टर हैं जिससे हम बुरी स्मृतियों को अपने मन के ब्लैक बोर्ड से मिटा सकते हैं और लिख सकते हैं एक नया जीवन, एक नया स्वस्थ और आनन्ददायक जीवन।" ( पृ. - 98 ) 
लेखक हमारे स्वभाव को बताता है कि हम दूसरों को समझाते हैं, तमाम प्रकार की सांत्वना प्रकट करते हैं, लेकिन खुद को नहीं समझाते। अपने रोगियों के बारे में वह बताता है कि वे कभी खुद से बात नहीं करते। लेखक दिमाग की नेगटिव प्रोग्रामिंग को खत्म करने का तरीका बताता है। ये सब एक दिन में नहीं होगा, इसे समय देने की बात वह करता है। 
लेखक डॉक्टर है, लेकिन डॉक्टरों के फिजूल में दवाई लिखने का विरोधी है। अवसाद के मामले में वह कहता है -
"एंटी डिप्रेशेन्ट बहुत घातक और जटिल अवसाद में जीवनरक्षक की तरह काम करती है, लेकिन कम घातक या सामान्य अवसाद को यह घातक भी बना देती है।" ( पृ. - 101 ) 
उसके अनुसार विचार दवाई से नहीं बदले जा सकते। 
   लेखक सपनों के संबन्ध में तीन उदाहरण देता है और इसे फ्रायड के कथन से स्पष्ट करता है - 
"स्वप्न हमारी दबी हुई आकांक्षाओं और डर का परिणाम होते हैं।" (पृ. - 103) 
लेखक के अनुसार -
"हमारा अवचेतन इसी तरह से प्रोग्राम्ड है कि यह अपने डर को सही साबित करने के साक्ष्य या सबूत इकट्ठे कर करके लाता है और हमें यकीन दिला देता है कि यह डर सच्चा है।" (पृ. - 103 )
लेखक सपनों के संबन्ध में खुद को यह बताने की सलाह देता है कि यह केवल सपना था। भूत के विषय पर वह दो लोगों का उदाहरण देता है, जिन्होंने भूत देखने की बात की और वह उनकी बात को बड़ी आसानी से मिथ्या सिद्ध कर देता है। यहाँ भी लेखक सवाल पूछने की बात करता है। लेखक के अनुसार -
"भूतों की छवियाँ हमारे अवचेतन में बसे डरों के अनुसार ही उभरती हैं।" (पृ. - 106 )
वह ईश्वर पर आस्था रखने की बात करता है। ब्लैकमेलिंग के मामले में भी आत्महत्या कोई हल नहीं। वह चीनी दर्शन की बात करता है -
"मन की सच्ची शांति बुरे से बुरे को स्वीकार करने से आती है।" (पृ. - 108 )
ब्लैकमेलिंग में इस दर्शन को आत्मसात करना चाहिए। पहले बुरा स्वीकार करके मन को शांत करें फिर इसे टालने के बारे में सोचें। वह सलाह देता है कि अकेले न घुटें। उसका कहना है -
"मदद माँगोगे तो ही मदद मिलेगी।" (पृ. - 109 )
लेखक कहानियों से मदद लेने की बात करता है। उसके अनुसार सभी महापुरुषों ने शिक्षा देने के लिए कहानियों का सहारा लिया। कहानियों में अच्छी बातों को ग्रहण किया जाना चाहिए। बतौर लेखक -
"कहानियाँ अच्छी भी होती हैं और बुरी भी। आपको हंस की तरह उनमें से मोतियों को चुनना आना चाहिए और कंकड़ को निकाल फेंकना।" (पृ. - 110) 
लेखक कई कहानियों के नाम भी बताता है और ये भी बताता है कि किस-किस के लिए कौन सी कहानी उपयोगी है। 
   लेखक के अनुसार घर का माहौल सेहत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक उदाहरण वह देता है, साथ ही इसे सबको लागू न करने को कहता है, लेकिन इतना ज़रूर कहा गया है कि घर के माहौल को सुधारने के लिए जो भी ज़रूरी हो वो किया जाना चाहिए। वह बातचीत से समाधान निकालने की सलाह देता है। लेखक सच्चे दोस्त की परिभाषा इस प्रकार देता है -
"सच्चा मित्र वह है जिसके पास होने पर आप डॉक्टर, दवाई और बीमारियाँ सब कुछ भूल जाते हैं।" (पृ. - 114 )
लेखक मित्र बनाने, सच्चे मित्र न खोने की बात करता है। देखादेखी पॉश कॉलोनी में आए एक रोगी का उदाहरण देते हुए लेखक लिखता है -
"अपनी सफलता के पैमाने ख़ुद तय कीजिए और जीवन का आनन्द लीजिए। दूसरों के बनाए सफलता के पैमाने बहुत महँगे पड़ते हैं।" (पृ. - 116 )
पॉश कॉलोनी में लोग एक-दूसरे से अनजान हैं। वह उनको मेलजोल बनाने की सलाह देता है। वह एकांत को दूर करने के तरीके भी बताता है। दबी हुई भावना को बाहर निकालने के लिए वह 15 मिनट ध्यान करने की सलाह देता है। इस अध्याय के अंत मे भी एक कहानी है। यह कहानी है कैरोली टकास कि जिसमे दायाँ हाथ खोने के बावजूद ओलंपिक में गोल्ड मेडल पाया। 
  पुस्तक का अंतिम अध्याय है, "डिप्रेशन को खत्म करने वाली टेक्निक"। इस अध्याय में वह कम्पन थेरैपी, इमोशनल फ्रीडम थेरैपी की बात करता है। वह 10 से 20 मिनट तक शवासन करने की सलाह देता है। पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए विटामिन और हर्ब्स की जानकारी भी इस अध्याय में दी गई है। अंत मे जैक कैनफील्ड और मार्क वी. हैन्सन द्वारा दिए गए कुछ तथ्य हैं। इन तथ्यों में महान लोगों के विरुद्ध कही गई नकारात्मक बातें हैं, जिन्हें इन्होंने झुठला दिया। अंत में लेखक ईश्वर और साथियों के प्रति आभार व्यक्त करता है। 
    पुस्तक में रोचक तरीके से बातें कही गई हैं। कहानियों और निजी अनुभवों का सहारा लिया गया है। लेखक पर ओशो का प्रभाव भी दिखाई देता है, खासकर बुद्ध की कहानियाँ ओशो के प्रवचनों से ली गई लगती हैं। संभवतः ये रोचक शैली उनको सुनने या पढ़ने का नतीजा है। जो भी हो, यह पुस्तक एक डॉक्टर की उबाऊ जानकारियाँ न होकर एक साहित्यकार की कलम सी निकली सरस रचना सा स्वाद देती है। इसे पढ़कर, इसकी बातों को अपनाकर जीवन में सकारात्मकता का संचार होगा जो अवसाद से बचने के लिए बेहद उपयोगी है, ऐसी आशा की जा सकती है। 
©दिलबागसिंह विर्क
8708546183

2 टिप्‍पणियां:

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (01-05-2020) को "तरस रहा है मन फूलों की नई गंध पाने को " (चर्चा अंक-3688) पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।

"मीना भारद्वाज"

अनीता सैनी ने कहा…

बहुत ही सुंदर

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