इतिहास को मानव की विकास यात्रा कहा गया है , इस दृष्टिकोण से साहित्येतिहास को मानवकृत भाषा विशेष में रचित साहित्य की विकास यात्रा कहा गया है । साहित्येतिहास लेखन कई क्रमों से होते हुए आगे बढ़ा है । इसको व्यवस्थित सिद्धांत रूप में व्यवहृत करने का श्रेय फ्रेंच विद्वान तेन को जाता है । तेन ने अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में साहित्येतिहास को समझने हेतु तीन तत्व माने हैं -
- जाति
- वातावरण
- क्षण विशेष
हडसन ने इसकी आलोचना करते हुए दो तत्वों की उपेक्षा करने की बात कही , वे हैं -
- काव्य सृजक का व्यक्तित्व
- उसकी प्रतिभा
जर्मन के इतिहास विशेषज्ञों ने इसमें तद्युगीन चेतना को जोड़ा और मार्क्सवादियों ने द्वन्द्वात्मक भौतिक विकासवाद, वर्गसंघर्ष एवं आर्थिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में इतिहास दर्शन की प्रक्रिया को सुस्पष्ट किया । अर्थात फ्रेंच विद्वान् तेन से लेकर रूस के मार्क्सवादियों तक साहित्येतिहास लेखन में कई पक्षों का समावेश हुआ ।
हिंदी साहित्य का इतिहास
डॉ . गणपति चन्द्र गुप्त जी ने हिंदी के इतिहास ग्रन्थों को तीन वर्गों में बांटा है
- सामग्री संकलन - गार्सा-द-तासी , शिवसिंह सेंगर आदि ।
- वर्गीकरण - मिश्रबन्धु
- प्रवृतियों का विश्लेषण - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ।
हिंदी में साहित्य का इतिहास लेखन की परम्परा की शुरुआत 19 वीं शताब्दी से ही मानी जाती है , लेकिन कुछ पूर्ववर्ती रचनाएं मिलती हैं जो काल-क्रम , सन-संवत, विषय-वस्तु का विवेचन न होने के कारण इतिहास ग्रन्थ तो नहीं लेकिन उनमें रचनाकारों का विवरण है । इन्हें वृत्त संग्रह कहा जा सकता है । इनमें प्रमुख हैं -
- चौरासी वैष्णव की वार्ता ( गोकुलनाथ )
- दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता
- भक्त नामावली ( ध्रुवदास )
- भक्तमाल ( नाभादास )
- कालिदास हजारा ( कालिदास त्रिवेदी )
इतिहास लेखन संबंधी पहली शुरुआत तासी के ग्रन्थ से हुई जिसमें ग्रियर्सन , आचार्य शुक्ल आदि ने कई महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए इसे सही दिशा दी ।
हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रमुख लेखक
1. गार्सा-द-तासी -
पेरिस विश्विद्यालय में उर्दू के प्राध्यापक , उर्दू पर विशेष ध्यान
पुस्तक -
" इस्त्वार द ला लितरेत्युर एन्दुई एन्दुस्तानी "
( दो भाग ) प्रथम - 1839, द्वितीय - 1847
द्वितीय संस्करण - 1871 ( तीन भाग )
भाषा - फ्रेंच
प्रकाशन - ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की ओरियन्टल ट्रांसलेशन सोसायटी
कवियों का वर्णन अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार किया है इसमें कुल 738 कवि / लेखक हैं जिनमें हिंदी के सिर्फ 72 हैं ।
नलिन विलोचन शर्मा ने इसे हिंदी का प्रथम साहित्येतिहास ग्रन्थ माना है ।
मूल्यांकन - त्रुटिपूर्ण परन्तु प्रथम महत्वपूर्ण प्रयास ।
2. मौलवी करीमुद्दीन -
साहित्येतिहास लिखने वाले प्रथम भारतीय ( दिल्ली के )
पुस्तक -
" तजकिरा-ई-शुअरा-ई-हिंदी " ( तबकातु शुआस )
प्रकाशन - 1848 में दिल्ली कॉलेज द्वारा प्रकाशित
कुल कवि / लेखक - 1004
हिंदी के कवि - 62
तासी ने अपने ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण हेतु इसका प्रयोग किया ।
कवियों के जन्म-मरण के संवत, वैयक्तिक जीवन की झलक, काव्य संग्रह के वर्णन में आंशिक सफलता ।
चंद बरदाई, अमीर खुसरो, कबीर , जायसी, तुलसी आदि के कालक्रम का भी चिन्तन किया ।
3. शिवसिंह सेंगर -
पुस्तक - शिवसिंह सरोज
प्रथम संस्करण - 1878
द्वितीय संस्करण - 1883
(कालिदास हजारा पर आधारित )
प्रकाशन - नवलकिशोर , लखनऊ से
इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्येतिहास का प्रस्थान बिंदु कहा गया है ( पूर्णतय विश्वसनीय न होने के बावजूद ) ।
हिंदी की जड़ की खोज करते हुए कवि पुंड तक पहुंचा गया है ।
कवियों को शती अनुसार अलग-अलग रखा गया है ।
उत्तरार्द्ध में 1003 कवियों के जीवन चरित अकारादि क्रम से , 687 कवियों की तिथियाँ दी गई हैं ।
4. डॉ . सर जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन -
पुस्तक -
" द माडर्न वर्नेक्युलर लिटरेचर ऑफ़ हिन्दुस्तान "
प्रकाशन - 1888
( एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल की पत्रिका के विशेषांक के रूप में )
( शिवसिंह सरोज का ऋण स्पष्टत: स्वीकार किया है )
भाषा - अंग्रेजी
विषय - केवल हिंदी के कवि
हिन्दुस्तान से अभिप्राय हिंदी भाषा-भाषी प्रदेश । साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया है कि इसमें न तो संस्कृत-प्राकृत को शामिल किया गया है न ही अरबी-फ़ारसी मिश्रित उर्दू को । ( इस प्रकार यह स्पष्टत: हिंदी से संबंधित इतिहास ग्रन्थ है )
952 कवियों का वर्गीकरण कालक्रमानुसार करते हुए उनकी प्रवृतियों को भी स्पष्ट करने का प्रयास ।
काल विभाजन का प्रयास ( 12 अध्याय, प्रत्येक अध्याय एक काल का द्योतक , दोषपूर्ण लेकिन प्रथम महत्वपूर्ण प्रयास )
अनेक विद्वानों ने इसे हिंदी का प्रथम इतिहास ग्रन्थ स्वीकार किया । इनमें डॉ . किशोरीलाल गुप्त प्रमुख हैं ।
देन - चारण काव्य, धार्मिक काव्य, प्रेम काव्य , दरबारी काव्य के रूप में हिंदी साहित्य को बांटना ।
भक्तिकाल को पन्द्रहवीं सदी का धार्मिक पुनर्जागरण कहना ।
16वीं-17वीं शताब्दी के युग ( भक्तिकाल ) को हिंदी का स्वर्णयुग मानना ।
क्रमश:
( मेरे नोट्स पर आधारित, सुझाव आमंत्रित )
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1 टिप्पणी:
बहुत ही रोचक जानकारी।
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