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बुधवार, जुलाई 27, 2016

महाभारत जारी है : एम.एम.चंद्रा की नज़र में

नव लेखन के प्रति मेरी आशावादिता हमेशा से ही सकारात्मक रही है. उन्होंने कभी मेरी आशाओं को धूमिल भी नहीं होने दिया. नव रचनाकारों को प्रति मेरे विचारों को अधिक बल तब और मिलने लगता है जब उनकी रचनाएँ इतिहास दृष्टि से वर्तमान को समझने में पाठक को आमन्त्रित करती है. इसी कड़ी में ‘महाभारत जारी है’ के रचनाकार दिलबाग सिंह ‘विर्क’ से मुलाकात होती है |

                    ‘महाभारत जारी है’ की रचनाएँ इतिहास की रोशनी में वर्तमान से मुठभेड़ करती है । रचनाकार का अपना पक्ष है,एक अपना नजरिया है इस दुनिया को देखने का जिसे रचनाकार छिपाता नहीं है बल्कि प्रबुद्ध लोगों की आँखों में आंखें डाल कर पुस्तक को सामर्थ्यवान लोगों की बेशर्म चुप्पी के नाम समर्पित भी करता है । यही साहस उनकी कवितायें करती है । कविता ‘हौआ’ उन तमाम लोगों के चेहरों को बेनकाब करती है, जो आम जनता के बुनियादी मुद्दों से भटकाते है, नए नए हौआ को खड़े करके राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक रूप से रोटियाँ सेंकने का काम करते हैं-
‘हौआ कौआ नहीं,
जिसे उड़ा दिया जाये
हुर्र कहकर’
                   अधिकतर रचनाएँ संवेदनशील मन और जुझारू व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती दिखाई देती हैं । रचनाएं व्यक्ति के मन में उठने वाली तमाम हलचलों को तुलनात्मक विश्लेषण करती हैं । रचनाएँ व्यक्ति और समाज के नाजुक रिश्तों को एहसास कराती है, दिलों में संवेदनशीलता पैदा करती है, व्यक्ति के कर्तव्यबोध को निर्धारित करती है कि किसी भी प्रकार के रिश्तों की फसल को बचाना एक श्रमसाध्य कार्य है-
रिश्तों की फसल
यूँही नहीं लहलहाती
तप करना पड़ता है
किसान की तरह
             वर्तमान लेखन में सिद्धांत और व्यवहार को दो अलग छोर के रूप में परिभाषित किया जा रहा है । यहाँ तक कि सिद्धांत और व्यवहार को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की असफल कोशिश की जा रही है । जीवन संघर्ष को कोई सिद्धांत के आधार पर समझना चाहता है कोई व्यवहार या अनुभव द्वारा । इस समस्या का समाधान लेखक इस कविता के माध्यम से करने की कोशिश करता है-
निस्संदेह,
जरूरी है 
जिन्दगी में, 
सिद्धांतों का होना
लेकिन जिन्दगी दो और दो चार जैसी,
कोई सैद्धांतिक और नीरस नहीं होती.....
जिन्दगी एक गीत है........
             ‘ जरूरी है खतरा उठाना’ जैसी कविता जीवन के उच्च मूल्य को स्थापित करती हुई आगे बढ़ती है तो ‘चश्मा उतार कर देखो’ जैसी कविता संकुचित वैचारिक नजरिए को उतार फेंकने का आह्वान करती है, ताकि मनुष्यता को बचाया जा सके और मुहब्बत के रंग में एक खूबसूरत दुनिया बनाई जा सके । यह दुनिया बनाई जा सकती है लेकिन लेखक इसके लिए बंद आँखों से सपने नहीं देखता, वह खुली आँखों से सपना देखता है, इतिहास का मूल्यांकन करता है । वर्तमान को परिभाषित करता है समाज को परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ता है. इसीलिए पुस्तक का दूसरा खंड बहुत महत्व पूर्ण अवधारणा प्रस्तुत करने की कोशिश करते हुए वर्तमान समाज का विश्लेषण महाभारत काल से करता है |                       
               ‘आत्ममंथन’ एक लम्बी कविता का रूप धारण करती हुई सामर्थ्यवान लोगों की मौन स्वीकृति को बड़ी बेबाकी और सहस के साथ चुनौती देती है –
अपनी प्रतिज्ञा की डोर में बंध कर
सच से आंखें मूंद लेना
कदापि उचित नहीं होता
क्योंकि अन्याय की मौन सहमति
अन्याय का पक्ष लेना ही तो है
                 दूसरे खंड की रचनाएँ लेखक के मत को स्पष्ट करती हैं और पाठक को अपने पक्ष में खड़ा करने की पुरजोर कोशिश करती हैं कि महाभारत अभी खत्म नहीं हुआ है वह जारी है । कुछ भी नहीं बदला न एकलव्य की कथा, न द्रौपदी का चीरहरण-
फिर कैसे कहूँ
महाभारत सिर्फ एक घटना है
द्वापर युग की
महाभारत तो जारी है आज भी
पहले से कहीं विकराल रूप में ..
           कविता संग्रह की रचनाएँ महाभारत से तुलना करके सिर्फ अँधेरी गुफा में ले जाकर पाठक को नहीं छोड़ती । कविताएँ पाठक को इस कठिन दौर से बाहर निकालने का साहस भी देती हैं -
अँधेरे तहखानों से भी
निकलते हैं रास्ते
बाहर की दुनिया के
अगर देख सको तो ...
                इस संग्रह की रचनाओं की अपनी पक्षधरता है । वह केवल आदर्श समाज या आदर्श मनुष्य के ख्याली पुलाव नहीं बुनती बल्कि नया समाज बनाने का रास्ता भी बताती है. इस रास्ते से कुछ लोग सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन कविताओं के माध्यम से लेखक अपने पथ का चुनाव पाठक के सामने रखता है ।वह पाठक को कुछ भी सोचने के लिए स्वतन्त्र नहीं छोड़ता बल्कि पाठक को एक वैचारिक धरातल तक पहुंचाने का काम करता है -
हमें तो करनी है
विचारों की खेती
क्योंकि बंदूकें तो
कभी कभार लिखती हैं
विचार अक्सर लिखते हैं
परिवर्तन की कहानी
महाभारत जारी है : दिलबाग सिंह ‘विर्क’
अंजुमन प्रकाशन 
कीमत 120 रुपये 
पेज 112


1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-07-2016) को "हास्य रिश्तों को मजबूत करता है" (चर्चा अंक-2418) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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