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सोमवार, अगस्त 01, 2016

पाठकों और शोधार्थियों, दोनों के लिए उपयोगी पुस्तक

पुस्तक - रूप देवगुण की कहानियों में सामाजिक संदर्भ
लेखिका - शील ‘ शक्ति ’
प्रकाशन - सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल 
पृष्ठ - 160 ( सजिल्द ) 
कीमत - 350 / -
वाद और विचारधाराओं में जकड़े साहित्यकारों को अगर छोड़ दें तो सामान्यत: साहित्यकार लिखते समय रचना को महत्त्व देता है, वाद या विचारधारा को नहीं | कहानी-लेखन में तो बहुधा पात्र कहानीकार की सोच से अलग राह पर कहानी को ले चलते हैं, ऐसा अनेक कहानीकारों ने स्वीकार किया है | दरअसल कहानीकार कहानी लिखते समय अपने पात्रों और उसकी परिस्थितियों को जीता है और उसी के आधार पर कहानी का सृजन होता है | कहानी में किस तत्त्व की प्रधानता है, यह देखना समीक्षकों का कार्य है | सामान्यत: कहानी एकांगी नहीं होती | उसमें प्रेम भी हो सकता है, सामाजिक सन्दर्भ भी, आदर्शवाद या यथार्थवाद भी | समीक्षक किसी कहानीकार की कहानियों को अलग-अलग नजरिये से देखने के लिए स्वतंत्र होते हैं | इसी कड़ी में, रूप देवगुण की कहानियों में सामाजिक सन्दर्भों को देखने का शानदार प्रयास किया है शील शक्ति जी ने पुस्तक “ रूप देवगुण की कहानियों में सामाजिक सन्दर्भ ” में | 

                इस पुस्तक की विशेषता यह है कि यह एक तरफ कहानी-संग्रह है, तो दूसरी तरफ समीक्षात्मक पुस्तक | कहानी के पाठकों के लिए इस पुस्तक में रूप देवगुण जी की 14 कहानियाँ हैं और कहानी के विद्यार्थी और शोधार्थी के लिए हर कहानी से पहले डॉ. शील कौशिक जी का सारगर्भित लेखन है | उन्होंने सामाजिक सन्दर्भों को 11 शीर्षकों में विभक्त करते हुए उन पर अपने विचार दिए हैं | यथा पारिवारिक समरसता के बारे में वे लिखती हैं –
“ परिवार समाज की महत्त्वपूर्ण ईकाई है और यदि परिवार में भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्ण आस्था, नीति-अनीति का सशक्त सामाजीकरण, उदात्त भावों के प्रति भावनात्मक संवेदना हो तो समाज का स्वरूप सुंदर और स्वस्थ होगा | ”   
              लेखिका ने यहाँ सामाजिक संदर्भों पर अपना मत रखा है, वहीं रूप देवगुण जी की कहानियों पर इस दृष्टिकोण से विचार भी किया है | जिन कहानियों को इस संग्रह में स्थान नहीं दिया गया, उन पर भी विचार किया गया है | महानगरीय जीवन पर वे अपने विचार रखते हुए रूप देवगुण जी उन सभी कहानियों का जिक्र करती हैं, जिनमें महानगरीय जीवन की झलक मिलती है –
“ गाँव, शहर, महानगर से लेकर हमारे सपनों की आवारा दौड़ किस तरह से हमें हमारी जड़ों से काटती जा रही है और किस तरह हम अपने आप से निर्वासित होते जा रहे हैं, इस संबंध में लेखक की तीन कहानियां ‘ अनचाहे ’, ‘ कब सोता है यह शहर ’ और ‘ छतें बिन मुंडेर की ’ उल्लेखनीय हैं |” 
                     धन की अंधी दौड़ के कारण ही लोग गाँव से शहर और शहर से महानगर की और दौड़ रहे हैं और महानगरों में एक छत के नीचे रहते हुए भी बेगानों-सा जीवन जीने को बाध्य हैं, इसे दिखाने के लिए शील जी ने रूप देवगुण की कहानी ‘ अनजाने ’ को चुना है, लेकिन वे एक अन्य कहानी ‘ कब सोता है यह शहर ’ पर भी विचार करती हैं – 
“ ‘ कब सोता है यह शहर ’ कहानी मुंबई जैसे महानगर की संस्कृति से रू-ब-रू कराती है | बम्बई फिल्म नगरी के साथ-साथ सचमुच माया नगरी भी है | यहाँ की ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं, होटल, भीड़-भड़क्का, अपने आप में खोया मनुष्य सब कुछ चौंका देने वाला है | कुल मिलाकर लेखक की नजरों में बम्बई पर्यटन के हिसाब से जितना खूबसूरत है, वास्तव में उतना कुरूप भी है |” 
                इस पुस्तक में 14 कहानियां शामिल हैं और सामाजिक सन्दर्भों के आधार पर उनको 11 शीर्षकों के अंतर्गत रखा गया है | सामाजिक सन्दर्भ पर विचार रखते हुए उस विचार का प्रतिनिधित्व करने वाली कहानी को लिया गया है और उस कहानी में मौजूद सामाजिक सन्दर्भ को उद्घाटित भी किया है, यथा अंधविश्वास व अन्य सामाजिक विसंगतियाँ शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत कहानी ‘ हिन्दसा ’ पर लेखिका अपने विचार रखती हैं – 
“ कहानी में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मनुष्य की आपराधिक प्रवृतियों के पीछे समाज की विसंगतियाँ-असंगतियाँ और ज्यादतियां ही हैं, जो उन्हें आपराधिक कृत्य व हिंसा करने के लिए उकसाती हैं | कोई कैदी बेटी की शादी के लिए दहेज़ पूर्ति के लिए अपराधी बना, तो कोई जुआरी, शराबी पिता के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार के कारण | ‘ जब भी समाज में आर्थिक, सामाजिक शोषण और अन्याय सिर उठाएगा, तब-तब अपराधी ही पैदा होंगे ’ उक्ति को बल मिलता है |”
           इसी प्रकार अन्य शीर्षकों आर्थिक विषमता, शिक्षा जगत की विसंगतियाँ, विजातीय व अनमेल विवाह, नारी के प्रति भावना, पारम्परिक मूल्यों की रक्षा, मनोवैज्ञानिक चित्रण, मानवेतर प्राणियों के प्रति समभाव और समाज में साहित्यकार की स्थिति के अंतर्गत कहानियों को प्रस्तुत किया गया है | समाज में पैसे का बहुत महत्त्व है और आर्थिक विषमता समाज में खाई पैदा करती है, इस दृष्टिकोण से ‘ चाबी वाला खिलौना ’ कहानी का चयन सटीक है | यह कहानी समाज में अर्थ के आधार पर पैदा हुए वर्ग भेद को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत करती है | 
       समाज की प्रमुख इकाई है – परिवार | भारत में जब भी समाज की बात होगी, परिवार की बात करनी ही होगी | बिखरते-बनते परिवार, समाज का रूप निर्धारित करते हैं और परिवार में अनेक रिश्ते परिवार का स्वरूप निर्धारित करते हैं | शील जी ने पारिवारिक समरसता के अंतर्गत देवगुण जी की दो कहानियों को लिया है, ये कहानियाँ हैं – गोद और फरमाइशें | शिक्षा समाज की दिशा और दशा निर्धारित करती है, लेकिन आज के शिक्षा जगत में अनेक विसंगतियाँ समावेश कर चुकी हैं | इन्हीं विसंगतियों को दिखाने के लिए कहानी ‘ चौथी घंटी ’ को इस संग्रह में रखा गया है | 
                भारतीय समाज में जाति व्यवस्था बहुत सख्त है | विवाह, जो भारतीय समाज का आधार है, में भी इस व्यवस्था का पालन सख्ती से होता है, लेकिन इसके बावजूद विजातीय विवाह भी होते हैं, जिससे समाज में कई बार उथल-पुथल भी मचती है | इसके अतिरिक्त विवाह के नाम पर बाल-विवाह, अनमेल-विवाह, बहु-विवाह जैसी अनेक बुराइयां भी समाज में विद्यमान हैं | शील जी ने ‘ अवलम्ब ’ और ‘ बात समूचे देश की ’ कहानियों को विजातीय और अनमेल विवाह शीर्षक से प्रस्तुत किया है | 
भारत भले पुरुष प्रधान देश है और भले ही नारी की दशा बहुत अच्छी नहीं, फिर भी हमारा समाज नारी के महत्त्व को स्वीकारता है | नारी के प्रति भावना शीर्षक के अंतर्गत ‘ आकाश ’ कहानी को रखा गया है | पारिवारिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ‘ कुल्फी वाला ’ कहानी चुनी गई है | जीवन के मनोवैज्ञानिक चित्रण के लिए – ‘ अंकुश ’ और ‘ अँधेरा ’ कहानी को लिया गया है | मानवेतर प्राणियों से प्रेम का प्रतिनिधित्व करती कहानी है – समभाव | साहित्यकार समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन अक्सर वे समाज की उपेक्षा भी झेलते हैं, लेकिन अपने दायित्व को समझने के कारण और कुछ लोगों के प्रोत्साहन को पाकर वे अपने कर्म में निरंतर लगे रहते हैं | ‘ अनजान हाथ की इबारत ’ कहानी को समाज में साहित्यकार की स्थिति शीर्षक के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है | सामाजिक सन्दर्भ के अंतर्गत प्रतिनिधि कहानियों का चयन बेहद महत्त्वपूर्ण था, और इस कार्य को शील जी ने बड़ी सफलता से निभाया है |
               पुस्तक के उपसंहार में तात्विक समीक्षा करके लेखिका ने शोधार्थियों का कार्य आसान कर दिया है | इस पूरी प्रक्रिया में कहानी का पाठक, जो कहानी पढकर सिर्फ रस लेता है, कहानी में रस के कारण को समझ पाने में समर्थ होगा | यह पुस्तक रूप देवगुण जी की समस्त कहानियों में से एक सांझे तत्त्व पर आधारित कहानियों को पाठक के समक्ष लाने का बेहतरीन प्रयास है और इसके लिए डॉ. शील शक्ति जी बधाई की पात्र हैं |
दिलबागसिंह विर्क 
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1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2016) को "हम और आप" (चर्चा अंक-2423) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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