इस बात में संदेह नहीं है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है, लेकिन इस बात में संदेह होगा कि भारत एक सफल लोकतान्त्रिक देश है. भारतीय जनमानस अभी भी लोकतंत्र को समझने में नाकाम है. लोकतंत्र लोगों का राज है लेकिन भारतीय जनमानस अभी भी राजसी व्यवहार को अहमियत देता है, यही कारण है कि यहाँ के नेता सेवक न होकर शासक होते हैं और जनता राजा के रहमो-कर्म पर जीने वाली प्रजा होती है.
एक घटना का जिक्र मैं यहाँ करना चाहूँगा. आज हरियाणा अध्यापक संघ के डबवाली ब्लॉक के चुनाव थे, इसमें पाँच पदाधिकारी और कार्यकारिणी के आठ सदस्यों का चुनाव होना था. चुनने वालों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं थी इसलिए सब कुछ आपसी सहमति से ही हो रहा था. यूनियन में काफी समय से सक्रिय एक अध्यापक को पद ग्रहण करने के लिए बार-बार कहा गया लेकिन उन्होंने कोई पद स्वीकार नहीं किया. अंत में पाँचों पदाधिकारी चुने गए. अब इस समिति को कहा गया कि वे खुद अपनी इच्छा से आठ सदस्य चुन लें. पुराने सदस्य होने के नाते उसी अध्यापक को अब कार्यकारिणी का सदस्य बनने का आग्रह किया गया ताकि मार्गदर्शन मिल सके. उसने एक तरफ इंकार किया और दूसरी तरफ नव नियुक्त सचिव के कान में कहा अगर मुझे कुछ बनना ही होता तो मैं प्रधान बनता और आप सब मेरे नीचे होते. उसकी यह सोच अगर सिर्फ उसी की होती तो शायद इस बात को ब्लॉग पर लिखने का कोई औचित्य नहीं था, लेकिन दुर्भाग्यवश यह सोच कमोबेश हम सबकी है.यही कारण है क़ि चुनावों के दिनों में हाथ जोडकर वोट मांगने वाले नेता पंच, सरपंच, पार्षद, विधायक, सांसद आदि बनते ही उसी जनता को आँखें दिखाने लगते हैं जिनकी वोटों से उन्होंने यह पद पाया होता है. सिर्फ नेता ही दोषी नहीं हैं जनता खुद उन्हें सातवें आसमान तक पहुंचा देती है. भारत का कोई भी नेता अकेले में सड़क पर घूम नहीं सकता क्योंकि जैसे ही वो बाहर निकलेगा चमचागिरी करने वालों की फ़ौज उनके साथ जुड़ जाएगी. उनके आस-पास के लोग उन्हें ऐसा सम्मान देंगे जैसे उनका जीवन सिर्फ उसी नेता की देन हो. भारत के नेताओं की तुलना यदि पश्चिमी देश के नेताओं से की जाए तो भारतीय नेताओं की शानो-शौकत की अलग ही कहानी दिखेगी. अमेरिका जैसे देश का राष्ट्रपति जिस एकांत भाव से घूम सकता है वैसे तो भारत का मौहल्ले का नेता नहीं घूमता. जब उनके इर्द-गिर्द रहने वाली भीड़ उन्हें राजा के पद पर सुशोभित कर रही हो तो वो खुद को राजा क्यों नहीं मानेगें ?
लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब जनता जागरूक हो. जब उन्हें पता हो क़ि वास्तविक शक्ति उनके हाथ में है नेताओं के हाथ में नहीं. उनके रहमो-कर्म से कोई व्यक्ति नेता है न क़ि नेता के रहमो-कर्म से वह हैं. नेताओं को जरूरत से ज्यादा भाव देना बंद हो जाए, इनके आगे-पीछे घूमने वालों की संख्या नदारद हो जाए तो यही नेता जनता के पीछे-पीछे घूमेंगे. लोकतंत्र में नेता सेवक हैं राजा नहीं यह अहसास जिस दिन पूरी जनता को हो जाएगा उसी दिन लोकतंत्र सफल हो जाएगा.
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2 टिप्पणियां:
आपने बिलकुल ठीक कहा है ....देखते हैं कब तक ऐसा हो पाता है
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
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