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बुधवार, अप्रैल 15, 2020

रीतिकाल के लक्ष्य-ग्रन्थों-सा आभास देता कविता-संग्रह

कविता-संग्रह - मैं बनूँगा गुलमोहर कवि - सुशोभित सक्तावत प्रकाशन - लोकोदय प्रकाशन, लखनऊ कीमत - ₹150/- पृष्ठ - 136
सुशोभित सक्तावत कृत "मैं बनूँगा गुलमोहर" प्रेम कविताओं और गद्यगीतों का संकलन है जिसे लोकोदय प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। कविता-संग्रह की शुरूआत में कवि ने अपनी बात को कविता रूप में "और मैंने भी तो" शीर्षक से लिखा है, जिसमें वह होमर, बीथोवन और काफ्का के अपने क्षमताओं के विपरीत कार्य का वर्णन कर अपने द्वारा प्रेम तराने लिख डालने की बात करता है। इन प्रेम तरानों में कवि प्रेम का वर्णन करने के लिए अनेक माध्यमों को चुनता है, कभी वह संगीत का सहारा लेता है, कभी रंगों का, कभी प्रकृति का। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम भी प्रेम चर्चा के माध्यम हैं। वह पढ़े हुए नॉवलस का सहारा लेता है और उनके पात्रों के जिक्र से अपनी बात कहता है। कवि अपनी कविताओं में इन चीजों के ज्ञान का प्रदर्शन करता है और इसे प्रेम से जोड़ता है लेकिन प्रेम के स्वाभाविक वियोग और संयोग का चित्रण कम ही हो पाया है। प्रेमिका को देखना, उसको सोचना और प्रेम को बताने मात्र तक वह रुक जाता है। प्रेम के पलों के इक्का-दुक्का चित्रों को छोड़कर प्रेम कविता में जिस शिद्दत से मिलन और जुदाई को दिखाया जाना चाहिए उसका नितांत अभाव दिखा है।
   कवि के प्रेम तराने दो भागों में विभक्त हैं। पहला भाग चित्रलिपि है, तो दूसरा रेखाचित्र। इन दोनों के नामकरण का आधार क्या है, कुछ स्पष्ट नहीं, क्योंकि दोनों में एक से विषय और एक सी भाषा है। रेखाचित्र गद्य की विधा है, ऐसे में यदि कविताएँ चित्रलिपि शीर्षक से होती और गद्य गीत रेखाचित्र से तो शायद ज्यादा बेहतर होता। कवि की भाषा चित्रात्मक है, इसमें कोई संदेह नहीं, हालांकि सभी गद्य गीत रेखाचित्र की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। 
        चित्र लिपि में 31 रचनाएँ हैं, जिनमें 'फारूख़ शेख़ जैसा लड़का हो, दीप्ति नवल-सी लड़की' शीर्षक के अंतर्गत 9 रचनाएँ हैं। इस प्रकार इस भाग में कुल 39 रचनाएँ हैं, जिनमें 2 गद्यगीत और 37 कविताएँ हैं। रेखाचित्र भाग में 15 कविताएँ और 12 गद्य गीत हैं। दो गद्य गीतों के तीन-तीन भाग हैं। इस प्रकार रेखाचित्र भाग में 16 गद्य रचनाएँ है। पूरे संग्रह को देखें तो 58 शीर्षकों के अंर्तगत 70 रचनाएँ हैं, जिनमें 42 कविताएँ और 18 गद्य रचनाएँ हैं। पहले भाग के दोनों पद्यगीत दीप्ति नवल को समर्पित दो रचनाओं का हिस्सा हैं। इसमें पहले गद्यगीत 'मत्स्यगंधा' में बम्बई के मढ आइलैंड का चित्रण है। यहाँ लेखक एक अभिनेत्री के साथ चायघर में कहवा पीने फरवरी में गया था और पाँच माह बाद वह वही गंध महसूस करता है। इस भाग का दूसरा गद्यगीत 'अच्छा सुनो' दीप्ति जैसी लड़की को संबोधित है, जिसकी सालगिरह तीन फरवरी को है। उस लड़की की वेशभूषा के बारे में बताया गया है। वह कहता है कि कोई वजह नहीं सिवाय इसके कि तुम अच्छी लगती हो। दूसरे भाग में 12 शीर्षकों के अंतर्गत 16 गद्यगीत हैं। एग्नेस के तीन स्केच हैं। एग्नेस का चित्रण बड़ी खूबसूरती से किया गया है -
"अप्रैल का महीना था और वह खुद अप्रैल का एक रक्तिम फूल नज़र आ रही थी। किशोरियों-सी देहयष्टि। गले में दुपट्टे का चंद्रमा। दोनों हाथ आगे की तरफ बंधे किंचित अचकचाहट के साथ, लेकिन होंठों पर ऐसी निष्कवच मुस्कराहट मानो देह की अचकचाहट को उसकी भनक तक ना हो।" ( पृ. - 102 )
इसमें लेखक 'इम्मोर्टलिटी' उपन्यास की रचना के बारे में बताता है। एग्नेस उसी उपन्यास की एक पात्र का नाम है। लेखक भी एक लड़की को एग्नेस नाम से पुकारता है और उसके साथ बातचीत को इन तीन स्केच में बयान करता है। लेखक मोद्यानो के नॉवल 'द सर्च वॉरन्ट' की कहानी भी सुनाता है।  वह फोन पर स्माइलीज भेजता है जो फोन की स्क्रीन से बाहर निकलकर एग्नेस के इर्द-गिर्द मंडराती है। लेखक की तमाम कल्पनाएँ एग्नेस की तस्वीरों को लेकर बुनी गई हैं, वह सामने खड़ी एग्नेस पर कुछ नहीं कहता। एग्नेस के बाद चार रेखाचित्र लेखक ने भारतीय प्रेम-कथाओं के पात्र मिर्जा-साहिबा पर लिखे हैं। इनमें से तीन वाकियों का वर्णन एक साथ किया है और एक गद्यगीत अलग से है। इन गद्यगीतों में मिर्जा-साहिबा के प्रेम से भीगे संवाद हैं। साहिबा मिर्जा से कहती है कि तू मर जा। वह कहती है -
"जिसे मैं प्यार करती हूँ, उसे यही दुआ देती हूँ कि जा तू मर जा।" ( पृ. - 113 ) 
वह उनके प्रेम के पलों को बयां करता है -
"और तब मिर्जा ने साहिबा का हाथ थामा और उँगलियाँ चूम लीं।" (पृ. - 114)
रेखाचित्र "धत्त! मरे भूत से प्यार करेगी तू" में भी मिर्जा-साहिबा का संवाद है और प्रेम पर चर्चा करने के लिए इसमें भी मौत माध्यम है। 
    अन्य रेखाचित्रों में लेखक भारतीय पात्रों और नॉवल के पात्रों को माध्यम बनाता है। वह परिणय परिचय पुस्तिका से पता लेकर एक लड़की देखने जाता है, जिसका नाम गायत्री है। काफी वर्ष बीत जाने के बाद वह उसको सोचता है। गायत्री का शब्द चित्र बनाता है -
"कोई बहुत रूपसी हो, वैसा नहीं था। दरमियानी कद, गेहुँआ रंग, काजल में डूबी आँखें, घनी बरौनियाँ, दो चोटी।" ( पृ. - 80 ) 
वह अपने गद्यगीत में कालिदास के अभिज्ञानशाकुंतलम में शकुंतला को मिले अभिशाप से बढ़कर शाप बताता है और उसकी नायिका सिहरती नहीं, अपितु खुश होकर  कहती है कि ऐसा ही हो। रोलां बार्थ ने 'अ लवर्स डिस्कोर्स' में जो कहा उसे लेखक अपनी प्रेमिका को बताता है। उसकी भेजी तस्वीरों में उसको देखता है। वह प्रेमिका को गुड़ नाईट का मैसेज नहीं भेजना चाहता। उसे लगता है कि यदि उसकी प्रेमिका सो गई होगी तो अनदेखा मैसेज उसे भी दुखी करेगा और उसकी प्रेमिका की सुबह भी खराब करेगा। वह फिर जो गुड़ मोर्निंग भेजेगी उसमें प्रेम नहीं होगा। 'समरटाइम' में क्या-क्या हुआ उसे याद करते हुए तेरेजा को सुनाता है। तेरेजा समरटाइम उसके साथ मिलकर पढ़ना चाहती है। वह उसके यादों के घर में बिना स्टॉकिंग्स पहने हुए आने को तैयार है। घर में इतवार के दिन अकेली लड़की कैसा महसूस करती है, कैसे रहती है, इसका वर्णन है। कलैंडर के सहारे से प्रेम का इजहार करता है, हालांकि वह जुलाई के महीने में मार्च, दिसम्बर का जिक्र करता है। प्रियतमा की दिनचर्या उसके जेहन में है। वह अपने पहरावे का ब्यौरा बताती है, तो लेखक एक तस्वीर बना लेता है। उसके दिल्ली चले जाने पर उसकी तस्वीर को इंस्टाग्राम पर देखता है। वह फेसबुक मैसेंजर से व्हाट्सएप पर आने का वर्णन करता है, हालांकि लड़की के द्वारा नम्बर मांगने से पहले ही लड़की का नम्बर लेखक के पास है, मगर वह उसे बताता नहीं। वह कुछ तथ्यों को बयान करता है -
"पाने की हर कोशिश खोने का एक प्रयोजन है।
जगहें बनाने की कोशिशें बहुत जगह घेरती हैं।
और प्रतिक्षाएँ ही प्रेम का आवास है।
ना जाने क्यों, हम अपने एकांत में ही सबसे अच्छे प्रेमी होते हैं।" ( पृ. - 119 )
एकांत में प्रेम कवि का स्वभाव है। यह अनेक कविताओं में भी साफ झलकता है। वह प्रेमिका को सामने पाकर उसकी प्रशंसा नहीं करता, अपितु उसके चित्रों की प्रशंसा करता है। वर्तमान की बजाए अतीत की बात करता है।  
     चित्रलिपि भाग में 37 कविताएँ हैं, जिनमें 7 दीप्ति नवल को समर्पित हैं। इनमें पहली कविता में कवि कहता है कि -
" वह दीप्ति है /
सलोनी-सांवली / मछली की नींद-सा पारदर्शी है /
उसका नेह" ( पृ. - 27 )
इसके बाद लड़की के कृत्यों और उसके प्रभाव के चित्र बनाता है। दूसरी कविता मढ आइलैंड का वर्णन है। तीसरी कविता में वह उस लड़की को कहता है कि जनवरी के दूसरे छोर पर न हुई तो पंखों की फड़फड़ाहट अपना सुर भूल जाएगी, हर चेहरा सन्ध्या का शोक बन जाएगा। समय की बहरी मीनार में कांसे की तमाम घण्टियाँ गूँगी हो जाएंगी। वह उसे काला लबादा ओढ़े एंजल, पर्वतों की वनदेवी की तरह देखता है। चौथी कविता में कवि कहता है कि जब दुनिया बुरे हालातों में थी, तब तुम मुस्करा रही थी, सोनचिरैया सी गा रही थी। उसकी मुस्कराहट की खिड़की से कवि आकाश का अनन्त नील देखता है। पाँचवी कविता में एक प्रेमी युगल का वर्णन है, जो एक-सा पहरावा पहने हुए है। लड़की सफेद लिबास में परी लगती है। छठी कविता में लड़की लड़के को कोलम्बस कहती है और कवि बताता है कि इसका कारण फ़िल्म साथ-साथ में दीप्ति का फारूख को कोलम्बस कहकर बुलाना है। इस श्रृंखला की अंतिम कविता में कवि लड़के को फारूख़ शेख और लड़की को दीप्ति नवल सा कहता है। वह उनका चित्र इस प्रकार बनाता है -
"लड़का रुपये में बारह आने शरीफ / लड़की आटे में नमक जित्ती नकचढ़ी/
लड़का नाप-तौल कर बोले / लड़की जुबान से कान काटे /
लड़का दानिशमंद, लड़की हाजिरजवाब" ( पृ. - 40 )
लड़का-लड़की का स्वभाव भी विरोधी है और उनका पहरावा भी फिर भी वे छुट्टी के दिन बाग में मिलते हैं। कवि कहता है कि फुर्सत के पल हों, मिलने का शऊर हो, खो देने का गुमान दूर तक न हो और ऐसे में लड़का फारूख-सा और लड़की दीप्ति-सी हो। 
    दीप्ति को समर्पित इन रचनाओं के इतर इस भाग में 30 कविताएँ हैं। वह नॉवल 'लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा' पढ़कर कविता लिखता है। प्रतीक्षा के समुद्र तट पर खड़े होकर वक्त को उम्र और उम्र को याददाश्त बनते देखता है।
     प्रेम कविताओं में प्रेम के कई रूप हैं। कवि खुद को प्रेमिका को चाहते हुए देखता है। वह प्रेम का कोई इसलिए नहीं मानता। सच में प्रेम कारणहीन ही होता है। वह लिखता है -
"केवल एक स्वप्न था / किंतु स्वप्न कोई कारण तो नहीं होता / केवल एक विकलता थी / जिसकी कोई वर्णमाला तक नहीं" ( पृ. - 9 )
उसके अनुसार इस लिपिहीन प्रेम का उदघोष करने से शर्माना नहीं चाहिए, बल्कि - 
"कह देना निःशंक / मैं प्रेम में हूँ" ( पृ. - 12 )
कवि इस कहने को ज़रूरी मानता है। वह खुद अथाह प्रेम करता है, लेकिन प्रेम बलात तो नहीं होता, इसलिए वह किसी जोर-जबरदस्ती का पक्षधर नहीं। वह कहता है -
"तुम जितना प्रवेश दोगी / दाखिल होऊँगा /
तुम्हारे भीतर / उतना ही" ( पृ. - 16 )
हालाँकि उसकी इच्छा है कि उसकी प्रियतमा उसकी पूरी चाहना चाहे। वह कहता है -
"तुम मेरे हाथों को / अपनी हथेलियों में /
छुपा लो" ( पृ. - 58 )
कवि का मानना है कि हाथ गुलाब और हथेली किताब हो सकती है। वह उसकी स्माइलीज को संभाल कर रखता है और उसकी मुस्कराहटों का पूरा अल्बम उसके पास है। कवि खुद को रँगरेज कहता है और प्रियतमा को रसप्रिया। रंगों के मेल से बनते नए रंगों को बड़ी खूबसूरती से बयान किया गया है। चुनरी के रंग जैसा पीला फूल जब वह प्रियतमा के बालों में टांकता है तो गजरे की सफेद रात मचल उठती है। मन महक उठता है। यह महकना वैसे ही है -
"जैसे छींक भर भी छींटा हो मेंह का तो /
बेतरह महक उठती है मिट्टी!" ( पृ. - 14 )
    कवि मानता है कि उसकी भाषा अधूरी है, और वह समर्पण जितना पूर्ण वाक्य लिखना चाहता है। वह प्रेमिका को ज्वार और लहर बनने को कहता है, जिससे चन्द्रमा रीझें, हंस तैरें। वह उसे कहता है -
"मेरी भाषा-सी अधूरी मत रहो / तुम्हारे समर्पण जितना सम्पूर्ण एक वाक्य /
लिखना है मुझे अपनी अंगुलियों से /
तुम्हारी पीठ पर अपनी नदी से कहो / बदले करवट" ( पृ. - 20 )
कवि स्पर्श का दुकूल पहनने की बात करता है। वह लिखता है -
"तलुओं पर सहलाऊँगा / स्पर्श का आलता /
जो अपनी ये प्रतिक्षाएँ / मुझे सौंप दो तुम!" ( पृ. - 19 )
कवि का स्पर्श त्वचा के तटबन्ध के बीच बहती देह की नदी में हिलोर लाता है। स्पर्श के पत्थर त्वचा की नदी में डूब जाते हैं। चुम्बनों की गंध में वे एक-दूसरे को खोजते हैं। कवि कहता है - 
"मैं तुम्हारी देह की नदी में उतरकर / छू लूँगा तुम्हारे किनारे" ( पृ. - 66 )
प्रेमिका के अनेक चित्र हैं और बड़ी खूबसूरती से प्रेमिका के क्रियाकलापों को चित्रित किया गया -
"जब-जब मुस्कराती हो तुम / रौशनी का रूमाल फैलता है" ( पृ. - 54 )
प्रियतमा मिठास से भरी है, लेकिन उसका मीठापन अनचखा है, इसलिए वह पूछता है -
"कितना अकेला / कितना उदास /
कर देता होगा ना / इतनी मिठास से /
भरा होना!" ( पृ. - 21 ) 
उसके अनुसार मीठे होने का औचित्य तभी है, जब उस मिठास को चखा जाए। 
     कवि दो और एक की बात करता है, नाव के किनारे, आँख के सकारे, दो प्राणों के एकांत का दो होना समुद्र, आकाश और प्रीति के दो होने के बारे में सवाल खड़ा करता है, लेकिन एक तृषा की एक तपन बताती है कि दो आँखों का सपना एक है। इन कविताओं में अनजान के प्रति भी आकर्षण है। दिल्ली मेट्रो वाली लड़की अनजान ही है और वह उससे मेट्रो में उसके पास बैठने का गिफ्ट माँगना चाहता है। प्यार करने वाले के मन की दशा को बताया गया है -
"खुद से नाराज़ रहने की चेष्टा / हमेशा चलती रहती है /
प्यार करने वाले के भीतर।" (पृ. - 56 )
   कवि दिल की उदासी का भी जिक्र करता है, दिल का दर्द जागता है। दिल में पराई पीर है, जो कहने से छूट सकती है। वह लिखता है -
"एक हूक, टीस, गूँज / जिसका कोई ध्रुव नहीं /
बिंदु नहीं" ( पृ. - 61 )
इंतजार का वर्णन है और कवि की नज़र में -
"समय ही प्रतीक्षा है" ( पृ. - 54 )
कवि विदा होने का भी जिक्र करता है और विदा शब्द पत्थर और बारिश पर लिखता है, खुद को वह हवा के पारदर्शी गुम्बद में हाथ हिलाते पाता है।
   प्रेम है तो ईर्ष्या भी होगी। कवि को भी है, लेकिन यह ईर्ष्या किसी व्यक्ति विशेष से न होकर नींद से है, क्योंकि -
"तुम अपने को / नींद की बाँहों में /
पूरा सौंप देती हो" (पृ. - 22 )
   दूसरे भाग में सिर्फ 15 कविताएँ हैं। इस भाग की कुछ कविताएँ लड़कियों को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं। ये लड़कियाँ कवि की प्रेमिका नहीं हैं। कवि राह चलती लड़की को देखता है, उसके क्रियाकलापों पर गौर करता है और कविता 'एक लड़की चल रही है' में बयान करता है। इसमें लड़की का सुंदर शब्द-चित्र बनाया गया है -
"हरा सलवार सूट / जिस पर पीले फूल /
आँखों में खूब काजल / कानों में सफेद मोती /
होठों पर लिप ग्लॉस / जिसमें स्ट्राबेरी की महक।" ( पृ. - 82 ) 
और इसी से मिलता-जुलता विषय और शब्द-चित्र कविता 'लड़की : एक सुबह' में है। लड़की का ट्रेन से दफ्तर के सफर का वर्णन है। साथ में रेल का भी वर्णन है -
"एक लंबे मोड़ पर रेलगाड़ी किसी साँप की तरह लहराती है।" ( पृ. - 84 )
कवि इस कविता का अंत गुलजार की ग़ज़ल "सहमा-सहमा डरा-सा रहता है" के एक शे'र से करता है। 'आकांक्षा में कां पर लगी बिंदिया' भी लड़की का ही चित्रण है। इसमें लड़की खुद को आईने में देख रही है। वह आईने में देखते-देखते सोचती है -
"जो मैं आईना होती और तुम मैं /
तो तुम जानते, अपने को पूरा सौंप देना /
कैसा होता है।" ( पृ. - 92 )
रूठी हुई लड़की क्या-क्या करती है, कवि इसे विस्तार से 'रूठी हुई लड़की अपनी ऐनक के पीछे रहती है' में बयान करता है। एक लड़की गलती से कवि को मैसेज भेजती है, कवि उस पर कविता लिखने की बात करता है। वह जब भी लाल बत्ती पर होता है, लड़की को मुस्कराहट की तितली भेजता है। लेकिन यह सिलसिला लम्बा नहीं चलता -
"कितना अरसा हुआ / तुम्हें लालबत्ती से मैंने /
एक 'ब्लश वाली स्माइल' नहीं भेजी /
तुम्हें भी भूले से कभी उनकी याद /
आती तो होगी ना, मेरी परी!" ( पृ. - 122 )
    इस संग्रह में कुछ कविताएँ स्कूली दिनों को याद करते हुए लिखी गई हैं। यहाँ प्रेम तो नहीं पनपता। हाँ, कवि का लड़कियों के प्रति झुकाव ज़रूर दिखता है। कवि उन दिनों का वर्णन करता है, जब वह स्कूल शा उ मा वि महाराजवाड़ा में पढ़ता था और उसके साथ लगे सराफा स्कूल की लड़कियों को देखता था। वह स्कूल के घटनाक्रम का भी जिक्र करता है और लड़कियों की कुशलता का भी। स्कूल के पास से गुजरता हुआ वह कल्पना करता है -
"मानो मेरा नाम लेकर ही अभी /
पुकार बैठेगी कोई नौवीं की छात्रा / 
फिर ठठाकर हँस पड़ेगी सहपाठिनी के /
हाथ पर देकर ताली।" ( पृ. - 124 )
कवि उस स्कूल को अब भी नहीं भूला और जब भी उसका उज्जैन लौटना हुआ, वह उसे निहारना चाहता है। कवि 'मराठी मंदिर विद्याशाला' के प्रसंग को भी उठता है, जहाँ लड़की छठी कक्षा में आई थी। वह उसके साथ बैठता है और वह उसे मुस्कराने को कहती है। लेकिन वह जैसे मिली थी, वैसे ही खो जाती है। मुस्कराने और गालों के गड्ढे के प्रसंग की पुनरावृत्ति 'क्लचर वाली लड़की' कविता में भी है। यहाँ भी लड़की उसकी सहपाठी है। उससे कॉपी लेकर होमवर्क करती है। उसका क्लचर कवि के हाथ में आ जाता है। प्रेम के कुछ चित्र भी इस भाग में शामिल हैं। प्यार के बारे में वह लिखता है -
"जैसे साँप जहर से नहीं डरता /
प्यार इंतजार से नहीं" ( पृ. - 135 )
    कवि प्रियतमा द्वारा उसे उसके नाम से पुकारा जाने को कविता का विषय बनाता है और इसे रति-केलि की फंतासी से जोड़ता हुआ लिखता है -
"संसर्ग के क्षण में बहुधा प्रेमी / अपनी प्रेयसियों से याचकों की तरह / 
अनुनय करते स्खलन की उपत्यका में / ढहते हुए कि तुम मेरा नाम पुकारो" ( पृ. - 74 ) 
कवि के दिमाग में यह फंतासी है, इसलिए कवि को उसके द्वारा नाम लेकर पुकारा जाना विचित्र तरह से विकल कर देता है, हालांकि वह चाहता है कि वह उसे नाम लेकर पुकारे। कवि कहता है कि वह कभी अलविदा नहीं कह सकेगा। मिलन के क्षणों में वक्त नहीं है, वह वक्त के बाहर मिलना चाहता है। विदा के पलों का चित्रण करते हुए वह लिखता है -
"तुम्हारे जाने का चंद्रमा / कभी न ढल सकेगा मेरे भीतर /
चाहे बारिश कितनी तेज हो" ( पृ. - 96 )
वह प्रियतमा को लैंसडौन शहर ही अमेज़ॉन से मंगवाकर देना चाहता है -
"दिल्ली की उमस में इससे बेहतर तोहफा /
और क्या हो सकता है कि वो अमेजॉन का गिफ्ट पैक खोलती /
और उससे लैंसडौन देखकर चौंक जाती।" ( पृ. - 111 )
हालांकि उसकी प्रेमिका महज क्लचर मंगवा रही है, जो लैंसडौन में भूल आई है। कवि ने लैंसडाउन शहर के निर्माण की कहानी भी कही है और तोमाश की किवदंती भी। 
     प्रियतमा की गैरमौजूदगी में वह उसको महसूस करना चाहता है -
"हर उस दरख़्त को छूकर देखूँगा /
जिसे छुआ होगा तुमने शायद कभी /
इस उम्मीद में कि छू सकूँ / तुम्हारी छुअन।" ( पृ. - 133 )
वह उसे समझाना चाहता है उस तड़प के बारे में जब कोई गाता है -
"जाइए आप कहाँ जाएँगे!" ( पृ. - 134 )
'स्वांग है उसका इंद्रधनुष' इस संग्रह की श्रेष्ठतम रचनाओं में से है या कहें कि सर्वश्रेष्ठ है। इसमें पुरुष और स्त्री के चरित्र को उदघाटित किया गया है। पुरुष पहला प्रेमी बनना चाहता है और स्त्री अंतिम प्रेमिका। पुरुष प्रेमिका पर उपनिवेश की तरह अधिकार चाहता है। पुरुष के बारे में वह लिखता है -
"पुरुष प्रश्न नहीं चाहता / उत्तर चाहता है, अधिकार चाहता है /
जबकि वह स्वयं दे नहीं सकता / अधिकार!" ( पृ. - 72 ) 
इस कविता में पुरुष के दंभ को दिखाया गया है और स्त्री के समर्पण को। पुरुष के स्वभाव के बारे में वह लिखता है -
"पुरुष आखेट करता है /
स्वांग ही उसका धनुष है!" ( पृ. - 71 )
      प्रेम का वर्णन है, तो जीवन का वर्णन भी होगा और जीवन में विसंगतियों पर भी जाने-अनजाने नज़र ज़रूर जाएगी। 'मत्स्यगंधा' में बम्बई के मढ आइलैंड का चित्रण करते हुए वह लिखता है -
"बम्बई में खुली हवा में साँस लेने और समुद्र की लहर गिनने के भी पैसे लगते हैं, पर मछलियाँ ही बेभाव हैं। धूप में सूखती रहती हैं ठूँठ की तरह।" ( पृ. - 35 )
माताओं  और बेटी की शादी को बोझ समझे जाने का सटीक चित्रण है -
"माएँ कितनी व्यग्र होती हैं कि शीघ्रताशीघ्र सौंप दे अपनी बेटियों को किसी और को, और तब गंगा नहाएँ।" ( पृ. - 80 )
कामकाजी नारी की दशा का चित्रण है -
"कपल पर स्वेद-बिंदु। 'बड़ी दूर से साइकिल चलाकर आई है निश्चित', मैंने मन ही मन सोचा। सुबह अपना टिफिन खुद ही बनाकर निकली होगी, दोपहर को घर लौटकर माँजने होंगे बासन।" ( पृ. - 80 )
लड़कियों तक को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, वह लड़कियों के क्रियाकलापों के बारे में सोचता है -
"सुबह की पाली वाली छात्राएँ / घर जाकर माँजती होंगी बर्तन /
दोपहर की पाली वाली / घर जाकर पकाती होंगी साग" ( पृ. - 124 )
कहीं-कहीं दार्शनिकता का भी समावेश है -
"कोशिश करोगी तो सो कैसे सकोगी? सोने के लिए कोशिश करना छोड़ देना होता है।" (पृ. - 107 )
पहले और आखिरी के बारे में वह कहता है -
"पहला हमेशा पहला होता है / 
आखिरी कभी आखिरी नहीं होता" ( पृ. - 70 )
मृत्यु पर उसके विचार काबिले-गौर हैं - 
"हम मरते नहीं, केवल बीत जाते हैं /
वक्त हमसे होकर गुजर जाता है" ( पृ. - 100 )
      भाषा इस संग्रह की विशेषता है। यहाँ उर्दू और अंग्रेजी शब्दावली का भरपूर प्रयोग हुआ है, वहीं तत्सम और देशज शब्द भी प्रचुर मात्रा में हैं। दुकूल, लस्त-पस्त, बेहलचल, संज्ञेय आदि अनेक शब्द भाषा को अलग स्तर पर ले जाते हैं।  पुस्तक में वर्णन भी है, विवरण भी दिया गया है। 'रंगरसिया" कविता में संवाद शैली का सुंदर प्रयोग हुआ है। अन्य कविताओं में भी संवाद का सहारा लिया गया है। गद्यगीतों में तो संवाद प्रमुखता से आया है। कवि अनेक चित्र बनाता है। मेट्रो में आती-जाती लड़की का चित्र बनाया गया है। वह चिड़ियों के लिए पानी रखती चिड़िया के जैसे मन वाली लड़की का चित्रण करता है। प्रश्न भी पूछे गए हैं। उपमाएँ भी हैं, रूपक भी बाँधे गए है या ये भी कहा जा सकता है कि उपमाओं, रूपकों, बिम्बों के बीच प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। कहीं-कहीं कविता का यह रूप रीतिकाल के लक्ष्य-ग्रन्थों सा लगता है। कभी-कभी दुरूह भाषा के बीच-बीच सरल शब्दों में सीधी-सादी अभिव्यक्ति बहुत सुंदर बन पड़ी है -
"पर जो तुमने रोपा था मेरे भीतर / देखो तो अब भी हरा है / 
जाने किस मौसम में / फूटी थी कोंपल /
मिट्टी थी वो / जाने किस / इलाके की।" ( पृ. - 96 )
     लेखक को खुद पता है कि वह साधारण-सी बात को बहुत लंबा खींचता है, तभी तो उसकी प्रेमिका कहती है
"ओहो, कहाँ से कहाँ चले जाते हो?"
कहाँ से कहाँ चले जाना इस संग्रह की विशेषता है, जिसे आप गुण मानेंगे या अवगुण यह आप की पाठन क्षमता पर निर्भर करता है। 
©दिलबागसिंह विर्क
87085-46183

1 टिप्पणी:

मन की वीणा ने कहा…

सारगर्भित, निष्पक्ष समालोचना।

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