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मंगलवार, अगस्त 08, 2017

जीवन का हर सुर सुनाता संग्रह ‘ मन सरगम ’

हाइकु-संग्रह – मन सरगम 
कवयित्री – डॉ. आरती बंसल
प्रकाशक – एजुकेशनल बुक सर्विस 
कीमत – 150 /-
पृष्ठ – 112 ( पेपर बैक )
कवि कर्म का मुख्य उद्देश्य होता है अभिव्यक्ति और जिस विधा में यह सही ढंग से हो सके कवि उसी को चुनता है | हाइकु एक विदेशी विधा है, लेकिन हिंदी में दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय हो रही है | कवयित्री आरती बंसल ने भी इसी विधा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है और मन-मस्तिष्क में उठती लहरों से निकले 456 हाइकु रूपी मोतियों की मंजूषा तैयार की है “ मन सरगम ” नाम से | इस हाइकु-संग्रह को उन्होंने 56 विषयों में विभक्त किया है |

                     कविता जीवन से उपजती है और कविता जीवन के लिए है, इसलिए हर कवि जीवन पर अपनी लेखनी ज़रूर चलाता है | कवयित्री आरती बंसल ने भी जीवन शीर्षक के अंतर्गत सबसे अधिक 42 हाइकु रखे हैं, इसके अतिरक्त ज़िंदगी शीर्षक से भी 5 हाइकु हैं | इन सभी हाइकुओं के माध्यम से कवयित्री ने जीवन को अलग-अलग नजरिये से देखा है | कवयित्री का मानना है कि पथ के कांटे और हाथ की लकीरें बाधक नहीं बन सकती, लेकिन ईश्वर कृपा का उसे विश्वास है | वह संतोष रखने, न घबराने का संदेश देती है | नन्हें जुगनू से प्ररेणा लेने को कहती है, ज़िंदगी उसे कभी मीरा-सी तो कभी सुदामा जैसी लगती है | वह दोगले लोगों के चरित्र को बयां करती तो वहीं जीवन मूल्यों के पीछे अर्थ के महत्त्व को देखते हुए कहती है – 
चूल्हे में आग / बची तो ही बचेगा / आँख का पानी ( पृ. – 38 ) 
                     जीवन है तो प्रेम है और जीवन के बाद सबसे अधिक 37 हाइकु कवयित्री ने प्रेम विषय पर लिखे हैं | प्रेम के शोख रूप का वर्णन है तो प्रेम के कारण उपजी उदासियाँ भी हैं | प्यार का किस्सा अधूरा रहता है, और प्रेमी के बिना जीवन काँटों से भरा | वह प्रियतम के हाथों में हाथ डाले ख्बाव बुनना चाहती है, उसका मानना है –
जब तू मिला / ज़िंदगी बन गई / कवितामयी ( पृ. – 25 ) 
कहते हैं प्रेम है तो विरह है, लेकिन कवयित्री का मानना है कि विरह है तो प्रेम है – 
विरह आग / है जलाए रखती / प्रेम की जोत ( पृ. – 95 ) 
                  जीवन और प्रेम के बाद कवयित्री ने मन विषय पर 17 हाइकु लिखें हैं | पुस्तक का शीर्षक भी इसी विषय पर आधारित है | मन सरगम-सा है, जिसमें अलग-अलग सुर हैं | मन के द्वारे प्रियतम के आते ही थकान मिट जाती है, उसी के जुनून में यह खोया-खोया रहता है | मन इतना नादान है कि भीड़ में अकेला रहता है और इतना चंचल है कि चहुँ ओर भटकता है | आशा पाकर दुखी मन मुदित हो जाता है और मन के महकने से चमन खिल उठता है | कवयित्री मन की बात मानने का संदेश देती है – 
मन का गीत / जो तू गुनगुना दे / हो प्रेम गीत ( पृ. – 14 ) 
                      प्रकृति और प्रकृति के विभन्न तत्व उनके विषय बने हैं, उन्होंने प्रकृति, वसंत, सावन, आसमां, ओस, नदी, झील, सागर, बारिश, बादल, चाँद, सूरज, धूप, रात, फूल, माटी, पत्थर, पनघट आदि शीर्षकों के अंतर्गत हाइकुओं की सृजना की है | पेड़ का फूलों से लदना उसे प्रकृति का हँसना लगता है | सुहानी शाम संदूर से भरी मांग लगती है | वसंत का आगमन वृक्षों का वस्त्र बदलना है | ओस कभी उसे प्रेम की पाती लगती है तो कभी यह रात के आँसू लगते हैं | खुला आसमान धरती को बाहें पसारकर पुकारता है तो वहीं वह आदमी को देखकर रोता है | कली को देखकर कवयित्री लिखती है –
चटकी कली / चुनरी से झांके ज्यों / नवयुवती ( पृ. – 93 ) 
चढ़ते-छिपते सूरज की छटा का वर्णन है, रात दुल्हन है | बरसते मेघों को धरा रूपी सुन्दरी अपलक निहारती है | नीले आसमां पर उड़ते बादल शावकों से दिखते हैं | सावन आता है तो पेड़ मुस्कराते हैं, मोर नाचते हैं | सपनों की बारिश से सौंधी खुशबू बिखर जाती है तो बारिश की की बूंदों से जल संगीत पैदा होता है | नदी नवेली है, अकेली है जो सुरीली धुन सुनाती है और समन्दर से प्रेम करती है जबकि समुद्र निष्ठुर तो है लेकिन मछुआरा का पालनहारा है | पत्थरों से झरने फूटते हैं | चाँद निगोड़ा भी है, बेचारा भी |
                    कवयित्री ने रिश्तों पर लेखनी चलाई है, माँ, पिता को विषय बनाया है । दुल्हन, नारी, लड़कियाँ, बुढापा, बचपन पर भी उन्होंने हाइकु लिखे हैं | कवयित्री को लगता है कि दिखावट के कारण रिश्ते सहम गए हैं, रिश्तों की डोर बड़ी महीन होती है, माँ ममतामयी होती है और उसकी ममता की पिटारी कभी खाली नहीं होती | माँ के रूप का बड़ा सुंदर चित्रण देखिए -
रोटी बनाती / गूंथ दुआ आटे में / तवे पकाती ( पृ. – 47 )
पिता का चेहरा रेखागणित है, बाल घर का खर्च जुटाने में पक जाते हैं, लेकिन बचपन पिता का हाथ थाम कर ही सुरक्षित महसूस करता है | कवयित्री नारी के अल्हड़, तरूणी रूपों का सुंदर वर्णन करती है, लड़कियाँ उसे सर्दियों की धूप-सी लगती हैं | दूल्हा-दुल्हन के कंगना खेलने और दुल्हन की लज्जा का चित्रण है | बचपन और बुढापे का जीवंत वर्णन है | बच्चों के लिए बस्ते बोझ बन गए हैं और वे ख़ुद चक्करघिन्नी | बच्चे मन के सच्चे हैं और मस्ती में ठिठोली करते हैं | वह औरत के श्रृंगार, पेट की आग, गरीबी, चुप्पियाँ, कवि का कर्म, वक्त, खिड़की, दीया, मार्च का महीना, नियति, मतदान, जाऊं किधर, कुछ अन्य हाइकु आदि विषयों में जीवन के विभिन्न समस्यायों को बड़ी शिद्दत से उकेरती है | राम, राधा-कृष्ण और प्रेमचन्द जहाँ उसके हाइकुओं के विषय बनते हैं, वहीं कुत्ते, चिड़िया और तितली भी जगह पाते हैं |
                 गरीब की विवशता को रेखांकित किया है | पेट की आग की भीषणता को दिखाया है – 
बर्फीली रात / देख खाली परांत / रो दिया चूल्हा ( पृ. – 73 )
कवयित्री ने कवि के कर्म को भी बखूबी रेखांकित किया है – 
निजता छोड़ / सबका मन झांके / कवि का कर्म ( पृ. – 78 )
                     प्रेमचंद की कहानियों और पात्रों को सत्रह वर्णों में साकार किया है | चुप्पियों के शोर को सुना है | भाई-भाई के बीच उठी दीवार को देखा है | लोकतंत्र में मतदाता की दशा का वर्णन है | मन की बेचैनियों का कारण असीमित चाहतों को माना है | विविशता का ब्यान है – 
तू उस पार / मेरी नाव पुरानी / जाऊं किधर ? ( पृ. – 53 )
                 यादों की फूलों से मन की फुलवारी चहक उठती है और यही यादें उस पर पहरा भी रखती हैं | आवारा कुत्ते, खोजी कुत्ते, गली के कुत्ते, चिड़िया रानी, नन्हीं प्यारी तितली आदि सब कवयित्री को कलम उठाने के लिए मजबूर करते हैं |
              संक्षेप में, जीवन का हर रंग, हर रूप कवयित्री की सोच का हिस्सा बनता है और शब्दों में ढलता है | उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, मानवीकरण अलंकार का भरपूर प्रयोग हुआ है | मानवीकरण का एक उदाहरण देखिए –
टिका के पीठ / आ बैठती है धूप / छज्जे की ओट ( पृ. – 19 )
जीवन दर्शन को प्रतीकों के माध्यम से ब्यान किया है, कहीं-कहीं तुक का सहारा लिया गया है, बिम्ब देखते ही बनते हैं – 
नीला आसमां / उड़ते बादल के / नन्हें शावक ( पृ. – 91 ) 
भाव पक्ष और शिल्प पक्ष की दृष्टि से सशक्त इस हाइकु-संग्रह के लिए आरती बंसल बधाई की पात्र हैं | निश्चित रूप से यह संग्रह हाइकु की विकास यात्रा में मील का पत्थर साबित होगा |
© दिलबागसिंह विर्क

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-08-2017) को "आजादी के दीवाने और उनके व्यापारी" (चर्चा अंक 2695) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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