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गुरुवार, अगस्त 18, 2011

गृहदाह : एक मार्मिक उपन्यास

गत दिनों सुप्रसिद्ध बांगला उपन्यासकार शरतचंद्र का उपन्यास गृहदाह पढ़ा , सोचा इसे ब्लॉग पर साँझा कर लूं 
                    गृहदाह उलझे हुए सम्बन्धों की कहानी है .ब्रह्म समाज और हिन्दू समाज का भी मुद्दा है . ब्रह्म समाज के लोगों को हिन्दू अच्छा नहीं मानते - उपन्यास की नायिका बार-बार ऐसा कहती-पूछती है ,लेकिन हिन्दू पात्रों ने कहीं भी असहिष्णुता नहीं दिखाई . हिन्दू युवा ब्राह्म लडकी से प्रेम करते हैं , अन्य पात्र उन्हें अपने से अलग तो मानते हैं ,लेकिन घृणा कोई नहीं करता . उपन्यास के अंत में जब रामबाबू अचला को वेश्या समझकर उसे असहाय अवस्था में छोड़ जाते हैं तब महिम हिन्दू धर्म पर भी प्रश्नचिह्न लगाते हुए कहता है -'' पर इस आचार-परायण ब्राह्मण का यह धर्म कौन-सा है, जो एक मामूली-सी लडकी के धोखे से तुरंत धूल में मिल गया ? जो धर्म अत्याचारी की ठोकर से आप अपने को और पराए को नहीं बचा सकता ,बल्कि मृत्यु को उसी को बचाने के लिए प्रतिपल अपनी शक्ति को तैयार रखना पड़ता है - वह धर्म आखिर कैसा धर्म है , और मनुष्य जीवन में उसकी उपयोगिता क्या है - जिस धर्म ने स्नेह की मर्यादा नहीं रखने दी , एक असहाय नारी को मौत के मुंह में छोड़कर चले जाने में जरा भी हिचक नहीं होने दी ,चोट खाकर जिस धर्म ने इतने बड़े स्नेहशील बूढ़े को भी प्रतिहिंसा से ऐसा निर्दयी बना दिया - वह कैसा धर्म है ? और जिसने उस धर्म को कबूल किया , वह कौन से सत्य को लेकर चल रहा है ?''
                   धर्म के अतिरिक्त प्रेम त्रिकोण इस उपन्यास का प्रमुख विषय है . महिम और सुरेश दो मित्र हैं . दोनों कोलकाता में रहते हैं  . महिम मूलत: गाँव का है . वह गरीब है, लेकिन किसी की सहायता लेना और किसी से अपना दुःख कहना उसे गवारा नहीं . उसकी यही आदत आगे चलकर महंगी साबित होती है . महिम अचला नामक ब्रह्म लडकी से प्यार करता है , सुरेश उसे अनुचित मानता है . महिम के गाँव जाने पर वह सम्बन्ध तुडवाने हेतु अचला के घर जाता है लेकिन अचला के सौन्दर्य पर मोहित हो जाता है . अचला को पाने के लिए वह अपनी अमीरी का सहारा लेता है . वह एक तरफ महिम की गरीबी का वर्णन करता वहीं दूसरी तरफ अचला के पिता का क़र्ज़ चुकाने हेतु तैयार हो जाता है . अचला का पिता केदारनाथ उसे दामाद बनाना चाहता है लेकिन अचला नहीं मानती .
                  सुरेश इस उपन्यास का सर्वाधिक अस्थिर चरित्र वाला पात्र है . वह बार-बार गलती करता है , पछताकर पीछे हटता है और फिर गलती करता है . उसका चरित्र इस उपन्यास की जान है . अचला भी अपने प्यार पर बहुत अडिग नहीं रह पाती .लेखक उसकी तुलना मृणाल नामक हिन्दू युवती से करके यह अहसास दिलवाता है कि ब्रह्म कन्या में हिन्दू नारी जैसी पतिव्रतता नहीं .
                 सुरेश अपने अस्थिर चरित्र के कारण महिम और अचला की शादी करवा देता है ,लेकिन अचला गाँव की गरीबी को देखकर निराश हो जाती है . महिम की चुप्पी और मृणाल का सौतन कहकर मजाक करना उसे दुखी करता है . इतने में सुरेश भी महिम के घर पहुंच जाता है ,पति-पत्नी एक दूसरे पर प्यार न करने का शक करते हुए दूर होने लगते हैं . अचला पिता जी की बीमारी का बहाना लगाकर उसे छोड़ना चाहती है . महिम के घर में आग लगने से उसका इरादा कुछ कमजोर तो पड़ता है लेकिन महिम उसे सुरेश के साथ कोलकाता भेज देता है , केदारनाथ अचला का सुरेश के साथ आना ठीक नहीं मानते. सुरेश भी गलती महसूस करता है . वह महिम को कोलकाता ले आता है . महिम बीमार है .अचला की सेवा से ठीक होने लगता है .दोनों नजदीक आने लगते हैं . वे स्वास्थ्य लाभ के लिए जबलपुर जाने की तैयारी करते है . यहाँ अचला सुरेश को साथ चलने का निमन्त्रण देती है जिसे सुरेश प्रेम निवेदन समझ बैठता है . वह उनके साथ चल देता है , उन्होंने इलाहबाद उतरना है लेकिन सुरेश धोखे से अचला को कहीं रास्ते में उतार लेता है . अचला इसे बुरा मानती है लेकिन वह सुरेश के साथ ही डिहरी चली आती है . डिहरी की एक औरत उन्हें ट्रेन में मिली थी , उसी के घर आश्रय लिया जाता है . वे इन्हें पति-पत्नी समझते हैं , उस औरत का ससुर रामबाबू उसे पुत्री समान मानता है . वह किसी के हाथ का भोजन नहीं खाता लेकिन ब्रह्म कन्या के हाथ से भोजन करता है . सुरेश डिहरी में ही घर ले लेता है क्योंकि रामबाबू के घर मेहमान आने वाले हैं . दरअसल यह मेहमान महिम ही है . अचला महिम का सामना नहीं कर पाती . उधर सुरेश भी महसूस करता है कि वह अचला का मन नहीं जीत पाया . अब वह उससे भागना चाहता है .इसी समय प्लेग का प्रकोप फैलता है . सुरेश एक डाक्टर है अत:वह इलाज के लिए निकल पड़ता है और खुद प्लेग से प्रभावित हो जाता है . अचला उसके पास पहुंचती है तो वह कहता है कि उसने आत्महत्या नहीं की और बचाव की पूरी कोशिश की ,लेकिन यह प्रायश्चित ही लगता है . वह महिम को बुलाकर अपनी वसीयत सौंपता है . उसकी मृत्यु पर रामबाबू भी पहुंच जाते हैं . वह अचला से दाह-संस्कार करने को कहते हैं लेकिन अचला कहती है कि वह सुरेश कि व्याहता नहीं है . रामबाबू प्रायश्चित के लिए काशी चले जाते हैं . अचला महिम को कहती है कि वे उसे किसी आश्रम में छोड़ दें . इतने में मृणाल और केदार नाथ पहुंच जाते हैं . मृणाल महिम से कहती है -'' आश्रम की कहो या आश्रय की कहो - उसका यह कहाँ है , यह मैं बता सकूंगी ; लेकिन यह बताना तो तुम्हारा ही होगा .''
                   यही उपन्यास का अंत है . अचला सुस्पष्ट फैसला न ले पाने के कारण दुःख उठाती है . वह वास्तव में महिम से प्यार करती है लेकिन सुरेश के प्रति ऐसा व्यवहार करती है कि सुरेश का हौंसला बढ़ता है . महिम अपने गंभीर स्वभाव के कारण अपना प्यार प्रकट नहीं कर पाता . लेखक अचला की अपेक्षा मृणाल को पतिव्रता मानता है . मृणाल महिम के घर पली-बढ़ी है , महिम से वह शादी करना चाहती है लेकिन महिम उसका विवाह एक बूढ़े से कर देता है , महिम से प्यार के बावजूद वह बूढ़े को नहीं छोडती . इतना ही नहीं पति की मृत्यु के बाद वह उस सास की भी सेवा करती है जो उसे भला-बुरा कहती थी .
                  इस उपन्यास के द्वारा लेखक शायद यह संदेश देना चाहता है कि किसी स्त्री को परपुरुष के प्रति ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जो उसे सीमा लांघने हेतु उकसाए .पति के व्यवहार को भी गलत ठहराया गया है . महिम की अत्यधिक गंभीरता बुरी साबित होती है . पति-पत्नी में तभी निकटता बनेगी जब वे अपने दुःख-सुख सांझे करेंगे , एक-दूसरे की मदद करेंगे , एक-दूसरे की मदद लेंगे , दूसरे की हर वस्तु को अपना समझेंगे अन्यथा उनमें महिम-अचला की तरह दूरी बढ़ सकती है . सुरेश पैसे के बल पर प्यार पाना चाहता है जो संभव नहीं , यह भी इस उपन्यास का एक संदेश है . निष्कर्षत:यह एक मार्मिक उपन्यास है . अमीरी-गरीबी का संघर्ष , दो भिन्न -भिन्न समाजों की स्थिति और प्रेम त्रिकोण इसकी कथावस्तु को रोचक बनाती है .

                            * * * * *

4 टिप्‍पणियां:

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर परिचय और समीक्षा प्रस्तुत की आपने

इसे भी देखें-
एक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो

Bharat Bhushan ने कहा…

पुस्तक से रूबरू कराने और उसका सारांश देने के लिए आभार.

preet arora ने कहा…

बांगला उपन्यासकार शरतचंद्र का उपन्यास गृहदाह पर आपके विचारात्मक दृष्टिकोण उम्दा हैं.ब्लॉग पर विचार-विमर्श करने के लिए आपका धन्यवाद और बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर परिचय

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