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मंगलवार, जून 11, 2019

इतिहास और साहित्य का सुमेल

पुस्तक - आज़ादी के पहले और बाद
रचयिता - मनजीतकौर मीत
प्रकाशन - अंजुमन प्रकाशन
पृष्ठ - 112
कीमत - 150/- ( पेपरबैक )
भारत ने आज़ादी के लिए लम्बा संघर्ष किया है । आज़ादी अपने साथ दंगे लाई । वे जख़्म तो किसी - न - किसी तरह भर गए, लेकिन भारत की वर्तमान दशा ऐसी नहीं हो पाई, कि इस पर गर्व किया जा सके । महँगाई, भ्रष्टाचार, असुरक्षा आदि अनेक मुद्दे हैं । नेता काले अंग्रेज़ बन गए और जनता पिसती जा रही है । ये बातें हर भावुक इंसान को उद्वेलित करती हैं । लेखिका मनजीतकौर मीत भी इनसे उद्वेलित है । उसने इतिहास सुनाने और कविता कहने का कार्य एक साथ किया है । इस अनोखे प्रयोग को उसने प्रस्तुत किया है, अपनी पुस्तक " आज़ादी के पहले और बाद " में । मूलतः यह कविता-संग्रह ही है, लेकिन यहाँ-यहाँ ज़रूरी लगा, वहाँ पर इतिहास का वर्णन गद्य में भी किया गया है, इस प्रकार यह संग्रह 1757 से आज तक की महत्त्वपूर्ण घटनाओं को रेखांकित करने वाला दस्तावेज बन गया है ।
            इस संग्रह को तीन खण्डों में विभक्त किया गया है । खण्ड एक रणवीरों का इतिहास है, जिसे आज की पीढ़ी भूलती जा रही है । यह इतिहास ईस्ट इंडिया कम्पनी के राजनैतिक ताकत के रूप में उदय से शुरू होता है । पहले अध्याय में प्लासी का युद्ध, कर्नाटक युद्ध, मराठा-अंग्रेज़ युद्ध और सिख-अंग्रेज़ युद्धों के बारे में गद्य में बताया गया है । इसके बाद गुलामी की दास्तान बताती कविता है । कवयित्री भरतीयों की नादानी और अंग्रेजों की साज़िश का जिक्र करती है । जंगे-आज़ादी अध्याय में 1857 के संग्राम की भूमिका को गद्य-पद्य में लिखा गया है । इसके बाद झाँसी की रानी की गाथा भी गद्य-पद्य में है । रानी की वीरता का वर्णन करते हुए वह लिखती है - 
कालपी चली वह घोड़े पर बैठे / पुत्र दामोदर लिया पीठ साधे /
कौशल ग़ज़ब रणभूमि दिखाए / दुर्गा कभी तू काली बनी थी / ( पृ. - 28 )
              इसके बाद राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, बंग-भंग और प्रथम युद्ध का वर्णन है । द. अफ्रीका से गांधी का लौटना गद्य-पद्य में है । अगले कुछ अध्याय रॉलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, असहयोग आंदोलन, क्रांतिकारी दल, सुभाषचंद्र बोस, काकोरी कांड, साइमन कमीशन, केंद्रीय असेम्बली बम कांड, डांडी मार्च भी इसी शैली में रचे गए हैं । कवयित्री ने विषय वस्तु का संक्षेप में परिचय देकर, फिर उसे कविताबद्ध किया है । कहीं-कहीं उसने गीतों के माध्यम से अपनी बात कही है, यथा - 
आओ सुनाऊँ तुम्हें कहानी इक ऐसे किरदार की /
नहीं भूलती बैसाखी वो और खूनी संहार की / ( पृ. - 36 )
              कवयित्री तीनों गोलमेज सम्मेलनों के बारे में संक्षेप में बताती है । लार्ड इरविन समझौता, राजगुरु, भगतसिंह और सुखदेव को फाँसी, सेल्युलर जेल विषयों को गद्य-पद्य में लिखा गया है । द्वितीय विश्व युद्ध पर टिप्पणी के बाद अंग्रेज़ो भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में बताते हुए गीत कहा गया है - 
कहानी को अब इक नया मोड़ दो /
ख़ुदा के लिए यह वतन छोड़ दो / ( पृ. - 60 )
अंत में बंटवारा, विभाजन पर विभिन्न मत, बंटवारे के बीज नामक लेख हैं । 
               खंड दो, उस टीस को लेकर है, जो अंग्रेज़ जाते-जाते छोड़ गए । सबसे पहले ऐतिहासिक दिन का गद्य में वर्णन है, फिर आज़ादी दिवस और दंगों से रू -ब - रू करवाती 21 पद्य रचनाएँ हैं, जिनमें कविता, गीत और ग़ज़ल हैं । वे लिखती हैं - 
कैसा आज़ादी का दिन आज आया / 
ख़ुशी थोड़ी, ज़्यादा मातम है लाया / ( पृ. - 68 )
बँटवारे का जिक्र सामने आने पर ही लोगों के दिलों में खोट उभरने लगा था, तभी तो - 
रखकर मुस्कान लबों पर निरंतर /
हथियार चौबारे धरने लगे / ( पृ. - 70 )
आदमी आदमी न रहकर हिंदू, मुस्लमान हो गए थे । ऐसे वहशी माहौल को देखकर कवयित्री कह उठती है, " काहे को तूने औरत बनाई ", क्योंकि औरतें ही सबसे ज़्यादा शिकार बनी, हवस की भेंट चढ़ी । लोग घर से बेघर हुए, रिफ्यूजी बने । सिर्फ़ देश नहीं बंँटा, अपितु धरती,आसमान भी बंटे । किसी का मुलतान छूटा, किसी का सुल्तान छूटा । तबाही के मंजर सरेआम थे । गाँव , कस्बे लाशों से भरे थे । बलवाइयों ने नगर घेर लिए थे । कवयित्री अब पीछे मुड़कर उन जगहों को देखना चाहती है, जो छूट गए - 
अब भी है दिल में हसरत वो बाक़ी /
जाऊँ औ देखूँ निशां कोई बाक़ी / ( पृ. - 87 )
                   तीसरा खंड यह सवाल पूछता है, कि क्या हमने वीर जवानों की कुर्बानी की क़ीमत पहचानी है । शुरूआत में भारत की चुनौतियों का जिक्र है, विभिन्न युद्धों का वर्णन है, पूर्वी पाकिस्तान पर टिप्पणी है, कश्मीर पर गद्य-पद्य में लिखा गया है ।इसके अतिरिक्त 13 कविताएं हैं । गीत ' मक़सद ' में कवयित्री पूछती है - 
जिस मक़सद की खातिर रणवीरों ने जान गँवाई है /
दिल पे रखकर हाथ ये कहना, क्या आज़ादी आई है / ( पृ. - 95 )
वह कहती है, कि देश जल रहा है । कंधों पर बेटे की अर्थी का दर्द संगदिल क्या जाने । देश के कर्णधारों के लिए देश अब्बा की जागीर है । भारतीय शासकों ने भी अंग्रेज़ों की बाँटकर राज करो की नीति को अपना लिया है । आँकड़ों का खेल जारी है -
दाल, चीनी, दूध, सब्जी आदमी से दूर है /
विकास दर ऊँची, पेश कर रहे हैं आंकड़े / ( पृ. - 101 )
घपलों-घोटालों की लिस्ट बढ़ती जा रही है, भ्रष्टाचार चरम पर है । किसान की दशा खस्ताहाल है, भुखमरी है । लड़कियाँ सुरक्षित नहीं । वह कहती है - 
कैसे तुझे बचाऊँ / किस आँचल तले छुपाऊँ ( पृ. - 106 )
वह आम आदमी की दशा बयान करते हुए उन लक्ष्यों की ओर संकेत करती है, जो पाने अभी बाक़ी हैं ।
                   यह संग्रह इस दृष्टि से अनूठा है, कि झसमें इतिहास पढ़ने का आनंद भी मिलता है, और कविता का भी । गद्य आमतौर पर विवरणात्मक और पद्य वर्णनात्मक है । भाषा सरल, सहज और प्रसंगानुकूल है । कवयित्री ने मुक्त छंद की कविताएं भी कही हैं, लेकिन उसका जोर तुकांत पर है । गीत, ग़ज़ल के कारण गेयता का गुण विद्यमान है ।
              संक्षेप में, इतिहास के विद्यार्थी और साहित्य के पाठक, दोनों के लिए यह कृति महत्त्वपूर्ण है ।
दिलबागासिंह विर्क 
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3 टिप्‍पणियां:

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

पुस्तक पढ़ने को प्रेरित करती शानदार समीक्षा...

Anita ने कहा…

सुंदर समीक्षा

विश्वमोहन ने कहा…

बढ़िया समीक्षा।

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