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शुक्रवार, मार्च 26, 2021

अतीत गौरवमयी मानते हुए सुंदर भविष्य की कल्पना करती कविताएँ

कविता-संग्रह - कैसे भूलूँ तेरा अहसान
कवि - बलबीर सिंह वर्मा
प्रकाशक - मोनिका प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ - 152
कीमत - ₹400/-
हरियाणा साहित्य अकादमी की अनुदान योजना के अंतर्गत वर्ष 2018 के लिए चयनित बलबीर सिंह वर्मा की पुस्तक "कैसे भूलूँ तेरा अहसान" का प्रकाशन मोनिका प्रकाशन, दिल्ली से 2021 में हुआ है। प्रकाशन की दृष्टि से यह उनकी दूसरी कृति है, लेकिन रचना कर्म की दृष्टि से यह उनकी पहली कृति है। इस संग्रह में 88 रचनाएँ हैं, जिसकी शुरूआत माँ शारदे का वंदन करते हुए की है। इसके अतिरिक्त भी कुछ भक्तिपरक कविताएँ कवि ने रची हैं। वह शिव, कृष्ण की महिमा का गान करता है। कृष्ण को पुनः आकर सुदर्शन चक्र चलाने के लिए कहा गया है। मीरा की भक्ति को दिखाया गया है। 
               भक्ति के साथ देशभक्ति भी इन कविताओं का विषय है। वह भारत की महानता, राष्ट्रीय एकता की बात करते हुए इसे पर्वों की धरती कहता है। देश भक्ति के साथ ही वह देश के क्रांतिकारियों, सैनिकों को भी याद करता है और कहता है -
"काश! मैं होता एक सैनिक" (पृ. - 99)
वह ऊधम सिंह के बदले को याद करते हुए सभी शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने की बात करता है। वह भारत माँ की रक्षा की जिम्मेदारी सब पर डालता है और देश को आगे बढ़ाने के लिए जिन बातों की ज़रूरत है, उनका बयान करता है। वह हिंदी की भी बात करता है, हालांकि उसकी इन पंक्तियों से पूर्णतः सहमत नहीं हुआ जा सकता -
"हिंदुओं की भाषा हिंदी महान / अगर हिंदी है तो हिंदू है / 
और हिंदू है तो है हिन्दुस्तान है" ( पृ. - 106 )
किसी भी भाषा को किसी धर्म से जोड़ना संकीर्णता है, जिससे साहित्यकार को बचना चाहिए। 'हिंदी भाषा' कविता की अंतिम चार पंक्तियों की जगह सिर्फ इतना लिखा जाना बेहतर होता -
"अगर हिंदी है तो है हिंदुस्तान"
देश महिमा के बाद वह अपने राज्य हरियाणा की भी महिमा करता है। 
            भक्ति में गुरू को बेहद महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। कवि भी आधुनिक दौर के गुरू यानी शिक्षक की महिमा का गान करता है, साथ ही गुरुकुल और आज के दौर की तुलना करता हुए शिक्षक और शिक्षा के पतन को दिखाते हुए यह भी मानता है- 
"फिर भी इस अंधकार में / बुझी नहीं वो शिक्षा की लौ /
नहीं कमी कर्मठ अध्यापकों की" (पृ. - 110)
कवि ने माँ, पिता, बेटी, नारी की महिमा का गान भी किया है। माँ के त्याग को दिखाया है। 'बेटी' कविता में हर पंक्ति की शुरूआत में दो बार बेटी शब्द का प्रयोग कर कवि ने चमत्कार उत्पन्न करना चाहा है, लेकिन पहले बेटी शब्द के बिना भी बात पूरी लगती है -
"बेटी, बेटी कली है, फूल है, बहार है /
बेटी, बेटी गीत है, संगीत है, सुरों की तार है" (पृ. - 120 )
                  पुस्तक का शीर्षक बनी कविता कवि ने अपनी पत्नी के लिए लिखी है यानी यह भी कहा जा सकता है कि यह संग्रह परोक्ष रूप से कवि अपनी पत्नी को समर्पित कर रहा है, हालांकि प्रत्यक्ष रूप से यह संग्रह सिरसा के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार निजात जी को समर्पित है। कवि पत्नी के लिए लिखता है -
"नित सवेरे जल्दी उठना / दिन भर सारा काम करना / 
सबकी फिक्र, सबका ख्याल / न करती महसूस थकान /" (पृ. - 61)
इन पंक्तियों को हर गृहणी से जोड़ा जा सकता है और हर पति को कहना चाहिए -
"हे प्रिये! कैसे भूलूँ तेरा अहसान" (पृ. - 61)
                 इस संग्रह में कवि ने बचपन को लेकर 4 कविताओं की रचना की है। उसे अपना बीता हुआ बचपन अच्छा लगता है क्योंकि अब जिम्मेदारियों का दलदल है, जबकि बचपन में ज़िद से सब कुछ मिल जाता था। कवि आज के बचपन पर भी विचार करता है, जो मोबाइल और कम्प्यूटर की भेंट चढ़ चुका है। वह बचपन की ओर फिर लौट चलने की बात करता है। वह बदलते दौर के साथ-साथ बदलती परिस्थितियों का भी चित्रण करता है, जिसमें ठूँठ बन चुका पेड़ भी शामिल है। जंगल का पेड़ आदमी को क्रूर बताता है। रिश्ते भी पहले जैसे नहीं रहे। बदले हुए इंसान में इंसानियत नहीं रही। वह लिखता है-
"मानव बन गया हैवान / कितना बदल गया इंसान" (पृ. - 73 )
वह आधुनिक नारी का भी चित्रण करता हुआ कहता है -
"आज की नारी / फैशन की मारी /
न शंका न संकोच / नखरा बड़ा भारी" (पृ. - 81 )
कवि 'मैं सड़क हूँ' कहकर उसके माध्यम से इस बदलाव को दिखाता है। अमीरी आई है, मगर संस्कार को गंवाकर। वह खो चुके संस्कारों की भी बात करता है-
"न बुजर्गों का आदर रहा / न बड़ों का मान-सम्मान /
न माँ-बाप की सेवा रही / न बच्चों को लाड़-प्यार /
कहाँ खो गए संस्कार" (पृ. - 59 )
लेकिन इसके साथ ही अच्छी बात यह है कि कवि का गाँव नहीं बदला। वह लिखता है -
"छोटे-छोटे झगड़ों को / आपस में मिल बैठ निपटाना /
न कहीं दिखावा / न कहीं मन-मुटाव /
यह है मेरा खुशहाल गाँव" (पृ. - 40)
कवि का ऐसा लिखना या तो उसकी आदर्शवादी सोच है या वह सौभाग्यशाली है कि वह ऐसे गाँव में रह रहा है, जो बदलते दौर में भी नहीं बदलता, जबकि आज के गाँव मानसिकता में शहर से होड़ लेते दिख रहे हैं। भाईचारा दिन-ब-दिन गायब होता जा रहा है।
                 देश और समाज का यथार्थ चित्रण भी इन कविताओं में मिलता है। देश की वर्तमान स्थिति को देखकर वह सवाल करता है -
"क्या यही है आज़ादी" (पृ. - 102)
वह गरीबी की मार को दिखाता है। वह सड़क के किनारे खेल दिखाने वालों का चित्रण करता है, जो पेट की भूख मिटाने के लिए जान जोखिम में डाल देते हैं। वह दिखाता है कि खेती भाग्य पर निर्भर करती है। गरीब मजदूर की दयनीय दशा का चित्रण है, साथ ही वह मालिक की इंसानियत पर भी प्रश्न चिह्न लगाता है। 
            वह अपने दोस्त को आस्तीन का साँप बताते हुए हक की लड़ाई लड़ते रहने की बात करता है। वह समाज में हर जगह व्याप्त धोखे को दिखाता है-
"कहाँ-कहाँ नहीं मिलता धोखा / माता-पिता को बच्चों से /
भाई को भाई से / दोस्ती में धोखा /
प्यार में धोखा / विश्वास में धोखा" (पृ. - 57 )
              यथार्थ को दिखाते हुए उसकी नज़र आदर्श पर टिकी रहती है। वह भ्रष्टाचार मिटाकर भारत को सुदृढ़ बनाने की बात कहता है। स्वच्छ समाज और स्वच्छ भारत का सपना देखता है। वह प्रश्न करता है कि राम का लौटना तो त्रेता युग की बात है, फिर हम कलयुग में दिवाली क्यों मना रहे हैं? वह कहता है कि दिवाली तभी मनाई जानी चाहिए जब बुराई का अंत हो जाए। चहुँ ओर होते दुष्कर्म से वह दुखी होता है और कुकर्मियों को सरेआम फाँसी पर लटकाने की बात कहता है। बेटी भी यही पुकार करती है। नव वर्ष के आगमन पर शांति की कामना करता है। नशे की हानियाँ बताते हुए युवाओं को नशे से बचने की अपील करता है।
           कवि शब्दों का महत्त्व बताते हुए लिखता है -
"शब्दों का किया घाव / कभी नहीं भर पाता /
शब्दों के मीठे बोल / रिश्तों में घोल देते मिठास" (पृ. - 43 )
वह समय के निरन्तर चलते रहने की बात बताते हुए कहता है-
"सीख लिया जिसने चलना वक्त के साथ /
वही इंसान सफल कहलाया" (पृ. - 44)
ज़िंदगी भी चलते रहने का नाम है। वह मरने और रुकने को पर्याय बताता है। ज़िंदगी की भागदौड़ में न घबराने का संदेश देता है क्योंकि -
"बाधाओं का क्या, ये / क्षणभंगुर है, कच्ची है" ( पृ. - 63 )
वह मन से न हारने के संदेश देता है। सच्चे, सफल इंसान की पहचान बताता है। वह कर्म की महानता को स्वीकारता है और मधुमक्खी, परिंदे, चींटी का उदाहरण देता है।
                  प्रेम का वर्णन इस संग्रह में कम ही हुआ है। कवि अपने प्रियतम की अनेक उपमाएँ बाँधता है। प्रिये को कदम पीछे न हटाने को कहता है, साथ ही विरह-वेदना का भी चित्रण है। यादों को सप्तरंगी धनुष बताता है। 
                   प्रकृति का मानवीकरण किया गया है और कवि प्रकृति के तत्त्वों से संवाद रचाता है। चिड़िया उसे जल्दी उठने का संदेश देती है। बारिश की बूंद उसे बूढ़ी माँ-सी दिखती है। चाँद और चाँदनी रात का चित्रण है। कलम रात को सपने में आकर कवि को प्रेरित करती है कि वह किसान का दुख-दर्द, सरकार की विफलता के बारे में लिखे। कवि उसको वादा भी करता है कि वह सच को सच और झूठ को झूठ लिखेगा और वह तब वादा निभाता हुआ लगता है, जब वह इस संग्रह की कई कविताओं में समाज के पीड़ित वर्ग का चित्रण मिलता है। वह पर्यावरण बचाने की बात करता है। शिमला में स्वर्ग-सी शांति महसूस करता है। जल और योग के महत्त्व को दिखाता है। लू के प्रकोप को दिखाया है। शरद ऋतु का वर्णन है। बारिश, बादल, सावन को लेकर कवि ने कई कविताएँ रची हैं। वह बादल को बरसने का आह्वान करता है। वह बादलों से न बरसने का कारण भी पूछता है, जिसके उत्तर में वह कहते हैं -
"जहाँ तरुवर नहीं वहाँ क्यों बरसेंगे बादल" (पृ. - 143)
               रचना कर्म से कवि का पहला संग्रह होने के कारण कहीं-कहीं भाषा द्वारा चमत्कार उत्पन्न करने की चाह स्पष्ट दिखाई देती है। कुछ कविताओं में दिल, नजर शब्द को केंद्र में रखकर चमत्कार पैदा करने की कोशिश की गई है। सामान्य हिंदी में बहुत कम प्रचलित शब्द जुन्हाई, कौमदी, पादप, पयोद, तरुवर, जलधर का प्रयोग भी इसी दृष्टि में देखा जा सकता है, लेकिन यह कुछ ही कविताओं तक सीमित है। शेष कविताओं में सहज और प्रचलित हिंदी का प्रयोग है। उपमा, रूपक, मानवीकरण, अनुप्रास का भरपूर प्रयोग हुआ है। कहीं-कहीं तुकांत का प्रयोग है। कुछ तुकांत कमजोर भी कहे जा सकते हैं, लेकिन अधिकांश कविताएँ मुक्त छंद में हैं। कवि की शैली कहीं वर्णात्मक है, तो कहीं तुलनात्मक। अतीत और वर्तमान की तुलना के लिए कवि कहीं अलग-अलग कविताएँ लिखता है, कहीं एक ही कविता में दोनों को तुलनात्मक ढंग से देखता है। कवि अतीत को वर्तमान की अपेक्षा अधिक गौरवमयी मानता है और भविष्य को सुंदर बनाने की चाह रखता है। साहित्य अकादमी द्वारा चुना जाना भी इस बात का प्रतीक है कि अकादमी कवि में अपार संभावनाएँ देखती है। समय के साथ-साथ निस्संदेह कविता में निखार आएगा, लेकिन यह प्रयास भी कम सराहनीय नहीं। कवि इसके लिए बधाई का पात्र है।
© दिलबागसिंह विर्क
95415-21947

2 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२७-०३-२०२१) को 'रंग पर्व' (चर्चा अंक- ४०१८) पर भी होगी।

आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर और विस्तृत पुस्तक समीक्षा।
गहन पठन कर लिखीं गई समीक्षा पुस्तक के प्रति आकर्षण पैदा कर रहा है।
लेखक एवं समीक्षक दोनों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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