शीर्ष देखकर चौंक गए क्या ? बात तो चौंकने की ही है मगर है सच । अजी अभी से तेवर गर्म हो गए, पहले मेरी बात तो सुनिए । माना आज की लड़कियाँ सफलता के हर शिखर को छू रहीं हैं मगर इससे उन्हें विदुषी होने का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा सकता । आप फिर लाल पीले हो गए ।
अरे भाई यह मैं नहीं कह रहा, यह बात तो तमाम विज्ञापन कहते हैं । कोई पहलवान जब मर्दों वाली हैंडसम क्रीम लगाकर निकलता है तो पूरे गाँव की लड़कियाँ मान मर्यादा छोड़कर पहलवान से आ लिपटती हैं । ऐसे तो शायद गोकुल की गोपियाँ भी द्वापर युग में कृष्ण भगवान पर लट्टू नहीं होती होगीं मगर क्रीम के जादू से सूझवान युवतियाँ बेअकल बन ही जाती हैं ।
गाँव की लड़कियाँ तो ठीक , शहर की लड़कियों का भी यही हाल है । आपने परफ्यूम, शेविंग क्रीम और शेविंग की अन्य सामग्री, बनियान, अंडरवियर आदि के विज्ञापन तो देखे ही होंगे , हर बार लड़कियों की कतारें लगी मिलती हैं उपर्युक्त प्रसाधनों का प्रयोग करने वालों के लिए ।
रही बात लड़कियों को पटाना की तो यह भी कोई बड़ी बात नहीं । बस एक अच्छा सा मोबाइल चाहिए । लड़की को अपने नंबर पर मिस काल मारने को कहिए, क्योंकि लड़कियाँ तो घर से निकलती ही पटने के लिए हैं, इसलिए वे झट से आपके नंबर पर रिंग करेंगी । आप नंबर का नाम भी लगते हाथ पूछ लेंगे और लड़की तो नाम बताने को उतावली ही मिलेगी फिर फोटो भी खींच लेना और फ्रैंड रिकवैस्ट भी भेज देना । है न सिंपल, और यह सिंपल इसलिए है कि लड़कियों के पास अकल तो होती नहीं । दरअसल सारी अकल तो मर्दों के पास होती है । और वह अकल कहती है कि औरत एक बराबर का जीव न होकर मात्र शरीर है , और यह शरीर बेअकल औरतें अच्छा परफ्यूम लगे, चिकनी शेव बनाए, ब्रांडिड कपड़े पहने और स्मार्ट फोन वाले व्यक्ति को झट से सौंप देती हैं ।
मुझे तो लगता है काफी होंगे इतने उदाहरण , विज्ञापन वालों का नजरिया समझने के लिए और हमारी मानसिकता को पहचानने के लिए। अब बताइए आपकी क्या राय है , होती हैं न लडकियाँ बेअकल ??????
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दिलबागसिंह विर्क
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9 टिप्पणियां:
प्रभावशाली !!
जारी रहें !!
आर्यावर्त बधाई !!
विर्क जी ...ये तो कोई बात नहीं हुई ...विज्ञापन की लड़कियों की तुलना असली जीवन में सही नहीं है ....
पहले तो आप ये बतायो कि ऐसा कौन सा लड़का है जो शेव करते हुए या सिर्फ अंडरविअर में खुली सड़क पे आएगा ??????
अरे भाई यह मैं नहीं कह रहा, यह बात तो तमाम विज्ञापन कहते हैं ।----------
आदरणीय अंजु जी यह पंक्ति और पोस्ट का लेबल आपसे थोड़ा ध्यान माँगते हैं ।
इस पोस्ट तक पहुँचने और अपनी राय देने के लिए आभार .....
यही तो घटिया सोच है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
विज्ञापन में नारी वैसे ही लगती है जैसे डाइनिंग टेबिल पर सलाद से सजी हुई प्लेट .आदरणीय विर्क जी इस विषय का निर्वहन थोड़ी संजीदगी और तंज माँगता है .आपकी प्रस्तुति में आप कहाँ बोल
रहें हैं विज्ञापन कहाँ सब कुछ गडमड है .
आप इसे इस तरह कह सकतें हैं एक विज्ञापन कहता है /एक विज्ञापन की बानगी देखिये ......फिर विज्ञापन कवित्त को उद्धृत कर दीजिये .बस .
अक्ल नाम है काम बेअक्ल, ध्यान नहीं 'मर्यादा' |
'फैशन' करें, बुरा क्या इसमें,पर रख मन को सादा ||
'विकास' की रफ़्तार' तेज है पलट के लुढकी 'गाड़ी-
पता नहीं क्या जाने युग का आज है अजब इरादा !!
आप के व्यंग्य सटीक हैं !
ये विज्ञापन लड़कियों को बेअक्ल दिखाते ज़रूर हैं पर असल में इनका उद्देश्य लड़कों को बेवक़ूफ़ बनाना होता है. यदि कोई इस तरह के विज्ञापनों को देख कर कोई उत्पाद खरीदने को प्रेरित होता है तो बताइये कौन बेअक्ल है? जिसे दिखाया गया या फिर जिसे बनाया गया?
-मेरे २ पैसे
जनार्दन बड़थ्वाल
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