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बुधवार, जुलाई 26, 2017

लघुकथा विधा पर विचार करती महत्त्वपूर्ण कृति

पुस्तक - आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार एवं विश्लेषण 
लेखक - रूप देवगुण 
प्रकाशन - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल 
पृष्ठ - 216
कीमत - 450 / - ( सजिल्द )
लघुकथा विधा के रूप में कब शुरू हुई, प्रथम लघुकथा कौन-सी है, लघुकथा का विकास क्रम क्या है और इसके प्रमुख तत्व कौन से हैं, यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं | अलग-अलग विद्वानों के मत अलग-अलग हैं, लेकिन इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के प्रयास जारी हैं | रूप देवगुण जी की कृति " आधुनिक हिंदी लघुकथा : आधार एवं विश्लेषण " इसी दिशा में किया गया महत्त्वपूर्ण प्रयास है, जिसे पढ़कर इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढने में शोधार्थियों को काफ़ी मदद मिलेगी |

                 इस कृति में रूप देवगुण ने पत्रात्मक साक्षात्कार को आधार बनाया है | इसके लिए उन्होंने 61 लघुकथाकारों का साक्षात्कार पत्रों के माध्यम से लिया है, जिनमें एक तरफ वे स्थापित लघुकथाकार हैं, जो वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, जैसे - मधुदीप, मधुकांत, डॉ. बलराम अग्रवाल, डॉ. शील कौशिक, डॉ. रामनिवास मानव, डॉ. प्रद्युम्न भल्ला, सुरेश जांगिड, अमृतलाल मदान, घमंडीलाल अग्रवाल, श्याम सखा श्याम, नरेंद्र गौड़ आदि  तो दूसरी तरफ हरीश सेठी जैसे कुछ नई पीढ़ी के लघुकथाकार भी हैं | लघुकथाकारों से उनकी प्रथम लघुकथा, प्रथम प्रकाशित लघुकथा, लघुकथा संकलनों में हिस्सेदारी, एकल लघुकथा संग्रह, लघुकथा और लघुकथा-संग्रह पर मिले पुरस्कार, सम्मान, लघुकथाओं के मंचन, लघुकथाकारों के साक्षात्कारों या अपने साक्षात्कार, शोध, पत्रिकाओं के प्रकाशन, अनुवाद, आलेख के प्रकाशन आदि से संबंधित प्रश्न पूछे गए हैं | इन प्रश्नों के उत्तर को उन्होंने आधार सामग्री के रूप में लेते हुए इनके विश्लेष्ण से लघुकथा के क्षेत्र में योगदान देने वाले लघुकथाकारों, पत्रिकाओं और संस्थाओं संबंधी प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध करवाई है | 
                      लघुकथा के प्रारम्भ के बारे में वे लिखते हैं कि इसका वास्तविक प्रारम्भ आठवें दशक से माना जाता है लेकिन उनका मानना है कि इससे पूर्व में प्रेमचन्द और जयशंकर प्रसाद की कहानियों का शोध करके इनमें लघुकथा के तत्वों को देखा जाना चाहिए | इस प्रकार वे लघुकथा का प्रारम्भ चौथे-पांचवें दशक से देखते हुए शोधार्थियों को इस विषय पर शोध करने को कहते हैं |
                     लघुकथा के स्वरूप के बारे में भी वे अपना मत रखते हैं - 
" आधुनिक हिंदी लघुकथा में लघुता, एक घटना, कसाव, मारक व प्रभावशाली अंत का होना अनिवार्य है तथा ऐसी लघुकथा में कालदोष भी नहीं होना चाहिए | आधुनिक हिंदी लघुकथा में भाषा-शैली का भी अलग स्वरूप है | आज की लघुकथा के विषय भी समाज, परिवार तथा समसामयिक वातावरण के खोजे जाते हैं | इसके पात्र केवल मनुष्य होते हैं, पशु-पक्षी, वृक्ष आदि |"
                     संक्षेप में, यह लघुकथा से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण कृति हैं जिसमें न सिर्फ लघुकथाकारों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं, अपितु लघुकथा के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न आयोजनों का भी पता चलता है | लघुकथा को शोध का विषय बनाने वालों के लिए तो यह कृति विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होगी |
दिलबागसिंह विर्क
***** 

1 टिप्पणी:

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

यह पुस्तक निश्चय ही लघुकथा के नव रचनाकारों के लिये लाभदायक साबित होगी|

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