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बुधवार, नवंबर 11, 2020

पहली दस्तक से उम्मीद जगाता विविधता भरा कविता-संग्रह

कविता-संग्रह - एहसास के गुंचे

कवयित्री - अनीता सैनी

प्रकाशन - प्राची डिजिटल पब्लिकेशन

पृष्ठ - 180

मूल्य - 240/-

प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ से प्रकाशित "एहसास के गुँचे" अनीता सैनी का प्रथम संग्रह है। इस संग्रह में 128 कविताएँ हैं। पहली कविता गुरु वंदना के रूप में है, जिसमें 5 दोहे हैं। कवयित्री के अनुसार गुरु के ध्यान से ज्ञान की राह संभव होगी, उनके अनुसार गुरु महिमा का बखान संभव नहीं -

"गुरु की महिमा का करें, कैसे शब्द बखान

जाकर के गुरुधाम में, मिलता हमको ज्ञान।" (पृ. - 19)

इसके बाद की 127 कविताओं को वर्ण्य-विषय के आधार पर 6 विषयों में विभक्त किया गया है। 

        पहले भाग "प्रेम / श्रृंगारिक रचनाएँ" में 18 कविताएँ हैं, जो श्रृंगार के संयोग-वियोग पक्ष को बयान करती हैं। मिलन के चित्र कम हैं। यादों की बहुतायत है। याद में टूटने का जिक्र है। यादें वीणा की धुन-सा सुरम्य साज़ बजाती हैं। वह खुद के मन को बहलाती, सुलाती, गुमराह करती है। विरह गीत गाते हुए कहती है-

"अब पधारो पिया प्रदेश / गोरी थारी बोल रही" ( पृ. - 35)

पीड़ा नयनों में सूख रही है। सावन मनोहारी न होकर पीड़ादायक है - 

"कुछ बुझा-सा / कुछ ना-उम्मीदी में जला /

डगमगा रहे कदम / फिर खामोशी से चला /

जीवन के उस पड़ाव पर / सिसकियों ने सहलाया/

हाँ! ता-उम्र जला यह वही सावन है।" (पृ. - 26)

इसके अतिरिक्त वह सावन को संबोधित करके उसे साथ निभाने, लौट आने को भी कहती है। कवयित्री ने प्रियतम को भी संबोधित किया है। प्रिय भी कहता है-

"मैं जी रहा हूँ तुझमें" (पृ. - 29)

वह खुद ताड़ के पेड़-सी अडिग रहने की बात करते हुए प्रेमी को विचलित न होने की सलाह देती है। वह खुद को अभिव्यक्त कर पाने में असफल पाती है। उसका मन समय के भँवर में उलझ गया है, लाज-शर्म में डूब गया है, जीवन पथ पर हार गया है, लेकिन वह कहती है -

"थामो मन का हाथ / ज़रा-ज़रा सी बातों पर न रूठो /

न छोड़ो मन का साथ" (पृ. - 33) 

एहसास के मोतियों को कोहेनूर बना दिया जाए, इसकी आकांक्षा है। उसे मंजिल पाने का जुनून है। वह पिया के रंग में भी रंगी जाती है और उसकी दहलीज मुद्दतों बाद मुस्करा रही है।

       प्रेम का ही एक रूप है - देश प्रेम और इस शीर्षक के अधीन कवयित्री ने 13 कविताएँ रखी हैं, जिनमें कारगिल युद्ध, अब्दुल कलाम और स्वतंत्रता दिवस आदि को याद किया गया है। इन कविताओं में वीर शहीदों को याद किया गया है। उनके अदम्य साहस को दिखाया गया है। अटारी बॉर्डर के दृश्य का चित्रण है। कवयित्री का बॉर्डर को अटारी बॉर्डर कहना सुखद लगा, अन्यथा लोग इसे वाघा बॉर्डर कहते हैं, जो पाकिस्तान का हिस्सा है। भारतीय बॉर्डर अटारी ही है और एक साहित्यकार का कर्त्तव्य है कि वह सही तथ्यों को प्रस्तुत करे, जिसमें कवयित्री सफल रही है। 

       कवयित्री अब्दुल कलाम को भारत का महान सपूत बताती है, जिसने अपने कृतित्व से दुनिया को महकाया, उनका जीवन आचरण बुलंदियों की राह दिखाता है और कर्त्तव्यनिष्ठा का पाठ उनकी छवि में झलकता है। आजादी पर्व पर वह शहीदों की अमर गाथा लिखना चाहती है -

"पावन पर्व आज़ादी का, मिला जिनके बलिदान से

अमर गाथा लिखूँ लहू से अपने, हाथों में ऐसी क़लम थमा दे" (पृ. - 47)

यूँ तो देश अहिंसा का पुजारी है, जो शांति का बिगुल बजाता है, लेकिन जवान भारत माँ को किए वादे को निभाना नहीं भूलता। कारगिल पर फतेह के दिन शहीदों की शहादत को याद कर उसकी आँखें नम हो जाती हैं। कवयित्री के सीने में 3900 जवानों की शहीदी का दर्द उभरता है, लेकिन देश के हालात देख वह कह उठती है -

"जिस देश के लिए हुए कुर्बान / उस देश की ऐसी हालत देख /

वे अपने बलिदान पर क्षुब्ध हुए होंगे" (पृ. - 46)

सैनिकों की बेबसी को बयान किया गया है -

"घर में बैठे आतंकी, मुझे पहरेदार बना दिया

हाथों में थमा हथियार, लाचार बना दिया।"

(पृ. - 51)

        कविता का तीसरा भाग "प्रकृति-परिवेश" है, जिसमें 16 कविताएँ हैं, जिनमें प्रकृति के मनोहारी चित्र प्रस्तुत किए गए हैं। जिस प्रकार दिन की शुरूआत प्रभात की पहली किरण से होती है, उसी प्रकार इस भाग की शुरूआत भी प्रभात की पहली किरण से हुई है। यह किरण पैरों में हिम्मत की पायल पहनाकर हृदय में विश्वास का दीप जला देती है। प्रभात के साथ-साथ सांझ, क्षितिज, ठूँठ का भी चित्रण है। कुदरत का कोमल कलेवर कण-कण में स्पंदित हुआ है। सृष्टि सात सुरों में सुंदर जीवन संजो रही है। सृष्टि ने भावों का श्रृंगार किया है, जिससे मन पुलकित हो उठा है। ओस से आँचल सजाने को मंगल बेला में सर्द हवाएँ चली हैं। तुलसी का नन्हा-सा पौधा उसके मन के कोने में पनपा है। वह प्रिये का आह्वान करते हुए कहती है -

"शुष्क मरु की तपती काया / झुलसा तन तलाशे छाया /

आओ प्रिये! / प्रीत संग,/ भाव-सरिताएँ उलीचें" (पृ. - 59)

कवयित्री ने कावेरी की करुण पुकार को भी बयान किया है। मानवकृत प्रदूषण को भी दिखाया है। धरा धैर्य धारण किए असीम पीड़ा सह रही है। इसमें कवयित्री नारी की व्यथा को भी अभिव्यक्त करती है। प्रकृति की और नारी की वेदना एक-सी है। वह आशावादी भी है -

"बनूँ प्रीत पवन के पैरों की / इठलाऊँ इतराऊँ गगन के साथ" (पृ. - 72)

इस भाग में कुछ लघु कविताएँ भी हैं।

      संग्रह के चौथे भाग में समाज की समस्याओं को उद्घाटित करती 43 कविताओं को "सामाजिक सरोकार" शीर्षक के अंर्तगत रखा है। समाज का साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। साहित्यकार समाज की हर घटना के प्रति सचेत रहकर कलम से अपनी भूमिका अदा करता है, यही कारण है कि कवयित्री ने सबसे ज्यादा कविताएँ इसी भाग में रखी हैं। इस भाग की कुछ कविताओं में समाज का स्थायी रूप वर्णित है, तो कुछ में घटित घटनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया है। त्वरित प्रतिक्रिया रूप में लिखी कविताओं में चन्द्रयान-2 के अभियान का वर्णन भी शामिल है, जिसमें इसरो को हार न मानने का संदेश दिया है। 2019 के अंतिम दिनों के घटनाक्रम को चित्रित किया है। थाइलैंड के नेशनल पार्क की घटना का वर्णन है। नए मोटर व्हीकल एक्ट को कविता में पिरोया है। जलमग्न हुए आशियानों की स्थिति दिखायी है। करवा चौथ के चाँद को निहारती सुहागिन का चित्रण है। 

             कवयित्री ने बदलते दौर का सार भी लिखा है। जमाने की आबोहवा बदल रही है। गाँव की पगडंडियों को शहर की सड़कों ने खा लिया है। हालात बद से बदतर हुए हैं और वह आईना देखने की बात करती है। वह शोषण की परिभाषा बताने में खुद को असमर्थ पाती है। धरती-पुत्र की पीड़ा को बयां किया है। गरीबों की दशा को दिखाया गया है, लेकिन चुनाव के दिन हालात बदलते हैं, आम आदमी उस दिन खास हो जाता है। बदलते मानव को देखकर वह लिखती है -

"तुम देख रहे हो साहेब! / 

कितना बदल गया है / इंसान" (पृ. - 118) 

प्रदूषण से पस्त दिल्ली को दिखाया है। माँ के बारे में कहा गया है -

"क्या माँगती है माँ? / चंद शब्द प्यार के /

दो जून की रोटी" ( पृ. - 106)

बेटियों की नृशंस हत्या को मानवीय मूल्यों की मृत्यु कहा गया है। संस्कारों के पतन पर वह लिखती है -

"सजी संकीर्णता सपनों में / सड़ने लगे सब संस्कार" ( पृ. - 100)

चिंतनशील पीढ़ी को दमे का शिकार बताया है। संसार को कर्कश कहा है, जिसमें नारी जीना चाहती थी, लेकिन भाग्य ने माँ-सी मासूम साँसों को जकड़ लिया है। यह दुर्भाग्य हर नारी का है। हाँ, वह नारी को कहती है -

"नारी हो तुम नारी को नहीं लजाओ तुम" (पृ. -119)

पिता का प्यार पति की आँखों में नहीं मिलता, लेकिन हौसले की बात करते हुए वह शिकायत न करने की बात करती है, हालांकि इंसान अच्छे दिनों के दर्श को तरस गया है। 

       इस भाग की कविताओं में कवयित्री कई प्रश्न उठाती है। वह सवाल पूछती है -

"हम स्वतंत्र हैं! / क्या यह जनतंत्र है?" (पृ- 88)

वह कहती है - 

"वक़्त को मेरे ईश्वर यह हुआ क्या है /

इंसान अब इंसान नहीं धर्म का दरोगा बन गया है" (पृ. - 78)

बदतर हालातों का चित्रण करते हुए वह पूछती है -

"तोड़ इसका बतलाओ साधो! /

गर्दिश में जनता सारी" (पृ. - 92)

वह प्रश्नों के साथ-साथ सुझाव भी देती है -

"हे मानव! / पश्चिम पथ का /

कर परित्याग" (पृ. - 99)

       कवयित्री का आशावाद इन कविताओं में भी झलकता है। पुरखों का वर्णन है। माँ को शक्ति का अवतार कहा गया है। दादा-दादी देवदूत हैं। वह संसार को शतदल-सा सलौना मानते हुए कहती है -

"मुग्ध होती / मधुर धुन में मानवता सारी" (पृ. - 94)

वह अपनेपन का गलीचा बिछाने का संदेश देती है ताकि -

"गलतफहमी की जमी धूल / वक़्त-बेवक़्त झाड़ ले /

न जमे द्वेष / द्वेष के एहसास को मिटा दें" (पृ. - 95)

नियति से उम्मीद करती है -

"शब्द मधुर हों जनमानस के / दिखा नियति ऐसा कोई खेल /

करुण हृदय से सींचे प्रीत को / फूले-फले प्रीत की बेल" (पृ. - 109) 

      इस कविता-संग्रह का पाँचवां भाग "नारी-विमर्श" है, जिसमें 8 कविताएँ हैं। कवयित्री का नारी विमर्श उस तथाकथित आधुनिकतावाद से अलग है, जिसमें स्वच्छंदता का समर्थन होता है। कवयित्री रस्मो-रिवाज में बंधकर परिवार को अपना पहला दायित्व बताती है, क्योंकि उसकी दृष्टि में यही अच्छी लड़की की परिभाषा है। वह नए दौर की स्त्री के बारे में कहती है-

"प्रेम का लबादा ओढ़कर / दमित इच्छाओं को हवा देकर / 

स्वेच्छाचारिता की नवीन राहें तलाशती नारी /

जीवन के अमृत-घट में / ज़हर की बूँदें क्यों डाल रही है?" (पृ. - 136)

बेटी की महत्ता को दोहों के माध्यम से दिखाया गया है-

"बेटी सुख का सार है, बेटी ही श्रृंगार

बेटी के कारण बसे, छोटा-सा संसार।" (पृ. - 137)

वह स्त्री-पुरुष की बजाय जीवन मूल्यों की बात करती है। वह सीता, अहिल्या, यशोधरा का जिक्र करती है। वह समाज के उस कुरूप पहलू को भी दिखाती है, जिसमें नारी जाति को पुरुष रूपी गिद्ध नोचते हैं। 

      संग्रह का अंतिम भाग "जीवन दर्शन" है और इस भाग में 29 कविताएँ हैं। हर विचारशील प्राणी जीवन के बारे में सोचता है। कवयित्री भी इससे अछूती नहीं। कवयित्री ज़िंदगी, धर्म, विज्ञान, मानवता, आस्था, रिश्ते आदि अनेक विषयों पर अपने चिंतन को इन कविताओं में पिरोती है। वक्त से बढ़कर कोई गुरु नहीं होता इस सोच को दिखाते हुए वह कहती है -

"ज़िंदगी को बखूबी पढ़ाती है जिंदगी" (पृ. - 155)

धर्म को कर्म से जोड़ते हुए कहा गया है -

"मैं धर्म / दौड़ रहा युगों-युगों से /

कर कर्म को धारण" (पृ. - 169)

वह कविता पर भी विचार करती है उसके अनुसार -

"कविता स्वयं की पीड़ा नहीं / मानव की पर-पीड़ा है" ( पृ. - 151)

कवयित्री कविता को जीती है।

      भाव पक्ष से विविधता भरपूर यह संग्रह कला पक्ष से भी समृद्ध है। भाषा संस्कृतनिष्ठ कही जा सकती है, हालांकि भाषा पर राजस्थानी के प्रभाव को देखा जा सकता है -

"प्रीत री लौ जलाए बैठी / धड़कन चौखट लाँघ गयी /

धड़क रहो हिवड़ो बैरी / हृदय बेचैनी डोल रही" (पृ. - 35)

प्रकृति का चित्रण करते मानवीकरण के मनोहारी चित्र प्रस्तुत किए गए हैं-

"पेड़ों की फुनगी पर बैठी / आज सुनहरी शाम" (पृ. - 64) 

प्रश्न, उपमा, रूपक अलंकारों का भी भरपूर प्रयोग हुआ है। ज्यादातर कविताएँ मुक्त छंद में हैं, लेकिन दोहे भी कहे गए हैं, जो छंद के नियमों पर खरे उतरते हैं। मुक्त छंद कविताओं में भी तुकांत का प्रयोग हुआ है। वर्णात्मक शैली की प्रधानता है, हालांकि संबोधन का भी अच्छा प्रयोग हुआ है।

      संक्षेप में, अनीता सैनी अपने पहले संग्रह से उम्मीद जगाती है कि वे अपनी लेखनी से साहित्य को समृद्ध करेंगी।

दिलबागसिंह विर्क

8 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

अनीता सैनी ने कहा…

मेरे प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह 'एहसास के गुंचे' की विस्तृत मनमोहक समीक्षा अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने के लिए आदरणीय डॉ. दिलबाग सर का तहेदिल से आभार।
सादर

Gajendra Bhatt "हृदयेश" ने कहा…

कविताओं के छोटे-छोटे वाक्यांशों का उद्धरण प्रस्तुत कर जिस तरह से डॉ. दिलबाग सिंह ने कवयित्री अनीता जी की सुन्दर काव्य-कृति का दर्शन कराया है, अद्भुत है। सुन्दर समीक्षा के लिए हार्दिक बधाई!

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल ने कहा…

आदरणीया अनीता जी द्वारा लिखी गई काव्य संग्रह की समीक्षा बहुत गहरा प्रभाव छोड़ती है, आप को एवं अनीता जी को दीपोत्सव के साथ काव्य संग्रह प्रकाशन की असंख्य बधाइयाँ व शुभकामनाएं - - नमन सह।

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१४-११-२०२०) को 'दीपों का त्यौहार'(चर्चा अंक- ३८८५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

Onkar ने कहा…

सुंदर रचना

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत अच्छी समीक्षा...
बधाई अनीता जी को और विर्क जी को

दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💥🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह

Amrita Tanmay ने कहा…

अति प्रभावकारी समीक्षा के लिए हार्दिक आभार । कवियत्री के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

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