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मंगलवार, सितंबर 13, 2011

आओ , हिंदी को आगे बढाने का प्रण लें

हिंदी दिवस आ गया है । हिंदी के लिए बड़ी-बड़ी बातें करने का दिन है ये । कहीं पर हिंदी सप्ताह मनाया जाएगा तो कहीं पर हिंदी पखवाडा, लेकिन सितम्बर बीतते-बीतते हिंदी का जोश कम पड जाएगा । ऐसा 62 वर्षों से हो रहा है और आगे भी ऐसा होता ही रहेगा । हिंदी अपने बदहाल पर आंसू बहाती आई है , आंसू बहाती रहेगी । 
               हिंदी की दुर्दशा के लिए दोषी कौन है ? भले ही इसके लिए अहिन्दी भाषी लोगों और अंग्रेजी प्रेमियों पर ऊँगली उठाई जाती रही है, लेकिन मैं तो इसका दोषी हिंदी भाषियों को ही मानता हूँ । हमने हिंदी को गलत समझा है । भाषा के विकास क्रम को देखें तो कहीं भी हिंदी नहीं आती । वैदिक संस्कृत से लौकिक संस्कृत का विकास हुआ और लौकिक संस्कृत से प्राकृत का । प्राकृत के कई भेद हैं जैसे शौरसेनी, पैशाची, महाराष्ट्री, अर्धमागधी, मागधी, केक्य, टक, ब्राचड, खस आदि  ।प्राकृत के इन्हीं नामों से अपभ्रंश विकसित हुई जिससे आगे आधुनिक भाषाएँ विकसित हुई । शौरसेनी अपभ्रंश से पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी और गुजराती विकसित हुई, महाराष्ट्री अपभ्रंश से मराठी, अर्धमागधी से पूर्वी हिंदी, मागधी से बंगला, बिहारी, असमी, उड़िया; टक से पंजाबी, केक्य से लहंदा, ब्राचड से सिन्धी । इन भाषाओं में हिंदी का कहीं भी नाम नहीं है । इसके बावजूद कहा जाता है कि हिंदी संस्कृत से उत्पन्न है और इसकी अठारह बोलियाँ हैं । पूर्वी हिंदी, पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी और बिहारी को हिंदी की उपभाषाएँ माना जाता है । इन्हें हिंदी की उपभाषाएँ कहा जाता यदि ये हिंदी से निकलती, लेकिन ये सभी अपभ्रंश से निकली हैं और इनकी उत्पति के समय हिंदी का कहीं नामो-निशान तक नहीं था । हिंदी इनको जोड़ने के बाद बनी है अर्थात हिंदी एक निर्मित भाषा है जो पांच उपभाषाओं की अठारह बोलियों से मिलकर बनी है .।हिंदी का यही गुण है जिससे हम अहिन्दी भाषियों को परिचित नहीं करवा सके । जो हिंदी अठारह बोलियों को अपने में समा सकती है वो भारत की हर बोली को अपने में जगह दे सकती है । हिंदी भाषी भी इस बात को नहीं समझते । उनके लिए हिंदी महज संस्कृत की बेटी है ।यह निस्संदेह सच है कि संस्कृत हमारी आदि भाषा है लेकिन यह भी सच है कि हिंदी सिर्फ संस्कृत की बेटी नहीं है । हिंदी अपभ्रंश से विकसित उपभाषाओं से निर्मित है इसलिए इसमें उनके शब्दों की भरमार होना स्वभाविक है । अपभ्रंश से निर्मित अन्य भाषाएँ यथा पंजाबी, मराठी, बंगला आदि भले ही हिंदी में शामिल नहीं लेकिन निकट सम्बन्धी तो हैं ही इसलिए हिंदी को अपने दरवाजे उनके शब्दों के लिए भी खुले रखने चाहिए । 
                 हिंदी से पहले हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने का प्रयास हुआ था । हिंदी-उर्दू के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद हिन्दुस्तानी के ही पक्षधर थे और ये हिन्दुस्तानी हिंदी से अलग नहीं थी, अपितु देवनागरी लिपि में लिखी वो भाषा थी जिसमें उर्दू के शब्दों को भी वही स्थान मिले जो संस्कृत के शब्दों को प्राप्त था ।आज हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है । राष्ट्रभाषा वही होती है जो पूरे देश का प्रतिनिधित्व करे । हिंदी को इसके लिए अन्य भाषाओं के सरस, सरल और रोचक शब्दों को अपने में शामिल करना होगा, इससे एक तरफ हिंदी समृद्ध होगी, दूसरी तरफ अहिन्दी भाषी इसके निकट आएँगे । 
               अहिन्दी भाषियों को भी कुछ त्याग देश के लिए करना ही चाहिए । हमें अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने का पूरा अधिकार है, लेकिन देश के नागरिक होने के नाते हिंदी की आधारभूत जानकारी सबको हासिल करनी चाहिए । जब हम अपने क्षेत्र में हैं और उस समय हम मातृभाषा का प्रयोग कर रहे हैं तो कोई बुराई नहीं, लेकिन हमें हिंदी का इतना ज्ञान अवश्य होना चाहिए कि जब दूसरे क्षेत्र के लोगों से मिलें तो बातचीत का आधार हिंदी बन सके । 
                   हमारे नेता लोगों को भी हिंदी का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए लेकिन अजूबा ये है कि संयुक्त राष्ट्र में जाकर हम हिंदी बोलते हैं और जब देश के नागरिकों को, पत्रकारों को सम्बोधित करना होता है तब अंग्रेजी । सिर्फ किसी विशेष अवसर पर हिंदी बोलकर हिंदी का भला नहीं किया जा सकता । कम-से-कम राष्ट्रीय नेताओं को तो अपनी बात हिंदी में कहनी ही चाहिए । कुल मिलाकर हिंदी के लिए जज्बा पैदा करना होगा । हिंदी भाषियों को कट्टरता त्यागनी होगी और अहिंदी भाषियों को अपना कर्तव्य समझना होगा ।हिंदी वो धागा है जो विभिन्न भाषी राज्यों रुपी मोतियों को पिरोकर रख सकता है । हम देश के रूप में एकजुट हो सकें इसके लिए हिंदी बहुत महत्वपूर्ण है । हिंदी दिवस की सार्थकता इसी में है कि हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रण लें । हमें न अपनी मातृभाषा को त्यागना है, न अंग्रेजी के खिलाफ जहर उगलना है , न भाषा को किसी सम्प्रदाय से जोड़ना है, हमें सिर्फ हिंदी का आधारभूत ज्ञान प्राप्त करना है । यह मुश्किल नहीं है । देश के नागरिक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य भी है । आओ इस हिंदी दिवस पर हिंदी को आगे बढाने का प्रण लें । 

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दिलबागसिंह विर्क 
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8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक और सार्थक लेख ... हिंदी भाषी ही हिंदी को उचित सम्मान नहीं देते ... आभार

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख है. आपका कथन भी सही है कि हिंदी दिवस की सार्थकता इसी में है कि हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रण लें . हमें न अपनी मातृभाषा को त्यागना है , न अंग्रेजी के खिलाफ जहर उगलना है , न भाषा को किसी सम्प्रदाय से जोड़ना है , हमें सिर्फ हिंदी का आधारभूत ज्ञान प्राप्त करना है . यह मुश्किल नहीं है .देश के नागरिक होने के नाते ये हमारा कर्तव्य भी है . आओ इस हिंदी दिवस पर हिंदी को आगे बढाने का प्रण लें .

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह! सटीक और सार्थक

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सही...दिवस विशेष पर सार्थक आलेख...बधाई...

Bharat Bhushan ने कहा…

हिंदी सदियों से हमारी राष्ट्रभाषा है. इसके उसी रूप को अधिक संवारने की आवश्यकता है. आपका आभार.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

हिंदी लिखने और बोलने के लिए कोई विशेष दिन होना जरुरी नहीं है ....हमारे लिए हर दिन हिंदी दिन है .....आज के दिन के मुताबिक ...सार्थक ...लेख...
हिंदी दिवस की शुभकामनायें

संजय भास्‍कर ने कहा…

हिंदी दिवस पर
बहुत ही रोचक और विश्लेष्णात्मक पोस्ट
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आओ इस हिंदी दिवस पर हिंदी को आगे बढाने का प्रण लें .


आभार .....!!

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